शब्द का अर्थ
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विस :
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पुं० [सं० वि√सो (तनूकरण)+क] कमल। पुं०=विष।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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विसंकट :
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पुं० [सं० ब० स०] १. इंगुदी या हिंगोट नाम का वृक्ष। २. शेर। सिंह। वि० बहुत बड़ा। विशाल। |
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विसंक्रमण :
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पुं० [सं०] [भू० कृ० विसंक्रमित] बहुत अधिक ताप पहुँचाकर ऐसी क्रिया करना जिससे किसी पदार्थ में लगे हुए कीटाणु या रोगाणु पूरी तरह से नष्ट हो जाएँ और दूसरी वस्तुओं में लगकर उन्हें दूषित न करने पाएँ (स्टरिलाईजेशन) जैसे—शल्य चिकित्सा में चीड़-फाड़ करने से पहले नश्तरों आदि का होनेवाला विसंक्रमण। |
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विसंगत :
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वि० [सं० ब० स० या तृ० त० वा] जो संयत न हो। जिसके साथ संगति न बैठती हो। बे-मेल। |
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विसंज्ञ :
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वि० [सं० ब० स०] संज्ञाहीन। बेहोश। |
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विसंधि :
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स्त्री० [सं०] समस्त पदों या शब्दों की संधियाँ मनमाने ढंग से बनाना-बिगाड़ना जो साहित्य में एक दोष माना गया है। |
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विसंधिक :
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वि० [सं० ब० स०] जिनकी या जिनसे संधि न हो। |
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विसँभारा :
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वि० [हि० वि+संभार] जिसकी सुध-बुध ठिकाने न हो। |
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विसम :
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वि०=विषम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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विसम्मति :
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स्त्री० [सं०] किसी विषय में दूसरे के मत से सहमत न होने की अवस्था या भाव। विमत होना (डिस्सेन्ट)। |
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विसर्ग :
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पुं० [सं० वि√सृज्+घञ्] १. सामने आए हुए काम या बात के सम्बन्ध में आवश्यक कार्यवाही उचित निर्णय आदि करके उसे निपटाने की क्रिया या भाव। (डिस्पोजल)। २. दान। ३. त्याग। ४. मल-मूत्र का त्याग। शौच। ५. मृत्यु। ६. मोक्ष। ७. प्रलय। ८. वियोग। ९. चमक। दीप्ति। १॰. सूर्य का एक अयन। ११. वर्षा, शरद और हेमन्त ऋतुओं का समूह। १२. व्याकरण के अनुसार एक वर्ण जिससे ऊपर-नीचे दो बिन्दु होते हैं और उसका उच्चारण प्रायः अर्द्धह के समान होता है। |
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विसर्गी :
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वि० [सं०] १. जिसमें विसर्ग हो। विसर्ग से युक्त। २. बीच-बीच में ठहरने या रुकनेवाला। जैसे—विसर्गी ज्वर। ३. दानी। ४. त्यागी। |
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विसर्गी-ज्वर :
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पुं० [सं०] वह ज्वर जो बराबर बना रहता हो, बल्कि बीच-बीच में कुछ समय के लिए उतर जाता हो। अंतरायिक ज्वर। विरामी ज्वर (इन्टरमिटेन्ट फीवर)। |
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विसर्जन :
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पुं० [सं० वि√सृज् (त्याग करना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० विसर्जित] १. परित्याग करना। छोड़ना। २. किसी को कुछ करने का आदेश देकर कहीं भेजना। ३. कहीं से प्रस्थान करना। विदा होना। ४. अन्त। समाप्ति। ५. दान। ६. देव-पूजन के सोलह उपचारों में से अंतिम उपचार जिसमें आहूत देवता के प्रति यह निवेदन होता है कि अब पूजन हो चुका, आप कृपया प्रस्थान करें। ७. उक्त के आधार पर पूजन आदि के उपरान्त प्रतिमा या विग्रह का किसी जलाशय में किया जानेवाला प्रवाह। भसान। जैसे—दुर्गा या सरस्वती की मूर्ति का गंगा में होनेवाला विसर्जन। ८. कार्य की समाप्ति पर उसके सदस्यों आदि का कार्य-स्थल से होनेवाला प्रस्थान। |
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विसर्जनी :
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स्त्री० [सं० विसर्जन+ङीष्] गुदा के मुँह पर चमड़े का एक भाग। |
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विसर्जनीय :
