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विद  : वि०=विद।
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विदग्ध  : भू० कृ० [सं० वि√दह् (जलाना)+क्त] [भाव० विदग्धता] १. जला हुआ। २. नष्ट। ३. तपा हुआ। ४. जिसने किसी विषय का अच्छा या पूरा ज्ञान प्राप्त करने के लिए अनेक कष्ट सहे हों। ५. चतुर। ६. रसिक।
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विदग्धक  : पुं० [सं० विदग्ध+कन्] जलती हुई लाश (बौद्ध)।
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विदग्धता  : स्त्री० [सं० विदग्ध+तल्+टाप्] विदग्ध (देखें) होने की अवस्था या भाव।
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विदग्धा  : स्त्री० [सं० विदग्ध+टाप्] साहित्य में वह परकीया नायिका जो चतुरता पूर्वक पर-पुरुष को अपने प्रति अनुरक्त करती है।
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विदत्त  : भू० कृ० [सं० तृ० त०] १. दिया या सौंपा हुआ। बाँटा हुआ।
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विदमान  : वि०=विद्यमान्।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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विदर  : पुं० [सं० वि०√दृ (फाड़ना)+अच्] दराज। (सूराख)।
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विदरण  : पुं० [सं० वि√दृ+ल्युट-अन] [भू० कृ० विदरित] १. विदीर्ण करना। फाड़ना। २. विद्रधि-नामक रोग।
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विदरना  : अ० [सं० विदरण] विदीर्ण होना। फटना। स० १. विदारण करना। फाड़ना। २. कष्ट देना। पीड़ित करना। उदाहरण—विदर न मोहि पीत रंग ऐसे।—नूर मुहम्मद।
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विदर्भ  : पुं० [सं० ब० स०] १. आधुनिक महाराष्ट्र के बरार नामक प्रदेश का पुराना नाम। २. उक्त प्रदेश का राजा।
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विदर्भजा  : स्त्री० [सं० विदर्भ√जन् (उत्पन्न करना)+ड+टाप्] १. अगस्त्य ऋषि की पत्नी लोपामुद्रा। २. दमयंती। ३. रुक्मिणी।
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विदर्भराज  : पुं० [सं० ष० त०] दमयंती के पिता राजा भीष्म जो विदर्भ के राजा थे।
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विदर्व्य  : पुं० [सं० ब० स०] बिना फनवाला साँप।
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विदल  : वि० [सं० ष० त०] १. दल से रहित। बिना दल का। २. खिला हुआ। विकसित। ३. फटा हुआ। पुं० १. सोना। स्वर्ण। २. अनार का दाना। ३. चना। ४. दाल की पीठी। ५. बाँस की पट्टियों का बना हुआ दौरा या पिटारा।
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विदलन  : पुं० [सं० वि√दल् (दलन)+ल्युट-अन] [भू० कृ० विदलित] १. मलने, दलने या दबाने आदि की क्रिया। २. दलने, पीसने या रगड़ने की क्रिया।
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विदलना  : स० [सं० विदलन] दलित करना। नष्ट करना।
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विदलान्न  : पुं० [सं० ब० स० कर्म० स०] १. दला हुआ अन्न। २. दाल। ३. पकाई हुई दाल।
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विदलित  : भू० कृ० [सं० वि√दल् (दलन करना)+क्त] १. जिसका अच्छी तरह दलन किया गया हो। २. कुचला या रौंदा हुआ। ३. काटा, चीरा या फाड़ा हुआ। ४. बुरी तरह से ध्वस्त या नष्ट किया हुआ।
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विदा  : स्त्री० [सं०√विद्+अङ्+टाप्] बुद्धि। ज्ञान। अक्ल। स्त्री० [सं० विदाय, मि० अ० विदाअ] १. रवाना होना। प्रस्थान। २. कहीं से चलने के लिए मिली हुई अनुमति।
