शब्द का अर्थ
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सूत :
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पुं० [सं० सूत्र] १. रूई, रेशम आदि का वह पतला बटा हुआ तागा, जिससे कपड़ा बुनते हैं। तंतु। धागा। डोरा। सूत्र। (थ्रेड) २. किसी चीज में से निकलनेवाला इस प्रकार का तार। ३. लंबाई नापने का एक छोटा मान। ४. इमारत के काम में जमीन, लकड़ी आदि पर विभाजन की रेखाएँ या निशान डालने की डोरी। मुहा०–सूत धरना, फटकना या बाँधना=मकान आदि बनाने के समयनींव डालने से पहले उसका छंकन ठीक करने या कमरों, दालानों, आँगन आदि का विभाजन करनेवाली रेखाएँ निश्चित करना। (पहले उक्त सूत या डोरी पर चूने का चूरा लगाते हैं, और तब डोरी को सीध में रखकर फटकते या झटकारते हैं, जिससे जमीन पर चूने की रेखा बन जाती है।) ५. गले, बाँह आदि में पहनने का वह डोरा, जिसमें कोई जंतर या तावीज बँधा रहता है। ६. वह मोटा डोरा, जो कमर में करधनी की तरह पहना जाता है। ७. करधनी। पुं० =सूत्र। पुं० [सं० सुत] पुत्र। बेटा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [सं०] १. एक प्राचीन वर्णसंकर जाति, जिसकी उत्पत्ति क्षत्रिय पिता और ब्राह्यणी माता से कही गयी है और जिसका कार्य रथ हाँकना था। २. रथ। हाँकनेवाला व्यक्ति। सारथि। ३. चारण। भाट। वंदीजन। ४. पुराणों की कथाएँ सुनानेवाला व्यक्ति। पौराणिक। ५. बढ़ई। सूत्रधार। ६. सूर्य। ७. पारा। वि० [?] अच्छा। भला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) वि० १.=प्रसूत। २.=प्रेरित। |
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सूत-तनय :
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पुं० [सं० ष० त०] कर्ण का एक नाम, जो उनके सूत—पुत्र होने के कारण पड़ा था। |
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सूत-धार :
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पुं० [सं० सूत्रधार] बढ़ई। |
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सूत-पात :
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पुं० [सं०] १. नींव आदि रखने के समय होनेवाली नाप—जोख। २. किसी नये तथा बड़े काम का होनेवाला आरम्भ। जैसे–इस योजना का सूत—पात सन् ६२ में हुआ था। |
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सूत-पुत्र :
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पुं० [सं० ष० त०] १. सारथि का पुत्र। २. सारथि। ३. कर्ण। ४. कीचक। |
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सूत-फूल :
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पुं० [हिं० सूत+फूल] महीन आटा। मैदा। (क्व०) |
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सूत-लड़ :
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पुं० [हिं० सूत+लड़] अरहर। रहँट।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूतक :
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पुं० [सं० सुतक=जन्म] १. जन्म। २. घर में संतान होने या किसी के मरने पर परिवारवालों को लगनेवाला अशौच। ३. अस्पृश्यता। छूत। उदा०–जलि है सुतकू घलि है सुतकू, सूतक सूतक ओपति होई।–कबीर। ४. चन्द्रमा या सूर्य का ग्रहण। उपराग। ५. पारद। पारा। |
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सूतक—गेह :
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पुं० =सूतिकागार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूतका :
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स्त्री० [सं०] जच्चा। |
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सूतका—गृह :
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पुं० [सं०] जच्चा—घर। सूतिकागार। |
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सूतकान्न :
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पुं० [सं०] १. वह खाद्य पदार्थ जो संतान—जन्म के कारण अशुद्ध हो जाता है। २. ऐसे घर या व्यक्ति का अन्न, जिसे सूतक लगा हो और इसीलिए जो अन्न अग्राह्य कहा गया है। |
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सूतकाशौच :
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पुं० [सं०] वह शौच जो घर में संतान उत्पन्न होने के कारण होता है। जननाशौच। |
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सूतकी (किन्) :
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वि० [सं०] जिसे सूचक (अशौच) लगा हो। |
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सूतज :
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वि० [सं०]=सूत से उत्पन्न। पुं० =सूत—तनय (कर्ण)। |
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सूतता :
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स्त्री० [सं० सूत+तल्–टाप्] सूत का कार्य, पद या भाव। |
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सूतनंदन :
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पुं० [सं० सूत√नंद् (सुखदेनेवाला)+ल्यु–अन] १. उग्रश्रवा। २. सूत—तनय (कर्ण)। |
