शब्द का अर्थ
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					युग					 :
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					पुं० [सं०√युज् (जोड़ना)+घञ्, नि० सिद्धि] [वि० युगीन] १. एकत्र दो वस्तुएँ। जोड़ा। युग्म। २. ऋद्धि और सिद्धि नाम की दो औषधियाँ। ३. चौसर या पासे का खेल में एक साथ एक घर में बैठी हुई दो गोटियाँ। ४. वंश के अनुक्रम में कोई स्थान। पीढ़ी। पुरुष। ५. बैलों के कंधों पर रखा जानेवाला जुआ। ६. काल। समय। जैसे—पूर्व युग। मुहावरा—युग-युग=बहुत दिनों तक अनंत काल तक। ७. काल गणना के विचार से कल्प के चार उप-विभागों में से प्रत्येक सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि (पुराण) ८. वह समय विभाग जिसमें कुछ विशिष्ट प्रकार की घटनाओं, प्रवृत्तियों आदि की बहुलता रहती है। जैसे—भारतेन्दु युग, गान्धी युग, लौह युग आदि। ९. पाँच वर्ष का वह काल जिसमें बृहस्पति एक राशि में स्थित रहता है। वि० जो गिनती में दो हो।				 | 
			
			
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					युग-कीलक					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] वह लकड़ी या खूँटा जो बम और जूए के मिले हुए शब्दों में डाला जाता है। सैल। सैला।				 | 
			
			
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					युग-धर्म					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] कोई ऐसा काम जो किसी विशिष्ट युग में प्रायः सभी लोग साधारण रूप में करते हों। जैसे—चोरी, झूठ, बेईमानी तो आज-कल के युग-धर्म से जान पड़ने लगे हैं।				 | 
			
			
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					युग-पत्र					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] १. कोविदार। कचनार २. युग्मपत्र नामक वृक्ष। ३. पहाड़ी आबनूस।				 | 
			
			
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					युग-पत्रिका					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स०, कप्+टाप्, इत्व] शीशम का पेड़।				 | 
			
			
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					युग-पुरुष					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] अपने युग या समय का बहुत बड़ा महापुरुष।				 | 
			
			
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					युग-बाहु					 :
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					वि० [सं० ब० स०] जिसके हाथ बहुत लंबे हों। दीर्घबाहु				 | 
			
			
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					युगंकर					 :
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					वि० [सं०] नया युग उपस्थित करनेवाला। युगप्रवर्तक जैसे—युगंकर रवीन्द्रनाथ टैगोर।				 | 
			
			
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					युगति					 :
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					स्त्री०=युक्ति। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					युगंधर					 :
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					वि० [सं० युग√धृ (धारण)+णिच्, खच्, मुम्] १. पंजाब का एक प्राचीन नगर जिसका वर्णन महाभारत में आया है। २. एक प्राचीन पर्वत। ३. गाड़ी का बम। ४. बैलगाडी का वह लंबा बाँस जिसमें जूआ लगाया जाता है।				 | 
			
			
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					युगपत् (द्)					 :
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					अव्य० [सं० युग√पद् (गति)+क्विप्] एक ही समय में। एक ही क्षण में। साथ-साथ। वि० एक ही समय में और एक साथ होनेवाला। (साइमल्टेनिअस)।				 | 
			
			
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					युगम					 :
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					वि० पुं, ०=युग्म। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					युगल					 :
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					पुं० [सं०√युज्+कलच्, कुत्व] एक साथ और एक ही गर्भ से उत्पन्न होनेवाले दो जीव। युग्म।				 | 
			
			
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					युगलक					 :
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					पुं० [सं० युगल√कै (प्रतीत होना)+क] साहित्य में वह कुलक (गद्य) जिसमें दो श्लोकों या पद्यों का एक साथ मिलकर अन्वय करना पड़ता हो।				 | 
			
			
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					युगलाख्य					 :
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					पुं० [युगल-आ√ख्या (प्रकथन)+क] बबूल का पेड़।				 | 
			
			
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					युगांत					 :
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					पुं० [सं० युग-अंत, ष० त०] १. प्रलय। युग का अंत। २. युग का अन्तिम काल या समय। ३. प्रलय।				 | 
			