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विदाई  : स्त्री० [हिं० विदा+ई (प्रत्यय)] १. विदा होने की क्रिया या भाव। प्रस्थान। २. विदा होने के लिए मिली हुई अनुमति। ३. विदा होने के समय मिलनेवाला उपहार या धन। ४. किसी के बिदा होने के समय उसके प्रति शुभ कामना प्रकट करने के लिए लोगों का एकत्र होना (फ़ेयर वेल)। क्रि० प्र०—देना।—पाना।—माँगना।—मिलना।
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विदाय  : पुं० [सं० ब० स०] १. विसर्जन। २. प्रस्थान। रवानगी। ३. प्रस्थान करने के लिए मिली हुई अनुमति। ४. दान। स्त्री०=विदाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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विदायी (यिन्)  : वि० [सं० विदाय+इनि] १. जो ठीक तरह से चलाता या रखता हो। नियामक। २. दाता। दारी। स्त्री०=विदाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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विदार  : पुं० [सं० वि√दृ (फाड़ना)+घञ्] १. युद्ध। समर। २. फाड़ना। विदारण।
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विदारक  : पुं० [सं० वि√दृ+ण्वुल-अक] १. वृक्ष, पर्वत आदि जो जल के बीच में हो। २. छोटी नदियों के तल में बना हुआ गड्ढा जिसमें नदी के सूखने पर भी पानी बचा रहता है। ३. नौसादार। वि० विदारण करनेवाला या फाड़नेवाला।
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विदारण  : पुं० [सं० वि√दृ+णिच्+ण्वुल्—अक] १. बीच में से अलग करके दो या अधिक टुकड़े करना। चीरना, फाड़ना, या ऐसी ही और कोई क्रिया करना। २. मार डालना। वध। ३. ध्वस्त या नष्ट करना। ४. कनेर। ५. खपरिया। ६. नौसादार।
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विदारना  : स० [हिं० विदरना] १. विदारण करना। फाड़ना।
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विदारिका  : स्त्री० [सं० वि√दृ+णिच्+ण्वुल-अक+टाप्, इत्व] १. बृहत्संहिता के अनुसार एक प्रकार की डाकिनी जो घर के बाहर अग्निकोण में रहती है। २. गंभारी नामक वृक्ष। ३. शालपर्णी। ४. कडुई तुँबी। ५. विदारी कंद।
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विदारित  : भू० कृ० [सं० वि√दृ+णिच्+क्त] जिसका विदारण हुआ हो।
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विदारी (रिन्)  : वि० [सं० वि०√दृ+णिनि] विदारक। स्त्री० [सं० वि√दृ (फाड़ना)√ णिच् +अच्+ ङीष्] १. शालपर्णी। २. भुई कुम्हड़ा। ३. विदारी कंद। ४. क्षीर काकोली। ५. ‘भाव प्रकाश’ के अनुसार अठारह प्रकार के कंठ रोगों में से एक प्रकार का कंठ रोग। ६. एक प्रकार का क्षुद्र रोग जिसमें बगल में फुंशी निकलती है। ७. वाग्भट्ट के अनुसार मेढ़ा, सींगी, सफेद पुनर्नवा देवदार अनन्तमूल, बृहती आदि ओषधियों का एक गण।
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विदारी गंधा  : स्त्री० [सं०] १. सुश्रुत के अनुसार शालपर्णी, भुई कुम्हला, गोखरू, शतमूली अनंतमूल, जीवंती, मुगवन, कटियारी, पुनर्नवा आदि औषधियों का एक गण। २. शालपर्णी।
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विदारी-कंद  : पुं० [सं० ब० स०, ष० त०] भुई कुम्हड़ा।
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विदाह  : पुं० [सं० वि√दह् (जलाना)+घञ्] [वि० विदाहक, विदाही] १. पित्त के प्रकोप के कारण होनेवाली जलन। २. हाथ पैरों में होनेवाली जलन।
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विदाही  : वि०=विदाहक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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विदिक  : स्त्री० [सं० वि√दिश्+क्विप्] जो दिशाओं के बीच की दिशा कोण। विदिशा।
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विदित  : भू० कृ० [सं० विद् (जानना)+क्त] जाना हुआ। अवगत पुं० कवि।
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विदिता  : स्त्री० [सं० विदित+टाप्] जैनों की एक देवी।
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विदिथ  : पुं० [सं० विद्+थन्, इ] १. पंडित। विद्वान। २. योगी।
