शब्द का अर्थ
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					संतोष					 :
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					पुं० [सं० स०√तुष् (संतोष करना)+घञ] १. वह मानसिक अवस्था जिसमें व्यक्ति प्राप्त होने वाली वस्तु को यथेष्ट समझता है और उससे अधिक की कामना नहीं रखता है। २. वह अवस्था जिसमें अभीष्ट कार्य होने या वांछित वस्तु प्राप्त होने पर क्षोभ मिट जाता है। और फलतः कुछ अवस्थाओं में हर्ष भी होता है। जैसे—मजदूरों की माँगें पूरी हो जाने पर ही संतोष होगा। तृप्ति। ३. हर्ष। आनन्द। ४. धैर्य।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					संतोषक					 :
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					वि० [सं० संतोष+कन्] १. संतुष्ट करने वाला। २. प्रसन्न करने वाला।				 | 
			
			
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					संतोषण					 :
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					पुं० [सं० सम्√ तुष् (संतोष होना)+ल्युटु-अन] १. संतोष करने की क्रिया या भाव। २. संतुष्ट करने की क्रिया भाव।				 | 
			
			
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					संतोषणीय					 :
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					पुं० [सं० सम्√ तुष् (संतोष होना)+अनीयर] जिससे या जितने में संतोष हो सके।				 | 
			
			
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					संतोषना					 :
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					अ० [सं० संतोष] १. संतोष होना। २. संतुष्ट होना। स० १. संतोष करना। २. संतुष्ट करना।				 | 
			
			
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					संतोषी (षिन्)					 :
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					वि० [सं० सम्√तुष् (प्रसन्न रहना)+णिनि] (व्यक्ति) जो प्राप्त होने वाली वस्तु को यथेष्ट समझता होता हो और उसी में संतुष्ट रहता हो।				 | 
			
			
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					संतोष्य					 :
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					वि० [सं० सम्√तुष् (संतोष करना)+यत्] जिसका संतोष करना या जिसे संतुष्ट करना आवश्यक या उचित हो।				 | 
			
			
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