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शब्द का अर्थ

वचन  : पुं० [सं०√वच्+ल्युट-अन] १. मनुष्य के मुँह से निकला हुआ सार्थक शब्द। वाणी। वाक्य। २. किसी की कही हुई बात। उक्ति। कथन। ३. दृढ़तापूर्वक या प्रतिज्ञा के रूप में कही हुई बात। जैसे–वचन-बद्ध। ४. व्याकरण में वह तत्व जिसके द्वारा संज्ञा की संख्या का बोध होता है। (नम्बर)।
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वचन-गुप्ति  : स्त्री० [सं० ष० त०] जैन धर्म के अनुसार वाणी का ऐसा संयम जिससे वह अनुचित या बुरी बातें कहने में प्रवृत्त न हो।
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वचन-चतुर  : पुं० [सं० स० त०] साहित्य में श्रृंगार रस का आलम्बन वह व्यक्ति जिसके वचनों में चतुराई भरी होती है।
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वचन-बद्ध  : वि० [सं० तृ० त०] जिसने किसी को कोई विशिष्ट काम करने या न करने का वचन दिया हो।
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वचन-बंध  : पुं० [सं० तृ० त०] यह कहना कि हम अमुक काम या बात अवश्य और निश्चित रूप से करेगे।
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वचन-लक्षिता  : स्त्री० [सं० तृ० त०] साहित्य में वह नायिका जिसकी बातचीत से उसका उपपति से होनेवाला प्रेम लक्षित होता हो।
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वचन-विदग्धा  : स्त्री० [सं० स० त०] साहित्य में वह परकीया नायिका जो अपने वचन की चतुराई से नायक की प्रीति संपादित करती हो।
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वचनकारी (रिन्)  : वि० [सं० वचन√कृ (करना)+णिनि] आज्ञाकारी।
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वचनीय  : वि० [सं०√वच्+अनीयर्] १. कहे जाने के योग्य। २. जिसके संबंध में दोष या निंदा की कोई बात कही जा सकती हो। दूषित। बुरा।
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