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विदिशा  : स्त्री० [सं०] दो दिशाओं के बीच का कोण।
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विदिषा  : स्त्री० [सं० तृ० त०+टाप्] १. वर्तमान भेलसा नामक नगर का प्राचीन नाम। २. एक पौराणिक नदी जो पारियात्र नामक पर्वत से निकली हुई कही गई है। ३. जो दिशाओं के बीच की दिशा। कोण।
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विदीपक  : पुं० [सं० कर्म० स०] दीपक दीया।
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विदीर्ण  : भू० कृ० [सं०] १. जिसे फाड़ा गया हो। २. टूटा या तोड़ा हुआ। ३. जो मार डाला गया हो। निहत।
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विदु  : पुं० [सं०√विद् (जानना)+कु] १. हाथी के मस्तक पर का वह गहरा अंश जो दोनों कुंभों के बीच में पड़ता है। २. घोड़े के कान के बीच का भाग। वि० बुद्धिमान्।
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विदुख  : पुं० [स्त्री० विदुखी]=विदुष (विद्वान्)।
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विदुत्तम  : पुं० [सं० ष० त०] १. वह जो सब बातें जानता हो। २. विष्णु।
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विदुर  : पुं० [सं०√विद् (जानना)+कुरच्] १. वह जो जानकार हो। २. ज्ञानवान्। ज्ञानी। ३. पंडित। पुं० १. अम्बिका के गर्भ से उत्पन्न व्यास के पुत्र जो धृतराष्ट्र और पांडु के भाई थे। २. एक प्राचीन पर्वत। विदूर। पुं०=वैदूर्य (मणि)।
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विदुल  : पुं० [सं० वि√दुल् (झूलना)+क√विद् (जानना)+कुलच्] १. बेंत। २. जलबेंत। ३. अमलबेंत। ४. बोल नामक गन्ध द्रव्य।
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विदुला  : स्त्री० [सं० विदुल+टाप्] १. सातला नाम का थूहर। २. विट् खदिर।
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विदुष  : पुं० [सं०√विद् (जानना)+क्वसु, व-उ] [स्त्री० विदुषी] विद्वान। पंडित।
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विदुषी  : स्त्री० [सं० विदुष+ङीष्] विद्वान स्त्री।
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विदूर  : वि० [सं०] जो बहुत दूर हो। पुं० १. बहुत दूर का प्रदेश। दूर देश। २. एक प्राचीन जनपद अथवा उसमें स्थित एक पर्वत जिसमें वैदूर्य रत्न अधिकता से मिलता था। ३. वैदूर्य मणि।
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विदूरज  : पुं० [सं०] विदूर पर्वत से उत्पन्न, अर्थात् वैदूर्य मणि।
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विदूरत्व  : पुं० [सं० विदूर+त्व] विदूर होने की अवस्था या भाव। बहुत अधिक अन्तर या दूरी।
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विदूरथ  : पुं० [सं०] १. कुरुक्षेत्र का एक नाम। २. बारहवें मनु का एक पुत्र।
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विदूरित  : भू० कृ० [सं० विदूर+इतच्] दूर किया या परे हटाया हुआ।
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विदूषक  : पुं० [सं०] [स्त्री० विदूषिका] १. दूसरों में दोष बतलाकर उनकी हँसी उड़ानेवाला व्यक्ति। उदाहरण—वेद विदूषक विश्व विरोधी।—तुलसी। २. अपने वेष,चेष्टा, बात-चीत आदि से अथवा ढोंग रचकर और दूसरों की नकल उतारकर लोगों को हँसानेवाला। मसखरा। ३. प्रायः नाटकों में इस प्रकार का एक पात्र जो नायक का अंतरंग मित्र या सखा होता है तथा जिसकी सूरत-शक्ल, हाव-भाव, बातें आदि सब को हँसानेवाली होती है। ४. साहित्य में चार प्रकार के नायकों में से एक प्रकार का नायक जो अपने कौतुक और परिहास आदि के कारण कामकेलि में सहायक होता है। ५. कामुक या विषयी व्यक्ति। ६. भाँड़।
