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संचार  : पुं० [सं०] १. गमन। चलना। २. चलाना। ३. किसी के अन्दर पैठकर दूर तक फैलना। ४. वह राह जिस पर से होकर कोई चीज फैलती हो। ५. आज-कल संदेश, समाचार आदि तथा आदमी सामान आदि भेजने की क्रिया प्रकार और साधन (कम्यूनिकेशन)। ६. रास्ता दिखाना। मार्गदर्शन। ७. विपत्ति। ८. साँप की मणि। ९. देश। १॰. उत्तेजित करना। ११. संक्रमण (ग्रह आदि का)।
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संचार-साधन  : पुं० [ष० त०] दो या अधिक स्थानों या व्यक्तियों के बीच संबंध स्थापित करने के साधन। डाक, तार, समुद्री तार, रेडियो आदि और गमनागमन के साधन। (मीन्स ऑफ़ कम्यूनिकेशन)।
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संचारक  : वि० [सं० सम्√ चर् (चलना)+ण्वुल्-अक][स्त्री० संचारिका] संचार करने या फैलानेवाला। पुं० १. नेता। सरदार। २. अन्वेषक।
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संचारण  : पुं० [सं० सम्√ चर् (चलना)+णिच्-ल्युट्-अन][भू० कृ० संचारित] संचार करने की क्रिया या भाव।
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संचारना  : स० [सं० संचारण] १. संचार करना। फैलाना। २. चलाना। ३.चलने और घूमने फिरने में प्रवृत्त करना। उदा०—पुनि इबलीस सँचारेउ डरत रहे सब कोउ।—जायसी।
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संचारिका  : स्त्री० [सं०] १. दूती। कुटनी। २. नासिका। नाक। ३. बू। गंध। वि० ‘संचारक’ का स्त्री०।
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संचारिणी  : स्त्री० [सं० सम्√चर् (चलना)+णिनि-ङीप्] १. हंसपदी नाम की लता। २. लाल लजालू। वि० ‘संचारी’ का स्त्री।
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संचारित  : भू० कृ० [सं० सम्√चर् (चलना)+णिच्-कत] १. जिसका संचार किया गया हो। चलाया या फैलाया हुआ। २. भड़काया हुआ। ३. पहुँचाया हुआ।
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संचारी  : वि० [सं० सम्√ चर् (चलना)+णिनि-दीर्घ-नलोप][स्त्री० संचारिणी] १. संचरण या संचार करने वाला। २. आया हुआ। आगंतुक। पुं० १. साहित्य में वे तत्त्व, पदार्थ या भाव जो रस में संचार करते हुए उसके परिपाक में उपयोगी तथा सहायक होते हैं। इन्हीं को ‘व्यभिचारी भाव’ भी कहते हैं। (स्थायी भाव से भिन्न)। विशेष—यह माना गया है कि स्थायी भाव तो रस के परिपाक तक स्थिर रहते हैं परन्तु संचारी भाव अस्थिर होते और आवश्यकता तथा सुभीते के अनुसार सभी रसों में संचार करते रहते हैं। इसकी संख्या ३३ कही गई है,यथा-निर्वेद ग्लानि, शंका, असूया, श्रम, मद धृति, आलस्य, विषाद, मति, चिंता, मोह, स्वप्न, बिबोध, स्मृति, आमर्ष, गर्व, उत्सुकता, अवहित्थ, दीनता, हर्ष, व्रीड़ा, उग्रता, निद्रा, व्याधि, मरण, अपस्मार, आवेग, मस, उन्माद, जड़ता, चपलता और विर्तक। २. संगीत में किसी गीत के चार चरणों में से तीसरा। ३. वायु। हवा। ४. धूप नामक गंध द्रव्य।
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