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सूतना :
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अ०=सोना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूतरी :
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स्त्री० =सुतली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूता :
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पुं० [सं० सूत्र] १. भूरे रंग का एक प्रकार का रेशम जो मालदह (बंगाल) से आता है। २. जूते में वह बारीक चमड़ा, जिसमें टूक का पिछला हिस्सा आकर मिलता है। (चमार) ३. सूत। धागा। पुं० [सं० शुक्ति] वह सीपी जिससे डोड़े में की अफीम काछते हैं। स्त्री० [सं०] प्रसूता। |
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सूति :
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स्त्री० [सं०√सू (प्रसव करना)+क्तिन्] १. जन्म। २. जनन। प्रसव। ३. उत्पत्ति का स्थान। उद्गम। ४. फसल की पैदावार। ५. यज्ञो में सोम का रस निकालने की क्रिया। ६. वह स्थान जहाँ यज्ञों के लिए सोम का रस निकाला जाता था। ७. कपड़ा सीने की क्रिया या भाव। पुं० हंस। |
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सूति-काल :
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पुं० [सं० ष० त०] प्रसव करने या बच्चा जनने का समय। |
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सूति-गृह :
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पुं० सूतिकागार। |
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सूति-वात :
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पुं० [सं०] प्रसव के समय प्रसूता को होनेवाली पीड़ा। |
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सूति—मास :
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पुं० [सं०] वह मास जिसमें किसी स्त्री को संतान उत्पन्न हो। प्रसव-मास। वैजनन। |
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सूतिका :
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स्त्री० [सं०] १. वह स्त्री या जीव जिसने अभी हाल में बच्चा जना हो। सद्यःप्रसूता। २. वैद्यक में प्रसूता स्त्री को होनेवाले कुछ विशिष्ट प्रकार के रोग जो अनुचित आहार, विहार आदि के कारण होते हैं। |
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सूतिका-गृह :
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पुं०=सूतिकागार। |
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सूतिकागार :
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पुं० [सं० ष० त०] १. वह घर या कमरा जिसमें स्त्री बच्चा जनती है। सौरी। प्रसव-ग्रह। २. चिक्तिसालय का वह पार्श्व या विभाग जिसमें प्रसव कराने के लिए प्रसूता स्त्रियाँ रखी जाती हैं। (मैटरनिटी वार्ड) |
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सूतिकावास :
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पुं०=सुतिकागार। |
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सूतिकाषष्ठी :
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स्त्री० [ सं०] संतान के जन्म से छठे दिन होनेवाला एक संस्कार तथा जच्चा ना नहाना। |
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सूती :
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वि० [हिं० सूत+ई (प्रत्य०)] सूत का बना हुआ। जैसे—सूती कपड़ा। सूती गलीचा। स्त्री० [सं० शुक्ति] सीपी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० सं० सूत का स्त्री०। (सूत जाति की स्त्री) |
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सूती-गृह :
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पुं० [सं०] सूतिकागार। |
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सूतीघर :
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पुं०=सूतिकागार। |
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सूतीमास :
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पुं०=सूतिमास। |
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सूत्कार :
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पुं०=सीत्कार। |
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सूत्तर :
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वि० [सं०] बहुत श्रेष्ट। बहुत बढ़कर। पुं०=सूत (पश्चिम)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सूत्त्य :
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पुं०=सुत्य। |
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सूत्या :
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स्त्री० [सं०] १. यश के उपरान्त होनेवाला स्नान। अवभृथ। २. यज्ञों में सोम का रस निकालना और पीना। |
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सूत्याशौच :
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पुं० [सं०]=सूतकाशौच। |
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सूत्र :