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विदूषण  : पुं० [सं० विद्√दूष् (दूषित करना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० विदूषित] १. किसी पर दोष लगाने की क्रिया या भाव। २. भर्त्सना करना। कोसना।
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विदूषना  : वि० [सं० विदूषण] १. दूसरों पर दोष लगाना। बुरा बताना। २. कष्ट या दुःख देना। अ०=दुःखी होना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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विदूषित  : भू० कृ० [सं० वि√दूष् (दूषित करना)+क्त] १. जिस पर दोष लगाया गया हो। २. दोष से युक्त। खराब। बुरा। ३. जिसकी भर्त्सना की गई हो। निन्दा किया हुआ।
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विदृक् (दृश्)  : वि० [सं० ब० स०] १. जिसे दिखाई न पड़े। अन्धा। २. जो देखने में किसी से भिन्न हो। ‘सदृश’ का विपर्याय।
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विदेय  : वि० [सं० तृ० त०] दिये जाने के योग्य। देय।
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विदेव  : पुं० [सं० ब० स०] १. राक्षस। २. यक्ष।
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विदेश  : पुं० [सं०] स्वदेश से भिन्न दूसरा कोई देश।
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विदेशी  : वि० [सं० विदेश+इनि] १. विदेश अर्थात् दूसरे देश का। २. विदेश में बनने या होनेवाला। जैसे—विदेशी कपड़ा। पुं० विदेश अर्थात् दूसरे देश का निवासी।
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विदेशीय  : वि० [सं० विदेश+छ-ईय]=विदेशी।
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विदेह  : वि० [सं०] १. देह अर्थात् शरीर से रहित। जिसका शरीर न हो। २. हत। बेहोश। ३. शारीरिक चिन्ताओं आदि से रहित। ४. सांसारिक बातो से विरक्त। ५. मृत। पुं० १. वह जिसकी उत्पत्ति माता-पिता से न हुई हो। जैसे—देवता। भूत-प्रेत आदि। २. मिथिला के राजा जनक का एक नाम। मिथिला देश। ४. मिथिला देश का निवासी। मैथिल। ५. राजा निमि का एक नाम।
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विदेह-कैवल्य  : पुं० [सं०] जीवन्मुक्त व्यक्ति को प्राप्त होनेवाला मोक्ष।
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विदेहत्व  : पुं० [सं० विदेह+त्व] १. विदेह होने की अवस्था या भाव। २. मृत्यु। मौत।
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विदेहपुर  : पुं० [सं०] राजा जनक की राजधानी। जनकपुर।
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विदेहा  : स्त्री० [सं० विदेह+टाप्] मिथिला नगरी और प्रदेश का नाम।
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विदेही (हिन्)  : पुं० [सं०] ब्रह्मा। स्त्री० सीता।
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विदोष  : वि० [सं० ब० स०] दोष-रहित। पुं० १. अपराध। २. पाप।
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विद्  : वि० [सं०√विद् (जानना)+क्विप्] जाननेवाला। ज्ञाता। जैसे—ज्योतिर्विद। पुं० १. पंडित। विद्वान। २. बुध ग्रह। ३. तिल का पौधा।
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विद्द  : स्त्री०=विद्या।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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विद्ध  : भू० कृ० [सं०√व्यध् (छेदना)+क्त, य-इ] १. बीच में छेदा या बेधा हुआ। जैसे—विद्ध कर्ण। २. फेंका हुआ। ३. घायल। ४. जिसमें बाधा पड़ी हो। ५. टेढ़ा। वक्र। ६. किसी के साथ बँधा हुआ। बद्ध। ७. किसी के साथ मिला या लगा हुआ। जैसे—दशमी सिद्ध एकादशी अर्थात् ऐसी एकादशी जिसमें पहले कुछ दशमी भी रही हो। ८. मिलता-जुलता। ९. पंडित। विद्वान।
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विद्ध-व्रण  : पुं० [सं० तृ० त०] १. काँटा चुभने से होनेवाला घाव। २. ऐसा व्रण जो किसी चीज के अंग में चुभने या धँसने के फलस्वरूप हुआ हो।
