शब्द का अर्थ
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					राजस					 :
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					वि० [सं० रजस्+अण्] [स्त्री० राजसी] रजोगुण से उत्पन्न अथवा युक्त। रजोगुणी। जैसे—राजस दान, राजस बुद्धि आदि।				 | 
			
			
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					राजसंस्करण					 :
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					पुं० [सं०] किसी पुस्तक के साधारण संस्करण से भिन्न वह संस्करण जो बहुत बढ़िया कागज पर छपा हो और जिस पर बढ़िया जिल्द बँधी हो। (डीलक्स एडिसिन)				 | 
			
			
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					राजसिक					 :
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					वि० [सं० रजस्+ठञ्-इक] रजोगुण से उत्पन्न। राजस।				 | 
			
			
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					राजसिरी					 :
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					स्त्री०=राजश्री। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					राजसी					 :
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					वि० [हिं० राजा] जो राजाओं के महत्त्व, वैभव आदि के लिए उपयुक्त हो। जिसका उपयोग राजा ही करते या कर सकते हों, अथवा जो राजाओं को ही शोभा देता हो। जैसे—राजसी ठाठबाट राजसी महल। वि० [सं० ०] जिसमें रजोगुण की प्रधानता हो। रजोगुण युक्त।				 | 
			
			
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					राजसूय					 :
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					पुं० [सं० राजन्√सू (प्रसव)+क्यप्] एक प्रकार का यज्ञ जो बड़े-बड़े राजा सम्राट पद के अधिकारी बनने के लिए करते थे। यह अनेक यज्ञों की समष्टि के रूप में होता और बहुत दिनों तक चलता था। इस यज्ञ के उपरान्त राजा को दिग्विजय के लिए निकलना पड़ता था और दिग्विजय कर चुकने पर वह सम्राट पद का अधिकारी होता था।				 | 
			
			
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					राजसूयिक					 :
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					वि० [सं० राजसूय+ठक्-इक] राजसूय यज्ञ के रूप में होनेवाला अथवा उससे संबंध रखनेवाला।				 | 
			
			
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					राजसूयी (यिन्)					 :
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					पुं० [सं० राजसूय+इनि] राजसूय यज्ञ करनेवाला पुरोहित।				 | 
			
			
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					राजस्व					 :
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					पुं० [सं० मध्य० स०] १. राजा या राज्य की आय। २. वह धन जो राजा या राज्य को अधिकारिक रूप से मिलता हो। ३. वह शास्त्र जिसमें राज्य की आय के साधनों और उनकी व्यवस्था आदि का विवेचन होता है।				 | 
			
			
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