शब्द का अर्थ
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विकर्ण :
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वि० [सं० ब० स०] १. कर्णरहित। २. जिसके कान न हों। बिना कानोंवाला। २. जिसे सुनाई न पड़ता हो। जो सुन न सके। बहरा। ३. जिसके कान बड़े और लम्बे हों। ४. रेखा-गणित में चार या अधिक कोणोंवाले क्षेत्र में किसी कोण से उसकी ठीक विपरीत दिशावाले कोण तक पहुँचने या होनेवाला। टेढ़े या तिरछे बल में ऊपर से नीचे आने अथवा नीचे से ऊपर जानेवाला (डायगनल)। पुं० १. कर्ण का एक पुत्र। दुर्योधन का एक भाई। ३. एक प्रकार का साँप। ४. एक प्रकार का तीर या बाण। ५. रेखा—गणित में वह रेखा जो किसी चतुर्भुज को तिरछे बल से पड़नेवाले आमने-सामने के बिन्दुओं को मिलाती हुई चतुर्भुज को दो भागों में विभक्त करती है (डायगनल)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
विकर्णक :
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पुं० [सं० विकर्ण+कन्] १. एक प्रकार का गँठिवन। २. शिव का व्याडि नामक गण। |
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विकर्णतः :
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अव्य० [सं०] विकर्ण के रूप में। तिरछे बल में (डायगनली)। |
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विकर्णिक :
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पुं० [सं० विकर्ण+ठक्-इक] सरस्वती नदी के आस-पास का देश। सारस्वत प्रदेश। |
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विकर्णी :
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स्त्री० [सं० विकर्ण+इनि, दीर्घ, न-लोप] एक प्रकार की ईंट जिसका व्यवहार यज्ञ की वेदी बनाने में होता था। |
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