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विद्धक  : वि० [सं० विद्ध+कन्] विद्ध करनेवाला। पुं० मिट्टी खोदने की एक प्रकार की खंती या फावड़ा।
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विद्धा  : स्त्री० [सं० विद्ध+टाप्] छोटी-छोटी फुन्सियाँ। वि० सं० विद्ध का स्त्री।
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विद्धि  : स्त्री० [सं०√व्यध् (आघात करना)+क्ति, य-इ] १. चुभने या धँसने की क्रिया या भाव। वेध। २. इस प्रकार होनेवाला छेद। आघात। चोट। प्रहार।
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विद्यद्दर्शी  : पुं० [सं०] एक प्रकार का यंत्र जिसकी सहायता से यह देखा जाता है कि किसी वस्तु में कैसी और कितनी विद्युत की धारा का संचार है (एलेक्ट्रोस्कोप)।
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विद्यमान  : वि० [सं०] [भाव० विद्यमानता] १. जो अस्तित्व में हो। २. जो सामने उपस्थित या मौजूद हो। विशेष—‘उपस्थित’ और ‘विद्यमान’ में मुख्य अन्तर यह है कि ‘उपस्थित’ में तो किसी के सामने आने या होने का भाव प्रधान है, परन्तु ‘विद्यमान’ में कहीं या किसी जगह वर्तमान रहने या सत्तात्मक होने का भाव मुख्य है।
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विद्यमानत्व  : पुं० [सं० विद्यमान+त्व]=विद्यमानता।
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विद्या  : स्त्री० [सं०] १. अध्ययन, शिक्षा आदि से अर्जित किया जानेवाला ज्ञान। इल्म। २. पुस्तकों, ग्रन्थों आदि में सुरक्षित ज्ञान। इल्म। ३. किसी तथ्य या विषय का विशिष्ट और व्यवस्थित ज्ञान। ४. किसी गंभीर और ज्ञातव्य विषय का कोई विभाग या शाखा। ५. किसी कार्य या व्यापार की वे सब बातें जिनका ज्ञान उस कार्य के सम्पादन के लिए आवश्यक हो। ६. कौशल या चातुर्य से भरा हुआ ज्ञान। जैसे— ठगविद्या। ७. दुर्गा।
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विद्या-गुरु  : पुं० [सं०] वह गुरु जिससे विद्या पढ़ी हो। शिक्षक। (मंत्र देने वाले गुरु से भिन्न)।
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विद्या-गृह  : पुं० [सं०] विद्यालय। पाठशाला।
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विद्या-दान  : पुं० [सं०] किसी को विद्या देना या सिखाना।
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विद्या-देवी  : स्त्री० [सं०] १. सरस्वती। २. जैनों की एक देवी।
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विद्या-मंदिर  : पुं० [सं० ष० त०] विद्यालय।
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विद्या-वृद्ध  : वि० [सं० तृ० त०] विद्या या ज्ञान में औरों से बहुत आगे बढ़ा हुआ।
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विद्या-व्रत  : पुं० [सं० ष० त०] गुरु के यहाँ रहकर विद्या सीखने का व्रत।
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विद्याकर  : पुं० [सं०] विद्वान व्यक्ति।
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विद्यात्व  : पुं० [सं०] विद्या का भाव।
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विद्याद्रोही  : पुं० [सं०] १. विद्यार्थी २. विद्या-प्रेमी। उदाहरण-पहले दीच्छित विद्या दोही।—नूर-मोहम्मद।
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विद्याधन  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. विद्या स्वीधन २. विद्या के बल से अर्जित किया हुआ धन।
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विद्याधर  : पुं० [सं० विद्या√धृ (धारण करना)+अच्] [स्त्री० विद्याधरी] १. एक प्रकार की देव योनि जिसके अंतर्गत खेचर, गन्धर्व, किन्नर आदि माने जाते हैं। २. वैद्यक में एक रसौषधि। ३. काम-शास्त्र में एक प्रकार का आसन या रति।—बन्ध।
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विद्याधरी  : स्त्री० [सं० विद्याधर+ङीष्] विद्याधर नामक देवता की स्त्री।