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पुं० [सं०] [भू० कृ० सूचित्र] १. कपास का बटा हुआ बहुत पतला और महीन डोरा या तागा। सूत। २. किसी प्रकार के रेशों का बटा या बढ़ा हुआ लंबा रूप। (थ्रेड) ३. गले मे पहनने का जनेऊ। यज्ञोपवति। ४. कमर में करधनी की तरह पहना या बाँधा जानेवाला डोरा। कटि-सूत्र। ५. शरीर के अन्दर की डोरी की तरह की नली या मोटी नस। (कॉर्ड) जैसे–स्वर-सूत्र। ६. यथासाध्य बहुत थो़डे़ शब्दों में कहा हुआ कोई ऐसा कथन, पद या वाक्य जिसमें बहुत-कुछ गूढ़ अर्थ भरा हो। जैसे–कल्प-सूत्र। ७. बौद्ध साहित्य में, कोई ऐसा मूल ग्रंथ जिसकी टीका या व्याख्या हुई हो। ८. कोई ऐसी संकेतात्मक बात, जिसके सहारे किसी दूसरी बहुत बड़ी बात, घटना, पहेली, रहस्य, आदि का पता लगे। संकेत। पता। सूराग। (क्ल्यू) ९. वह सांकेतिक पद या शब्द, जिसमें कोई वस्तु बनाने या कार्य करने के मूल सिद्धांत, प्रक्रिया आदि का संक्षिप्त विधान निहित हो। (फा़र्मला) १॰. किसी कार्य या योजना के संबंध में उन अनेक बातों में से कोई, जो उस कार्य या योजनी की सिद्धि के लिए सोची जाय। (प्वाइन्ट) जैसे–इस योजना के चार सूत्रों में से दो बहुत ही उपयोगी और आवश्यक हैं। ११. रेखा। लकीर। १२. किसी प्रकार की व्यवस्था करने के नियम। १३. वह मूल कारण या बात जिससे कुछ और चीजें या बातें निकली हों। |
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सूत्र-कंठ :
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पुं० [सं० ष० त०] १. वह जो गले में यज्ञ-सूत्र या यज्ञोपवीत पहनता हो या पहने हो। २. ब्राह्यण। ३. कबूतर। ४. खंजन पक्षी। |
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सूत्र-कर्म (र्मन्) :
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पुं० [सं०] १. बढ़ई का काम। २. मेमार या राज का काम। |
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सूत्र-कृमि :
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पुं० [सं०] आँतों में उत्पन्न होनेवाले एक प्रकार के धागे की तरह पतले कीड़े जो शरीर में अनेक विकार उत्पन्न करते हैं। (थ्रेडवर्म) |
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सूत्र-कोण :
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पुं० [सं०] डमरू। |
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सूत्र-कोश :
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पुं० [सं०] सूत्र की अंटी। लच्छी। |
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सूत्र-क्रीड़ा :
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स्त्री० [सं०] धागों की सहायता से कठपुतलियाँ नचाने का काम, जो ६४ कलाओं के अन्तर्गत माना गया है। |
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सूत्र-ग्रंथ :
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पुं० [सं०] १. ऐसा ग्रंथ जिसमें सूत्रों का संग्रह हो। २. सूत्र रूप में प्रस्तुत किया हुआ ग्रंथ। |
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सूत्र-ग्रह :
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वि० [सं०] सूत धारण या ग्रहण करनेवाला। |
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सूत्र-तर्कटी :
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स्त्री० [सं०] सूत कातने का तकला। टेकुवा। |
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सूत्र-धार :
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पुं० [सं० सूत्र√धृ (धारण करना)+अण्] १. प्राचीन भारत में मूलतः वह व्यक्ति जो अपने हाथ में कपड़े या बँधे हुए सूत्रों अर्थात डोरो की सहायता से कठपुतलियाँ नचाता और उनके तमाशे दिखाता था। २. परवर्ती काल में नाट्यशाला का वह प्रधान व्यवस्थापक, जो नटों को अभिनय—कला सिखाकर उनसे अभिनय कराता और रंग—मंच की व्यवस्था करता था। ३. लाक्षणिक रूप में वह व्यक्ति, जिसके हाथ में किसी कार्य की सारी व्यवस्था हो। ४. पुराणानुसार एक प्राचीन वर्णसंकर जाति, जिसकी उत्पत्ति शूद्रा माता और विश्वकर्मा पिता से कही गई है और जो प्रायः बढ़ई का काम करती थी। ५. बढ़ई सुतार। ६. इन्द्र का एक नाम। |
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सूत्र-पिटक :
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पुं० [सं०] बौद्ध सूत्रों का एक प्रसिद्ध संग्रह। दे० ‘त्रिपिटक’। |
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सूत्र-पुष्प :
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पुं० [सं०] कपास का पौधा जिसके फूलों डोड़ों से सूत बनता है। |
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सूत्र-भृत :
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पुं० =सूत्रधार। |
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सूत्र-यंत्र :
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पुं० [सं०] करघा। २. करघे की ढरकी। ३. सूत का बुना हुआ जाल। |
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सूत्र-वीणा :
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स्त्री० [सं०] प्राचीन काल की एक प्रकार की वीणा, जिसमें बजाने के लिए तार की जगह सूत्र लगे रहते थे। |
