शब्द का अर्थ
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					विपरीत					 :
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					वि० [सं० वि+परि√इ (गमन)+क्त] [भाव जो विपरीतता] १. जैसा होना चाहिए उसका उलटा। उलटे, क्रम स्थिति आदि में होनेवाला। २. जो अनुकूल या मुआफिक न हो। मेल न खानेवाला। ३. नियम के विरुद्ध होनेवाला। गलत। ४. असत्य। मिथ्या। पुं० केशव के अनुसार एक अर्थालंकार जिसमें कार्य की सिद्धि में स्वयं साधक या बाधक होना दिखाया जाता है।				 | 
			
			
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					विपरीत लिंग					 :
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					पुं० दे० ‘लिंग’ (न्यायशास्त्रवाला विवेचन)।				 | 
			
			
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					विपरीत-रति					 :
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					स्त्री० [सं० कर्म० स०] साहित्य में ऐसी रति जिसमें संभोग के समय पुरुष नीचे और स्त्री ऊपर रहती है। काम-शास्त्र का पुरुषायित बन्ध।				 | 
			
			
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					विपरीत-लक्षणा					 :
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					स्त्री० [सं० कर्म० स०] किसी चीज की ऐसी व्यंग्यपूर्ण अभिव्यक्ति जिसमें परस्पर विरोधी गुणों, लक्षणों आदि का उल्लेख भी हो।				 | 
			
			
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					विपरीतक					 :
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					वि० [सं० विपरीत+कन्] विपरीत। पुं०=विपरीत रति।				 | 
			
			
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					विपरीता					 :
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					स्त्री० [सं० विपरीत+टाप्] १. बदचलन स्त्री। दुराचारिणी। २. दुश्चरित्रा पत्नी।				 | 
			
			
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					विपरीतार्थ					 :
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					वि० [सं० कर्म० स०] विपरीत अर्थात् उलटे अर्थवाला।				 | 
			
			
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					विपरीतोपमा					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] केशव के अनुसार एक अलंकार जिसमें किसी भाग्यवान् व्यक्ति की हीनता वर्णन की जाय और अति दीन दशा में दिखाया जाय।				 | 
			
			
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