शब्द का अर्थ
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विरोध :
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पुं० [सं० वि√रुध् (ढकना)+घञ्] १. विशेष रूप से होनेवाला रोध या रुकावट। २. किसी कार्य या प्रयत्न को रोकने या विफल करने के लिए उसके विपरीत होनेवाला प्रयत्न (आँपोजीशन) ३. भिन्न-भिन्न तथ्यों विचारों आदि में होनेवाला ऐसा तत्त्व जो एक दूसरे के विपरीत हो। (रिपग्नेन्सी) ४. मतों व्यक्तियों सिद्धान्तों आदि में होनेवाली पारस्परिक विपरीतता। ५. उक्त के फलस्वरूप आपस में होनेवाला ऐसा संघर्ष जिसमें प्रायः वैर या शत्रुता का भाव भी सम्मिलित होता है। (कॉन्प्लिक्ट) ६. आपस में होनेवाली अनवन या बिगाड़। पद—वैर विरोध। ७. ऐसी स्थिति जिसमें दो बातें एक साथ हो सकती हों। विप्रतिपति। व्याघात। ८. उलटी या विपरीत स्थिति। ९. विरोधाभास। (दे०) १॰. नाटक का एक अंग जिसमें किसी बात का वर्णन करते समय विपत्ति का आभास दिखाया गया है। ११. नाश। |
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समानार्थी शब्द-
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विरोध-पीठ :
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पुं० [सं०] विधायिका सभा में विरोध पक्षवालों के बैठने का स्थान (ऑपोजीशन बेंच)। |
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विरोधक :
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वि० [सं० वि√रुध् (ढकना)+ण्वुल्-अक] १. विरोध संबंधी। २. विरोधी। पुं० नाटक में ऐसा विषय जिसका प्रदर्शन या वर्णन निषिद्ध हो। |
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विरोधन :
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पुं० [सं० वि√रुध् (ढकना)+ल्युट-अन] [वि० विरोधी, विरोधित, विरोध्य] १. विरोध करने की क्रिया या भाव। प्रतिरोध। ३. ध्वंस। नाश। बरबादी। |
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विरोधना :
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स० [सं० विरोधन] १. किसी का या किसी से विरोध करना। २. वैर करना। |
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विरोधाभास :
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पुं० [सं०] साहित्य में एक विरोधमूलक अर्थालंकार जिसमें वस्तुतः विरोध का वर्णन न होने पर भी विरोध का आभास होता है। |
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विरोधित :
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भू० कृ० [सं० वि√रुध् (ढकना)+क्त] जिसका विरोध किया गया हो। |
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विरोधिता :
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स्त्री० [सं० विरोधिन्+तल्+टाप्] १. विरोध। २. वैर। शत्रुता। ३. फलित ज्योतिष में नक्षत्रों की प्रतिकूल दृष्टि। |
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विरोधी (धिन्) :
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वि० [सं०] १. जो किसी के विरुद्ध आचरण करता हो। विरोध करनेवाला। २. जो इस प्रयास में हो कि अमुक कार्य को प्रचलन में न लाया जाय अथवा प्रचलन से उठा लिया जाय। ३. विरुद्ध पडने या होनेवाला। उलटा। विपरीत। पुं०१. विपक्षी। २. शत्रु। वैरी। |
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विरोध्य :
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वि० [सं० विरोध+यत्] जिसका विरोध किया जा सके या किया जाने को हो। |
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