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वि० [सं० वि√सॉज्+अनीयर्] जिसका विसर्जन हुआ हो सके या किया जाने को हो। |
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विसर्जित :
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भू० कृ० [सं० वि√सृज्+क्त, इत्व] जिसका विसर्जन हुआ हो। |
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विसर्प :
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पुं० [सं० वि√सृप् (सरकना चलना)+घञ्] १. रेंगते हुए या मन्द गति से इधर-उधर घूमना, फैलना या बढ़ना। २. खुजली नामक चर्म रोग। ३. नाटक में किसी कार्य का अप्रत्याशित रूप से होनेवाला दुःखद परिणाम। |
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विसर्पण :
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पुं० [सं० वि√सृप्+ल्० युट-अन] १. सांप की तरह लहराते हुए चलना। २. उक्त प्रकार की लहराती हुई आकृति या स्थिति। (मिएन्टर) ३. फैलना। ४. फेंकना। ५. फोड़ों आदि का फूटना। |
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विसर्पिका :
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स्त्री० [सं० वि√सृप्+ण्वुल्-अक, इत्व+टाप्, या विसर्प+कन्+टाप्, इत्व] विसर्प या खुजली नामक रोग। |
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विसर्पी (र्पिन्) :
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वि० [सं०] १. तेज चलनेवाला २. फैलनेवाला ३. साँप की तरह लहराते हुए चलनेवाला। लहरियेदार। (मिएन्डर) ४. रंगता हुआ आगे बढ़ने या चलनेवाला। ५. (पौधा या बेल) जो धीरे-धीरे आगे बढ़कर जमीन पर फैले या किसी आधार पर चढ़े (क्रीपिंग)। |
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विसल :
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पुं० [सं० विस√ला (ग्रहण करना)+क, अथवा विस+कलच्] वृक्ष का नया पत्ता। पल्लव। |
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विसवर्त्म :
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पुं० [सं० ब० स०] आँखों का एक प्रकार का रोग। |
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विसंवाद :
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पुं० [सं० वि-सम√वद् (कहना)+घञ्] १. विरोध। झूठा। कथन। २. अनुचित कहासुनी। ३. डांट-फटकार। ४. प्रतिज्ञा भंग करना। ५. खंडन। ६. असहमति। वि० अद्भुत। विलक्षण। |
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विसंहत :
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भू० कृ० [सं० वि-सम√हन् (हिंसा करना)+क्त] १. जो संहत न हो। २. अलग या पृथक् किया हुआ। |
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विसार :
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पुं० [सं० वि√सृ (गमन)+घञ्] १. विस्तार। २. निर्गम। निकास। ३. प्रवाह। बहाव। ४. उत्पत्ति। ५. मछली। |
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विसारक :
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वि० [सं०] विसरण करनेवाला। |
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विसारण :
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पुं० [सं०] [भू० कृ० विसारित, वि० विसारी] १. फैलाना। २. चलाना। ३. निकालाप। ४. कार्य का संपादन करना। |
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विसाल :
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पुं० [अ०] १. मिलना। २. प्रेमी और प्रेमिका का मिलन। २. मृत्यु जिससे आत्मा जाकर परमात्मा से मिल जाती है। उदाहरण-पसे विसाल मयस्सर मुझे विसाल हुआ। मेरे जनाजे में बैठे रहे व सारी रात।—कोई शायर। |
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विसिनी :
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स्त्री० [सं० विस+इनि+ङीष्] कमलिनी। वि०=व्यसनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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विसूचन :
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पुं० [सं० वि√सूच् (सूचित करना)+ल्युट—अन] सूचित करना। जतलाना। |
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विसूचिका :
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स्त्री० [सं० वि√सूच्+अच्+कन्+टाप्, इत्व] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का रोग जिसे कुछ लोग हैजा कहते हैं। |
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विसूची :
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स्त्री० [सं० वि√सूच्+अच्+ङीष्] वह रोग जिसमें कै और दस्त आते हैं परन्तु पेशाब नहीं होता। |
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विसूरण :
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पुं० [सं० वि√सूर् (दुःख होना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० विसूरित] १. दुःख। रंज। २. चिन्ता। फिक्र। ३. विरक्ति। वैराग्य। |