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विद्याधारी  : पुं० [सं० विद्याधर+इनि, विद्याधारिन्] एक प्रकार का वर्णवृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में चार मगण होते हैं।
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विद्याधि-देवता  : स्त्री० [सं० ष० त०] विद्या की अधिष्ठात्री देवी, सरस्वती।
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विद्याधिप  : पुं० [सं० ष० त०] १. गुरु। शिक्षक। २. पंडित। विद्वान्।
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विद्यापति  : पुं० [सं० ष० त०] १. राज-दरबार का सबसे बड़ा विद्वान। २. मिथिला के प्रसिद्ध कवि।
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विद्यापीठ  : [सं० ष० त०] १. शिक्षा का बड़ा और प्रमुख केन्द्र। २. ऐसा विद्यालय जिसमें ऊँचे दरजे की शिक्षा दी जाती हो। महाविद्यालय।
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विद्यामहेश्वर  : पुं० [सं० ष० त०] शिव।
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विद्यारंभ  : पुं० [सं०] हिंदुओं में, बालक को विद्या की पढ़ाई आरम्भ कराने का संस्कार।
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विद्याराज  : पुं० [सं०] विष्णु की एक मूर्ति।
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विद्यार्थी  : पुं० [सं० विद्या√अर्थ+णिनि] १. वह बालक जो प्राचीन काल में किसी आश्रम में जाकर गुरु से विद्या सीखता था। २. आजकल वह बालक या युवक जो किसी शिक्षा-संस्था में अध्ययन करता हो। ३. वह व्यक्ति जो सदा कुछ न कुछ और किसी न किसी विषय में जानने-सीखने को लालायित तथा प्रयत्नशील रहता है।
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विद्यालय  : पुं० [सं०] ऐसी शिक्षण संस्था जिसमें नियमित रूप से विभिन्न कक्षाओं के विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती है।
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विद्यावधू  : स्त्री० [सं० ष० त०] सरस्वती।
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विद्यावान्  : वि० [सं० विद्या+मतुप्, म-व] विद्वान्।
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विद्यु  : स्त्री०=विद्युत (बिजली)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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विद्युच्चालक  : वि० [सं० ष० त०] (पदार्थ) जिसके एक सिरे से स्पर्श होते ही विद्युत दूसरे सिरे तक चली जाय। जैसे—धातुएँ, द्रव-पदार्थ आदि।
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विद्युत-विश्लेषण  : पुं० [सं०] वह वैज्ञानिक प्रक्रिया जिससे विद्युत के द्वारा खनिज पदार्थों में से धातुएँ निकालकर अलग की जाती हैं। (इलेक्ट्रोलिसिस)।
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विद्युतगौरी  : स्त्री० [सं० उपमि० स० ब० स०] शक्ति की एक मूर्ति।
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विद्युतिक  : वि०=वैद्युत् (बिजली संबंधी)।
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विद्युत्  : स्त्री० [सं० वि√द्युत् (प्रकाश करना)+विप्] १. बिजली। २. सन्ध्या का समय। ३. पुरानी चाल की एक प्रकार की वीणा। ४. एक प्रकार की उल्का। वि० १. बहुत अधिक चमकीला। २. चमक या दीप्ति से रहित।
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विद्युत्ता  : स्त्री० [सं० विद्युत+टाप्] विद्युत। बिजली।
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विद्युत्पात  : पुं० [सं०] आकाश से बिजली गिरना। वज्रपात।
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विद्युत्पादक  : पुं० [सं०] प्रलय काल के सात मेघों में से एक मेघ।
