शब्द का अर्थ
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					सूज					 :
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					स्त्री० १.=सूजन। २.=सूई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
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					सूजंध					 :
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					स्त्री० =सुगंध। (डिं०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
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					सूजन					 :
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					स्त्री० [हिं० सूजना] १. सूजे हुए होने की अवस्था या भाव। २. वह विकार जो उक्त के फलस्वरूप शरीर या शरीर के किसी अंग में दृष्टिगत होता है। शोथ। (इन्फ्लेमेशन)				 | 
			
			
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					सूजना					 :
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					अ० [फा० सोजिश, मि० सं० शोथ] रोग, चोट, वात आदि के प्रकोप के कारण शरीर के किसी अंग का अधिक फूल या फैल जाना। शोथ होना। मुहा०–(किसी का) मुँह सूजना=आकृति से अप्रसन्नता, रोग आदि के लक्षण स्पष्टतः व्यक्त होना। जैसे–रुपये माँगते ही उनका मुँह सूज गया।				 | 
			
			
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					सूजनी					 :
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					स्त्री० =सुजनी (बिछाने की चादर)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सूजा					 :
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					पुं० [सं० सूची, हिं० सूई, सूजी] १. बड़ी और मोटी सूई। सूआ। २. उक्त आकार का केचबंदों का एक औजार, जिनमें कैचियाँ बनाने के लिए दस्ते में छेद किया जाता है। ३. वह खूँटा जो छकड़ा गाड़ी के पीछे की ओर उसे टिकाने के लिए लगाया जाता है। वि० [अ० शुजाअ=बहादुर] बहादुर। वीर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					सूजाक					 :
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					पुं० [फ़ा०] मूत्रेन्द्रिय का एक रोग जिसमें उसके अन्दर घाव हो जाता है और बहुत तेज जलन होती है। उपदंश। (गनोरिया)				 | 
			
			
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					सूजी					 :
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					स्त्री० [?] १. चूर्ण से भिन्न कणों के रूप में होनेवाला गेहूँ का पिसा हुआ रूप। २. एक प्रकार का सरेस जो माँड़ और चूने के मेल से बनता है और बाजों के पुरजों को जोडने के काम में आता है। स्त्री० [सं० सूची] १. सूई। २. वह सूआ जिससे गड़ेरिए लोग कम्बल की पट्टियाँ सीते हैं। पुं० =सूचिक (दरजी)।				 | 
			
			
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