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विसृत :
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भू० कृ० [सं० वि√सृ (गमन)+क्त] [भाव० विसृति] १. फैला या फैलाया हुआ। २. ताना हुआ। ३. कथित। उक्त। |
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विसृष्ट :
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भू० कृ० [सं० वि√सृज् (रचना)+क्त, षत्व, त-ट] [भाव० विसृष्टि] १. जिसकी सृष्टि हुई हो। २. छोड़ा, त्यागा या निकाला हुआ। ३. प्रेरित। पुं० विसर्ग नामक लेख-चिन्ह जो इस प्रकार लिखा जाता है— |
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विसृष्टि :
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स्त्री० [सं० वि√सृज्+क्तिन्] १. विसृष्ट होने की अवस्था या भाव। २. सृष्टि। ३. छोड़ना, त्यागना या निकालना। ४. भेजना। ५. प्रेरणा करना। ६. संतान। ७. स्राव। |
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विसैन्यीकरण :
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पुं० [सं०] [भू० कृ० विसैन्यीकृत] युद्ध के आवश्यकतावश प्रस्तुत किये गये सैनिकों को सैन्य-सेवा से पृथक् करना। सैन्य-विघटन (डिमिलिटराइजेशन)। |
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विसौख्य :
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पुं० [सं० मध्य० स०] सौख्य या सुख का अभाव। कष्ट। दुःख। |
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विस्खलन :
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पुं० [सं०] [भू० कृ० विस्खलित]=स्खलन। |
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विस्त :
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पुं० [सं०√विस् (छोड़ना)+क्त] १. एक कर्ष का परिमाण २. सोना। स्वर्ण। |
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विस्तर :
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पुं० [सं० वि√स्तृ (फैलना)+अप्] [भाव० विस्तृता] १. विस्तार। २. प्रेम। ३. समूह। ४. आसन। ५. आधार। ६. गिनती। संख्या। ६. शिव का एक नाम। वि० अधिक। बहुत। |
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विस्तरण :
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पुं० [सं० वि√स्तृ+ल्युट—अन] १. विस्तार करना। बढ़ाना। विस्तृत करना। |
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विस्तार :
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पुं० [सं० वि√स्तृ+घञ्] १. फैले हुए होने की अवस्था, धर्म या भाव २. वह क्षेत्र या सीमा जहाँ तक कोई चीज फैली हुई हो। फैलाव। (एक्सटेन्ट) ३. लंबाई और चौड़ाई। ४. विस्तृत। विवरण। ५. शिव। ६. विष्णु। ७. वृक्ष की शाखा। ८. गुच्छा। |
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विस्तारण :
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पुं० [सं०] १. विस्तार करना। फैलाना। २. काम-काज या कर्म-क्षेत्र बढ़ाना। |
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विस्तारना :
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स० [सं० विस्तरण] विस्तार करना। फैलाना। |
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विस्तारवाद :
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पुं० [सं०] यह मत या सिद्धान्त कि राज्य को अपने अधिकार क्षेत्र और सीमाओं का निरन्तर विस्तार करते रहना चाहिए, भले ही इसमें दूसरे राज्यों या राष्ट्रों का अहित होता हो (एक्सपैन्शनिज्म) |
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विस्तारिणी :
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स्त्री० [सं० वि√स्तृ+णिनि+ङीष्] संगीत में एक श्रुति। |
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विस्तारित :
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भू० कृ० [सं० विस्तार+इतच्] १. जिसका विस्तार हुआ हो। २. व्यापक विवरण से युक्त। |
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विस्तारी (रिन्) :
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वि० [सं० विस्तारिन्] १. जिसका विस्तार अधिक हो। विस्तृत। शक्तिशाली। पुं० बड़ या बरगद का पेड़। |
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विस्तीर्ण :
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भू० कृ० [सं० वि√स्तृ+क्त] [भाव० विस्तीर्णता] १. फैला या फैलाया हुआ हो। विस्तृत किया हुआ। २. व्यापक सूत्रवाला। ३. बहुत चौड़ा। ४. बहुत बड़ा। ५. विपुल। |
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विस्तृत :
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भू० कृ० [सं० वि√स्तृ+क्त] [भाव० विस्तृति] १. जो अधिक दूर तक फैला हुआ हो। लंबा-चौड़ा। विस्तारवाला। जैसे—यहाँ आप लोगों के लिए बहुत विस्तृत स्थान है। २. कथन या वर्णन जिसमें सब अंग या बातें विस्तारपूर्वक बताई गई हों। जैसे—विस्तृत विवेचन। ३. बहुत बड़ा या लम्बा चौड़ा। (एक्सटेन्सिव उक्त सभी अर्थों में) |
