शब्द का अर्थ
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					शूक					 :
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					पुं० [सं०√श्वि (पतला करना)+कक्] १. अन्न की बाल या सींका जिसमें दाने लगते हैं। २. जौं। यव। ३. काँटा। ४. एक प्रकार का कीड़ा। ५. नुकीला सिरा० नोक। ६. एक प्रकार का रोग जो लिंग-वर्द्धक ओषधियों के लेप के कारण होता है। ७. दे० शूकतृण।				 | 
			
			
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					शूक-कीट					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का नुकीले ओवाना कीड़ा।				 | 
			
			
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					शूक-तृण					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार की घास इसे सूकड़ी भी कहते हैं।				 | 
			
			
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					शूक-धान्य					 :
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					पुं० [मध्य० स०] अन्नों का वह वर्ग जिसके दाने या बीज बालों में लगते हैं।				 | 
			
			
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					शूकक					 :
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					पुं० [सं० शूक√कै (होना आदि)+क] १. एक तरह का अन्न। २. अनुकम्पा। दया। ३. वर्षाकाल। ४. शरीर का रस नाशक धातु।				 | 
			
			
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					शूकपत्र					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] ऐसा साँप जिसमें विष न होता हो। जैसे—पानी का साँप।				 | 
			
			
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					शूकर					 :
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					पुं० [सं० शूक√रा (लेना)+क] १. सूअर। २. वाराह (अवतार) स्त्री० सूकरी।				 | 
			
			
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					शूकर-क्षेत्र					 :
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					पुं० [सं० मध्यम० स०] एक प्राचीन तीर्थ जो नैमिषारण्य के पास है।				 | 
			
			
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					शूकर-दंष्ट्र					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का क्षुद्र रोग जिसे सूअर दाढ कहते हैं।				 | 
			
			
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					शूकरक					 :
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					पुं० [सं० शूकर+कन्] एक प्रकार का शालिधान्य।				 | 
			
			
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					शूकरकंद					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] वाराही कंद।				 | 
			
			
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					शूकरता					 :
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					स्त्री० [सं० शूकर+तल्-टाप्] सूअर होने की अवस्था या भाव। सूअरपन।				 | 
			
			
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					शूकरपादिका					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स०] १. केवाँच। कौंछ। २. कोलशिंबी। सेम।				 | 
			
			
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					शूकरमुख					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] एक नरक का नाम।				 | 
			
			
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					शूकराक्षिता					 :
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					स्त्री० [सं० शूकराक्षि, ब० स०+तल्-टाप्] एक प्रकार का नेत्र-रोग।				 | 
			
			
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					शूकरास्या					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स०] एक बौद्ध देवी जिसे वाराही भी कहते हैं।				 | 
			
			
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					शूकरिक					 :
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					पुं० [सं० शूकर+ठन्-इक] एक प्रकार का पौधा।				 | 
			
			
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					शूकरिका					 :
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					स्त्री० [सं० शूकरिक-टाप्] एक प्रकार की चिड़िया।				 | 
			
			
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					शूकरी					 :
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					स्त्री० [सं० शूकर-ङीष्] १. सुअरी। वाराही। २. खैरी साग। ३. वाराही कंद। गेंठी। ४. सूँस नामक जल-जन्तु। ५. विधारा।				 | 
			
			
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					शूकल					 :
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					पुं० [सं० शूक√ला (लेना)+क] ऐसा घोड़ा जो जल्दी चौंक या भड़क जाता हो और फिर जल्दी वश में आता हो।				 | 
			
			
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					शूका					 :
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					स्त्री० [सं० शूक+अच्-टाप्] कौंछ केवाँच।				 | 
			
			
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					शूकी					 :
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					स्त्री० [सं० शूक] छोटा नुकीला काँटा (स्पाइक)।				 | 
			
			
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					शूक्त					 :
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					पुं० [सं० शुक्त] सिरका।				 | 
			
			
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					शूक्ष्म					 :
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					वि०=सूक्ष्म।				 | 
			
			
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