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रूखा  : वि० [सं० रूक्ष्, प्रा० रूख] १. जिसमें चिकनाहट या स्निग्धता का अभाव हो। अस्निग्ध। ‘चिकना’ का विपर्याय। २. जिसमें घी, तेल आदि चिकने पदार्थ न पड़े या न लगे हों। जैसे—रूखी रोटी। ३. (भोजन) जिसके साथ कोई स्वादिष्ट पदार्थ न हो अथवा जिसे स्वादिष्ट बनाने का प्रयत्न न किया गया हो। जैसे—रूखी-सूखी खाकर दिन बिताना। पद—रूखा-सूखा रूखी, सूखी। (दे०) ४. जिसमें आर्द्रता या रस न हो। शुष्क नीरस। ५. (व्यक्ति या स्वभाव।) जिसमें कोमलता, दयालुता, स्नेह आदि मधुर वृत्तियों का अभाव हो। ६. (कथन या व्यवहार) जिमसें आत्मीयता, उदारता, सौजन्य आदि का अभाव हो। जैसे—रूखी बातें या रूखा व्यवहार। मुहावरा—रूखा पड़ना या होना= (क) बेमुरौवती करना। (ख) क्रुद्ध या नाराज होना। ७. उदासीनता। विरक्त। ८. जिसका तल सम न हो। खुरदुरा। जैसे—यह कागज कुछ रूखा दिखाई पडता है। पद—रूखा माल=नक्काशी किया हुआ बरतन। (कसेरे)। पुं० एक प्रकार की छेनी।
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रूखा-सूखा  : वि० [हिं०] [स्त्री० रूखी-सूखी] (रोटी या भोजन) बिना घी तथा मसाले का बना हुआ।
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रूखापन  : पुं० [हिं० रूखा+पन (प्रत्यय)] १. रूखे होने की अवस्था, गुण या भाव। रूखाई। २. खुश्की। ३. व्यवहार आदि की कठोरता या हृदयहीनता।
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