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विस्तृति :
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स्त्री० [सं० वि√स्तृ+क्तिन्] १. फैलाव। विस्तार। २. प्याप्ति। ३. लंबाई चौड़ाई या गहराई। ४. वृत्त का व्यास। |
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विस्थापन :
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पुं० [सं०] [भू० कृ० विस्थापित] १. जो कहीं स्थापित या स्थित हो उसे वहाँ से हटाना। २. किसी स्थान पर बसे हुए लोगों को कहीं से बलपूर्वक हटाना और वह जगह उनसे खाली करा लेना (डिस्प्लेसमेंट)। |
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विस्थापित :
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भू० कृ० [सं० वि√स्था+णिच्, पुक्+क्त] १. जो अपने स्थान से हटा दिया गया हो। २. जिससे उसका निवास-स्थान जबरदस्ती छीन लिया गया हो (डि-स्प्लेस्ड)। |
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समानार्थी शब्द-
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विस्थिति :
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स्त्री० [सं०] ऐसी विकट स्थिति जिसमें उलट-फेर की संभावना हो। |
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विस्फार :
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पुं० [सं० वि√स्फुर् (संचालन)+घञ्, उ-आ] [वि० विस्फारित] १. धनुष की टंकार। कमान चलाने का शब्द। धनुष की डोरी। ३. फैलाव। विस्तार। ४. तेजी। फुरती। काँपना। कंपन। ५. विकास। |
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विस्फारक :
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पुं० [सं० विस्फार+कन्] एक प्रकार का विकट सन्निपात जिसमें रोगी को खाँसी, मूर्च्छा, मोह और कम्प होता है। वि० विस्फार करनेवाला। |
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समानार्थी शब्द-
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विस्फारण :
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पुं० [सं० वि√स्फुर् (हिलना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० विस्फारित] १. खोलना या फैलाना। २. पक्षियों का डैने फैलाना। ३. फाड़ना। ४. धनुष चढ़ाना। |
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विस्फारित :
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भू० कृ० [सं० विस्फार+इतच्] १. अच्छी तरह से खोला या फैलाया हुआ। जैसे—विस्फारित नेत्र। २. फाड़ा हुआ। |
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विस्फीत :
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भू० कृ० [सं०] [भाव० विस्फीति] जो स्फीत न हो। ‘स्फीत’ का विपर्याय। |
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समानार्थी शब्द-
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विस्फीत :
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स्त्री० [सं० ब० स०] दे० ‘अवस्फीति’। |
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विस्फुरण :
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पुं० [सं० वि√स्फुर् (कंपित होना)+ल्युट—अन] [भू० कृ० विस्फुरित] १. विद्युत का कंपन। २. स्फुरण। |
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समानार्थी शब्द-
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विस्फुलिंग :
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पुं० [सं० वि√स्फुर (हिलना)+डु=विस्फु, विस्फु+लिंग, ब० स०] १. एक प्रकार का विष। २. आग की चिनगारी। स्फुलिंग। |
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समानार्थी शब्द-
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विस्फूर्जन :
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पुं० [सं० वि√स्फूर्ज (फैलाना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० विस्फूर्जित] १. किसी पदार्थ का बढ़ना या फैलाना। विकास। २. गरजना। |
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विस्फोट :
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पुं० [सं० वि√स्फुट्+घञ्] १. अन्दर की भरी हुई आग या गरमी का उबल या फूटकर बाहर निकलना। जैसे—ज्वाला मुखी का विस्फोट। २. उक्त क्रिया के कारण होनेवाला जोर का शब्द। ३. एकत्र गैस, बारूद आदि का अग्नि या ताप के कारण जोर का शब्द करते हुए बाहर निकल पड़ना। (एक्सप्लोजन)। ४. बड़ा और जहरीला फोड़ा। |
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समानार्थी शब्द-
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विस्फोटक :
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पुं० [सं० विस्फोट+कन्] १. फोड़ा विशेषतः जहरीला फोड़ा। २. चेचक या शीतला नामक रोग। वि० (पदार्थ) जो अन्दर की गरमी या ताप के कारण चटक कर फूट जाए। |