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विद्युत्प्रभा  : स्त्री० [सं० विद्युत-प्रभ+टाप्] १. दैत्यों के राजा बलि की पोती का नाम। २. अप्सराओं का एक गण या वर्ग।
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विद्युत्मापक  : पुं० [सं० विद्युत+मापक, ष० त०] एक प्रकार का यंत्र जो विद्युत की गति या वेग अथवा उसके व्यय की मात्रा नापता है (इलेक्ट्रामीटर)।
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विद्युत्माला  : स्त्री० [सं०] १. आकाश में दिखाई पड़नेवाली बिजली की रेखा। २. चार चरणों का एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में दो भगण और दो गुरु होते हैं।
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विद्युत्मुख  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार के उपग्रह।
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विद्युत्य  : वि० [सं० विद्युत+यत्] विद्युत या बिजली से संबंध रखनेवाला। विद्युतिक।
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विद्युद्दाम (न्)  : पुं० [सं० ष० त०] बिजली की रेखा।
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विद्युन्माला  : स्त्री० [सं०]=विद्युत्माला।
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विद्युल्लता  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] लता के रूप में आकाश में चमकने वाली बिजली।
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विद्युल्लेखा  : स्त्री० [सं० ब० स०] १. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में दो मगण होते हैं। इसे शेषराज भी कहते हैं। २. विद्युत। बिजली।
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विद्येश  : पुं० [सं० ष० त०] शिव।
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विद्योत  : स्त्री० [सं० वि√द्युत् (प्रकाश करना)+घञ्] १. विद्युत। बिजली। २. चमक। दीप्ति। प्रभा।
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विद्रध  : वि० [सं० वि√रुध् (आवरण)+कि] १. मोटा-ताजा। २. हृष्ट-पुष्ट। ३. दृढ़। पक्का। मजबूत। ४. उद्यत। प्रस्तुत। पुं०=विद्रधि।
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विद्रधि  : पुं० [सं० वि√रुध् (आवरण)+कि, पृषो, सिद्धि] पेट में होनेवाला ऐसा घाव या फोड़ा जिसमें मवाद पड़ गया हो।
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विद्रधिका  : स्त्री० [सं० विद्रधि+कन्+टाप्] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का छोटा फोड़ा जो पुराने प्रमेह के कारण होता है।
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विद्रम-लता  : स्त्री० [सं०] १. नलिका या नली नामक गंध द्रव्य २. मूँगा। विद्रुम।
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विद्रव  : पुं० [सं० वि√द्रु (जाना)+अप्] १. द्रवित होना। गलना। २. घबराहट की स्थिति। ३. बुद्धि। समझ। ४. भगवान।
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विद्रवण  : पुं० [सं०] विद्रव।
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विद्राव  : पुं० [सं० वि√द्रु+घञ्] विद्रव (दे०)।
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विद्रावक  : वि० [सं०] १. पिघलनेवाला। २. भागनेवाला।
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विद्रावण  : पुं० [सं०] [भू० कृ० विद्रावित] [वि० विद्राव्य] १. फाड़ना। २. नष्ट करना। ३. दे० ‘विद्रव’।
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विद्रावी (विन्)  : वि० [सं०] १. पिघलने या पिघलानेवाला। २. भागने या भगानेवाला।
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विद्रुत  : वि० [सं० वि√द्रु (जाना)+क्त] १. भागा हुआ। २. गला, पिघला या बहा हुआ। ३. डरा हुआ। भयभीत। पुं० लड़ाई का वह ढंग।
