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शब्द का अर्थ

संज  : पुं० [सं० सम्√जन् (उत्पन्न करना)+ड] १. शिव। २. ब्रह्मा।
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संजन  : पुं० [सं०√ सञ्ज् (बाँधना)+ल्युट्-अन] १. बाँधना। २. बन्धन। ३. संघठन।
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संजनन  : पुं० [सं० सम्√जन् (उत्पन्न करना)+ल्युट्-अन][भूत० कृ० संजनित]=जनन।
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संजनी  : स्त्री० [सं० संजन-ङीप्] वैदिक काल का एक प्रकार का अस्त्र जिससे वध या हत्या की जाती थी।
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संजनीपति  : पुं० [सं०] यमराज (डिं०)।
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संजम  : पुं०=संयम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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संजमी  : वि०=संयमी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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संजय  : पुं० [सं० सं√ जि (जीतना)+अष्] १. ब्रह्मा। २. शिव। ३. धृतराष्ट्र का मुख्य मंत्री जिसने उन्हें युद्ध-क्षेत्र का सारा हाल सुनाया था।
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संजल्प  : पुं० [सं०] साथ बैठकर आपस में की जानेवाली बात-चीत।
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संजात  : भू० कृ० [सं०] १. किसी के साथ उत्पन्न। २. किसी से उत्पन्न। जात। जैसे—घात-संजात=हनुमान्। ३. मिला हुआ। प्राप्त। पुं० पुराणानुसार एक प्राचीन जाति।
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संजात बलि  : वि० [सं०] मरे हुए प्राणियों का माँस खानेवाला। पुं० डोमकौआ।
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संजाफ  : स्त्री० [फा० संजाफ़] १. झालर। किनारा। कोर। २. रजाइयों आदि में लगाई जानेवाली गोट। मगजी। पुं० वह घोड़ा जिसका आधा भाग लाल तथा आधा भाग सफेद (या हरा) होता है।
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संजाफी  : वि० [हिं० संजाफ] जिसमें संजाफ लगी हो। किनारेदार। झालरदार।
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संजाब  : पुं० [फा०] १. चूहे के आकार का एक जन्तु जो प्रायः तुर्किस्तान में होता है। २. एक प्रकार का चमड़ा। ३. संजाफ। (घोड़ा)।
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संजावनमूर, संजीवनमूरि  : स्त्री०=संजीवनी (बूटी)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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संजीदगी  : स्त्री० [फा०] १. संजीदा होने की अवस्था या भाव। २. आचरण, विचार य़ा व्यवहार की गंभीरता। ३. स्वभाव संबंधी शिष्टता तथा सौम्यता।
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संजीदा  : वि० [फा० संजीदा] [भाव० संजीदगी] जिसके व्यवहार या विचारों में गंभीरता हो। गंभीर और शान्त। २. बुद्धिमान। समझदार।
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संजीव  : पुं० [सं०] १. मरे हुए को फिर से जिलाना। पुनः जीवन देना। २. वह जो मरे हुए को फिर से जीवित करता हो। ३. बौद्धों के अनुसार एक नरक।
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संजीवक  : वि० [सं० सम्√जीव् (जिलाना)+ण्वुल्-अक] पुनर्जीवित करने वाला। नया जीवन देने वाला।
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संजीवकरणी  : स्त्री० [सं०] १. एक कल्पित बूटी जिसके द्वारा मृत को फिर से जीवित किया जाता था। २. एक प्रकार की विद्या जिसके प्रभाव से मृत प्राणी फिर से जीवित किया जाता है।
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संजीवन  : पुं० [सं० सम्√ जीव् (जीवित करना)+ल्युट्-अन] १. भली-भाँति जीवन व्यतीत करने की क्रिया। अच्छी तरह जीवित रहना या जीवन बिताना। २. पुनर्जीवित करना। नया जीवन देना। मनु-स्मृति के अनुसार। एक नरक। वि० जीवन देने या जिलाने वाला।
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संजीवनी  : स्त्री० [सं० संजीवन-ङीष्] १. पुनर्जीवित करने वाली एक कल्पित ओषधि। २. पुनर्जीवित करने की एक विद्या।
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संजीवनी-बूटी  : स्त्री० [सं० संजीवनी+हिं० बूटी] १. रुदंती। रुद्रवंती। २. दे० ‘सजीवनी’।
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संजीवित  : भू० कृ० [सं० सम√जीव् (जीवित रखना+क्त) १. जो मर जाने पर फिर से जीवित किया गया हो। २. संजीवनी द्वारा जिसे पुनर्जीवित किया गया हो।
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संजीवी (विन्)  : वि० [सं० सम्√जीव् (जीवित करना)+णिनि] मृत को जीवित करने वाला।
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संजुक्त  : वि०=संयुक्त।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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संजुग  : [सं० संयुक्त] संग्राम। युद्ध। लड़ाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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संजुत  : वि०=संयुक्त।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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संजुता  : स्त्री० [सं० संयुक्ता] एक प्रकार का छंद जिसके प्रत्येक चरण में स, ज, ज, ग, होते है। इसे ‘संयुक्त’ या संयुक्ता भी कहते हैं।
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संजूत  : वि० [?] सावधान—उदा-होहू संजूत बहुरि नहिं अवना।—जायसी।