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समानार्थी शब्द-
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विस्फोटन :
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पुं० [सं० वि√स्फुट्+ल्युट-अन] विस्फोट उत्पन्न करने की क्रिया या भाव। |
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समानार्थी शब्द-
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विस्मय :
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पुं० [सं० वि√स्मि+अच्] १. आश्चर्य। २. अचम्भा। २. वह विशिष्ट स्थिति जब किसी प्रकार की अप्रत्याशित तथा चमत्कारिक बात या वस्तु सहसा देखकर प्रसन्नता-मिश्रित आश्चर्य होता है। ३. साहित्य में उक्त के आधार पर अद्भुत रस का स्थायी भाव। वि० जिसका अभिमान या गर्व चूर्ण हो चुका हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विस्मयाकुल :
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वि० [सं० तृ० त०] जो बहुत अधिक विस्मय के कारण घबरा या चकरा गया हो। |
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समानार्थी शब्द-
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विस्मयादि-बोधक :
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पुं० [सं०] व्याकरण में अव्यय का वह भेद जो ऐसे अधिकारी शब्द का सूचक होता है जो आश्चर्य, खेद, दुःख, प्रसन्नता आदि का सूचक होता है। जैसे— वाह, हाय ओह आदि। |
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समानार्थी शब्द-
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विस्मरण :
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पुं० [सं० वि√स्मृ (स्मरण करना)+ल्युट्-अन, मध्यम, स०] [भू० कृ० विस्तृत] १. स्मरण न होने की अवस्था या भाव। भूलना। २. भुलाना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विस्मापन :
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पुं० [सं० वि√स्मि (आनन्द होना)+णिच्, आत्व, पुक्+ल्युट-अन] १. गंधर्व नगर। २. कामदेव। वि० विस्मयकारक। |
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समानार्थी शब्द-
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विस्मारक :
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वि० [सं० वि√स्मृ (स्मरण करना)+णिच्+ण्वुल्-अक] विस्मरण कराने या भुला देनेवाला। ‘स्मारक’ का विपर्याय। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विस्मिति :
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भू० कृ० [सं० वि√स्मि (आश्चर्य होना)+क्त] [भाव० विस्मृति] जिसे विस्मय हुआ हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विस्मिति :
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स्त्री० [सं० वि√स्मि (आश्चर्य होना)+क्तिन्]=विस्मय। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विस्मृत :
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भू० कृ० [सं० वि√स्मि+क्त] [भाव० विस्मृति] १. जिसका स्मरण न रहा हो। भूला हुआ। २. भुलाया हुआ। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विस्मृति :
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स्त्री० [सं० वि√स्मृ+कित, मध्यम० स०] भूल जाना। विस्मरण। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विस्रंभ :
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पुं० [सं०]=विश्रंभ। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विस्रवण :
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पुं० [सं० वि√स्रु (बहना)+ल्युट—अन] १. बहना। २. झड़ना ३. रसना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विस्रा :
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स्त्री० [सं० विस्र+अच्+टाप्] १. हाऊबेर। हवुषा। २. चरबी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विस्राम :
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पुं०=विश्राम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विस्राव :
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पुं० [सं० वि√स्रु (बहना)+घञ्] भात का माँड़। पीच। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विस्रावण :
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पुं० [सं० वि√स्रु (बहना)+णिच्+ल्युट-अन] [भू० कृ० विस्रावित] १. बहना। २. रक्त बहाना। ३. अर्क चुआना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विस्वर :
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वि० [सं० ब० स०] १. स्वरहीन। २. बेमेल। ३. कर्कश (स्वर)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विस्वाद :
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वि० [सं० ब० स० या मध्यम० स०] १. जिसमें स्वाद न हो। २. फीका। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |