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सर्ग  : पुं० [सं०] १. चलना या आगे बढ़ना। गमन। २. गति। चाल। ३. प्रवाह। बहाव। ४. अस्त्र आदि चलाना,छोड़ना या फेंकना। ५. चलाया छोड़ा या फेंका हुआ अस्त्र। ६. उत्पत्ति। स्थान। उदगम। ७. जगत्। संसार। ८.जीव। प्राणी। ९. औलाद। संतान। १॰. प्रकृति। स्वभाव। ११. झुकाव। प्रवृत्ति। रुझान। १२. चेष्टा। प्रयत्न। १३. दृढ़ निश्चय या विचार। संकल्प। १४. बेहोशी। मूर्छा। १५. किसी ग्रन्थ विशेषतः काव्य ग्रन्थ का अध्याय या प्रकरण। १६. शिव का एक नाम।
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सर्ग-पताली  : वि०=सरग-पताली।
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सर्ग-पुट  : पुं० [सं० ब० स०] संगीत में शुद्ध राग का एक भेद।
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सर्ग-लेख  : पुं० [सं०] वह विज्ञान या शास्त्र जिसमें ब्रह्माण्ड या विश्व की रचना, विस्तार, स्वरूप आदि का विवेचन हो। (कास्मोग्राफी)। विशेष—आधुनिक विचारकों के मत से ज्योतिष भूगोल, भौमिकी आदि इसी के अंग या विभाग है।
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सर्गक  : वि० [सं० सर्ग+कन्] जन्म देनेवाला। उत्पादक।
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सर्गबंध  : वि० [सं० ब० स०] ग्रन्थ या काव्य जो कई अध्यायों में विभक्त हो। जैसा—सर्गबंध काव्य।
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सर्गुन  : वि०=सगुण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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