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संजोइल  : वि० [सं, सज्जित हिं० संजोना] अच्छी तरह सजाया हुआ। सुसज्जित। २. एकत्र किया हुआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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संजोऊ  : पुं० [हिं० संजोना] १. सजावट। २. तैयारी। उपक्रम। ३. सामग्री। सामान। पुं=संयोग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सँजोग  : पुं०=संजोग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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संजोगिता  : स्त्री०=संयोगिता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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संजोगिनी  : स्त्री०=संयोगिनी (जो वियोगिनी न हो अर्थात जिसका प्रेमी उसके पास हो।)
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संजोगी  : वि० [सं० संयोगिन] १. संयुक्त, मिला हुआ। २. जो अपने प्रियतम के पास या साथ हो। संयोगी। ‘वियोगी’। का विपर्याय। पुं० एक तरह का बड़ा पिंजरा। जो वस्तुतः दोपिंजरों को जोड़कर बनाया गया होता है।
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सँजोना  : स० [सं० सज्जा] १. सज्जित करना। अलंकृत करना। सजाना। २. सामग्री आदि एकत्र करके क्रम से रखना।
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सँजोवन  : पुं० [हिं० संजोना] सज्जित करने की क्रिया या भाव। सजाने का व्यापार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सँजोवना  : स०=सँजोना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सँजोवल  : पुं० [हिं० संजोना] १. सुसज्जित। २. आवश्यक सामाग्री से युक्त। सेना या सैनिक सामग्री से युक्त। ३. सजग। सावधान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सँजोवस  : वि०=संजोवल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सँजोवा  : पुं० [हिं० सँजोना] १. सजावट। श्रृंगार। २. लोगों का जमघट। जमावड़ा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सँजोह  : पुं० [सं० संयोग] लकड़ी का वह चौखट जो जुलाहे कपड़ा बुनते समय लटका देते हैं और जिसमें राछ या कंघी लटकी रहती है।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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संज्ञ  : वि० [सं० सम√ज्ञा (जानना)+क] १. जिसे संज्ञा प्राप्त हो। चेतन। २. नामधारी। ३. चलते समय जिसके घुटने टकराते हों। पुं० झाऊ या पीतकाष्ठ नामक पौधा।
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संज्ञक  : वि० [सं० संज्ञ+कन्]जिसकी कुछ संज्ञा हो। संज्ञा से युक्त। गोपाल संज्ञक व्यक्ति।
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संज्ञपन  : पुं० [सं० सम्√ ज्ञप् (जानना)+ल्युट्-अन] १. मार डालने की क्रिया। हत्या। २. कोई बात किसी पर अच्छी तरह प्रकट करना। ठीक और पूरी तरह से बतलाना।
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संज्ञप्त  : भू० कृ० [सं०] [भाव० संज्ञप्ति] सूचित किया हुआ।
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संज्ञप्ति  : स्त्री० [सं० सम्√ज्ञप् (बताना)+क्तिन) सूचित करना। संज्ञपन।
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संज्ञा  : स्त्री० [सं०] १. प्राणियों के शारीरिक अंगों की वह शक्ति जिससे उन्हें बाह्म पदार्थों का ज्ञान अपने शरीर या मन के व्यापारों की अनुभूति हो। चेतनाशक्ति। होश। (सेन्स)। २. बुद्धि। ३. ज्ञान। ४. वस्तु, व्यक्ति आदि के पुकारे जाने का नाम। ५. किसी वस्तु या कार्य के लिए परिभाषित रूप में प्रचलित नाम। (टेक्निकल टर्म) ६. व्याकरण में वह विकारी शब्द जो किसी वास्तविक या कल्पित वस्तु का बोधक होता है। जैसे—राम, पर्वत, घोड़ा, दया आदि। (नाउन) ७. आँख, हाथ आदि हिलाकर किया जाने वाला इशारा। या संकेत। ८. विश्वकर्मा की एक कन्या जो सूर्य को ब्याही थी। ९. गायत्री का एक नाम।
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संज्ञात  : भू० कृ० [सं० सम्√ज्ञा (जानना)+क्त) अच्छी तरह जाना या समझा हुआ।
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संज्ञान  : पुं० [सं० सम√ज्ञ (जानना)+ल्यूट-अन] १. संकेत। २. इशारा। ३. ज्ञान विशेषतः सम्यक् ज्ञान।
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संज्ञापन  : पुं० [सं०] वह शब्द जो किसी वस्तु या भाव की संज्ञा का नाम के रूप में प्रचलित हो। नामवाचक शब्द।
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संज्ञापन  : पुं० [सं० सम्√ज्ञा (जानना)+णिच्-प्रक-ल्यूट-अन्] १. ज्ञान कराना या सूचित करना।। २. सूचना पत्र विशेशतः ऐसा सूचना पत्र जो माल के साथ भेजा जाता और जिसमें भेजे हुए माल का मूल्य विवरण आदि रहता है। (एडवाइस) ३. कथन।
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संज्ञापुत्री  : स्त्री० [सं० ष० त०] सूर्य की पुत्री, यमुना जो संज्ञा के गर्भ में उत्पन्न हुई थी।
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संज्ञावली  : स्त्री०=नामावली।
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संज्ञावान् वत्)  : वि० [सं० संज्ञा+मतुप्-य=व-नुम्-दीर्घ] १. जो संज्ञा से युक्त हो। २. जिसमें चेतना या होश-हवास हो। ३. जिसका कोई नाम हो।
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संज्ञाहीन  : वि० [सं० तृ० त०] जिसे संज्ञा या चेतना न हो। चेतना-रहित। बेहोश। बेसुध।
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संज्ञिका  : स्त्री० [सं० संज्ञा+कन्-इत्व-टाप]=संज्ञा (नाम)।
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संज्ञी  : वि०=संज्ञावान। पुं० जीव। प्राणी।
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संज्वर  : पुं० [सं० स०√ज्वर (ताप बढ़ना)+णिच्-अच्] १. बहुत तीव्र ज्वर। बहुत तेज बुखार। २. क्रोध का उग्र आवेश।
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