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विद्रुम  : पुं० [सं० कर्म० स०] [वि०√द्रु+म०] १. प्रवाल। मूँगा। २. मुक्ताफल नामक वृक्ष। ३. वृक्षों का नया पत्ता। कोंपल। वि० द्रुमों अर्थात् वृक्षों से रहित। (स्थान)।
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विद्रुमफल  : पुं० [सं०] कुंदरू नामक सुगंधित गोंद।
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विद्रूप  : पुं० [सं० बिरूप] किसी का किया जानेवाला उपहास। मजाक उड़ाना।
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विद्रूपण  : पुं० [हिं० विद्रूप से] किसी का उपहास करना। दिल्लगी या मजाक उड़ाना।
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विद्रोह  : पुं० [सं० वि√द्रुह् (वैर करना)+घञ्] १. किसी के प्रति किया जानेवाला द्रोह अर्थात् शत्रुतापूर्ण कार्य। २. विशेषतः राज्य या शासन के प्रति अविश्वास या दुर्भाव उत्पन्न होने पर उसकी आज्ञा विधान आदि के विरुद्ध किया जानेवाला आचरण या व्यवहार। ३. देश या राज्य में क्रांति करने के लिए किया जानेवाला उपद्रव।
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विद्रोही (हिन्)  : वि० [सं०] १. विद्रोह संबंधी। २. विद्रोह के रूप में होनेवाला।
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विद्वज्जन  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. विद्वान। २. ऋषि।
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विद्वत्कल्प  : वि० [सं० विद्वस्+कल्पप्] नाम-मात्र का थोड़ा पढ़ा-लिखा (आदमी)।
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विद्वत्ता  : स्त्री० [सं० विद्वस+तल्+टाप्] बहुत अधिक विद्वान होने का भाव। पांडित्य।
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विद्वत्व  : स्त्री० [सं० विद्धस्+त्वल्]=विद्वता।
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विद्वद्वाद  : पुं० [सं०] विद्वानों में होनेवाली बहस या विवाद।
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विद्वान्  : वि० पुं० [सं०] १. वह जो आत्मा का स्वरूप जानता हो। २. वह जिसने अनेक प्रकार की विद्याएँ अच्छी तरह पढ़ी हों। २. सर्वज्ञ।
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विद्विष  : वि० [सं०] द्वेष या शत्रुता रखनेवाला। पुं० ख्श्मन। शत्रु।
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विद्विष्ट  : भू० कृ० [सं० वि√द्विष् (द्वेष करना)+क्त] [भाव० विद्विष्टता] जिसके प्रति द्वेष की भावना व्यक्त की गई हो।
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विद्विष्टि  : स्त्री० [सं० वि√द्विष्+क्तिन्] विद्वेष।
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विद्वेष  : पुं० [सं० वि√द्विष्+घञ्] १. विशेष रूप से किया जानेवाला द्वेष। २. मनोमालिन्य के कारण मन में रहनेवाला वह द्वेष या वैर जिसके फलस्वरूप किसी को नीचा दिखाने या हानि पहुँचाने का प्रयत्न किया जाता है (स्पाइट) ३. दुश्मनी। शत्रुता।
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विद्वेषक  : वि० [सं० वि√द्विष्+ण्वुल-अक]=विद्वेषी।
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विद्वेषण  : पुं० [सं० वि√द्विष् (द्वेष करना)+णिच्+ल्युट-अन] १. विद्वेष करने की क्रिया या भाव। २. दो व्यक्तियों में विद्वेष उत्पन्न करना। वि० विद्वेषी।
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विद्वेषिता  : स्त्री० [सं० विद्वेषि+तल्+टाप्]=विद्वेष।
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विद्वेषी (षिन्)  : वि० [सं० वि√द्विष्+णिनि] मन में किसी के प्रति विद्वेष रखनेवाला। विद्वेष करनेवाला। पुं० दुश्मन। शत्रु।
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विद्वेष्य  : वि० [सं० विद्वेष+यत्] जिसके प्रति मन में विद्वेष रखा जाय या रखना उचित हो।
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