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सूत्र-वेष्ठन :
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पुं० [सं०] १. करघा। २. सूतों की बुनाई। |
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सूत्र-शाख :
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पुं० [सं०] शरीर। |
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सूत्र-शाला :
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स्त्री० [सं०] वह स्थान या कारखाना जहाँ सूत काता, तैयार किया या बनाया जाता है। |
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सूत्रक :
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पुं० [सं०] १. सूत्र। तंतु। २. माला या हार। ३. सेवई नामक पकवान। ४. लोहे के तारों का बना हुआ कवच। |
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सूत्रकर्त्ता :
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पुं० [सं० सूत्रकर्तृ] सूत्र—ग्रंथ का रचियता। सूत्र प्रणेता। |
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सूत्रकार :
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पुं० [सं०] १. वह जिसनें सूत्रों में किसी ग्रंथ की रचना की हो। सूत्र-रचयिता। २. बढ़ई। ३. जुलाहा। ४. मेमार। राज। ५. मकड़ी। |
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सूत्रण :
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पुं० [सं०] [भू० कृ० सूत्रित] सूत्र बनाने या बटने की क्रिया या भाव। |
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सूत्रधारी (रिन्) :
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वि० [सं०] सूत्र धारण करनेवाला। स्त्री० सूत्रधार की स्त्री। नटी। |
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सूत्रपी :
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वि० [स० सूत्र] सूत्र जानने या रचनेवाला। |
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सूत्रला :
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स्त्री० [सं०] तकला। टेकुवा। |
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सूत्रवाप :
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पुं० [सं०] सूत से कपड़ा बुनने की क्रिया। वपन। बुनाई। |
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सूत्रा :
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स्त्री० [सं० सूत्रकार] मकड़ी। (अनेकार्य) |
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सूत्रांग :
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पुं० [सं०] उत्तम काँसा। |
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सूत्रांत :
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पुं० [सं०] बौद्ध सूत्रों की संज्ञा। |
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सूत्रांतक :
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वि० [सं०] बौद्ध सूत्रों का ज्ञाता या पंडित। |
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सूत्रात्मा (त्मन्) :
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पुं० [सं०] १. एक प्रकार की परम सूक्ष्म वायु जो धनंजय से भी अधिक सूक्ष्म कही गई है। ३. जीवात्मा। |
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सूत्राध्यक्ष :
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पुं० [सं०] कपड़ों के व्यपार या व्यवसाय का अध्यक्ष। (कौ०) |
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सूत्रामा(मन्) :
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पुं० [सं०] इन्द्र। |
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सूत्राली :
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स्त्री० [सं०] १. सूत को लपेटकर बनाई जानेवाली माला। हार। २. गले में पहने की मेखला। |
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सूत्रिका :
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स्त्री० [सं०] १. सेवई। २. हार। माला। |
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सूत्रिता :
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भू० कृ० [सं०] १. सूत से बाँधा या नत्थी किया हुआ। २. सूत्रों के रूप में कहाँ या लाया हुआ। ३.क्रम या सिलसिले में लगाया हुआ। |
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सूत्री (त्रिन्) :
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वि० [सं०] समस्त पदों के अन्त में–(क) जिसमें सूत्र हों। सूत्रों से युक्त। जैसे–त्रिसूत्री योजना। (ख) नियमों से युक्त। जैसे–दीर्द्यसूत्री। पुं० १. काक। कौआ। २. दे० ‘सूत्रधार’। |
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सूत्रीय :
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वि० [सं०] १. सूत्र—संबंधी। सूत्र का। २. सूत्रों से युक्त। सूत्री। |
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