			
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					युगांतक					 :
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					पुं० [सं० युगांत+कन्] १. प्रलय-काल। २. प्रलय।				 | 
			
			
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					युगांतर					 :
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					पुं० [सं० युग-अंतर, मयू० स०] १. प्रस्तुत युग के उपरान्त आनेवाला दूसरा युग। २. कुछ और ही प्रकार का जमाना, युग या समय। मुहावरा—युगांतर उपस्थित करना=समय का प्रवाह पूरी तरह से बदल देना। पुरानी प्रथा की जगह नई प्रथा या रीति चलाना।				 | 
			
			
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					युगादि					 :
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					पुं० [सं० युग-आदि, ष० त०] १. सृष्टि का प्रारम्भ। २. युग का आरम्भ। स्त्री० [ब० स०] दे० ‘युगाद्या’। वि० १. युग के आरम्भिक काल का। २. बहुत पुराना।				 | 
			
			
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					युगादिकृत्					 :
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					पुं० [सं० युगादि√कृ (करना)+क्विप्, तुक-आगम] शिव।				 | 
			
			
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					युगाद्या					 :
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					स्त्री० [सं० युग-आद्या, ष० त०] वह तिथि जिससे युग का आरम्भ होना माना जाता है। जैसे—वैशाख शुक्ल तृतीया, कार्तिक शुक्ल नवमी, भाद्र कृष्ण त्रयोदशी और पूस की अमावस्या जो क्रमात् सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग की आरम्भ की तिथियाँ हैं।				 | 
			
			
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					युगावतार					 :
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					पुं० [सं० युग-अवतार, ष० त०] युग का अवतारी महान् पुरुष। युग-स्वरूप पुरुष।				 | 
			
			
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					युगेश					 :
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					पुं० [सं० युग-ईश, ष० त०] फलित ज्योतिष में, बृहस्पति के वर्ष के राशि चक्र में गति के अनुसार पाँच-पाँच वर्ष के युगों के अधिपति।				 | 
			
			
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					युगोपरि					 :
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					वि० [सं० युग-उपरि, ष० त०] अपने युग या समय के विचार से जो सबसे बढ़कर हो।				 | 
			
			
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					युग्म					 :
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					पुं० [सं०√युज् (योग)+मक्, कुत्व] १. एक ही तरह की ऐसी दो चीजें जो प्रायः या सदा साथ आती या रहती हों। जोड़ा। युग। २. ऐसी दो बातें या वस्तुएँ जो मुख्यतः एक दूसरे पर अवलम्बित या आश्रित हों। ३. ज्योतिष में मिथुन राशि। ४. दे० ‘युगलक’।				 | 
			
			
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					युग्म-धर्मा (धर्मन्)					 :
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					वि० [सं० ब० स०,+अनिच्] १. जो स्वभावतः मिलता हो। मिलनशील। २. मैथुन करना जिसका धर्म हो।				 | 
			
			
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					युग्म-पत्र					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] १. कचनार का पेड़। २. भोजपत्र का पेड़। ३. छितवन। ४. ऐसा पेड़ जिसकी शाखा में आमने-सामने दो-दो पत्ते एक साथ होते हों। युग्मपर्ण।				 | 
			
			
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					युग्म-पर्ण					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] १. लाल कचनार। २. छतिवन। ३. दे० ‘युग्मपत्र’।				 | 
			
			
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					युग्म-पर्णा					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स० टाप्] वृश्चिकाली।				 | 
			
			
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					युग्म-फला					 :
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					स्त्री० [सं० ब० स० टाप्] वृश्चिकाली।				 | 
			
			
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					युग्मक					 :
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					पुं० [सं० युग्म+क०] १. युग्म। जोड़ा। २. युगलक।				 | 
			
			
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					युग्मज					 :
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					पुं० [सं० युग्म√जन् (उत्पत्ति)+ड] एक साथ एक ही गर्भ से उत्पन्न होनेवाले दो जीव। वि० (ऐसे दो) जो एक साथ उत्पन्न हुए हों।				 | 
			
			
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					युग्मन					 :
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					पुं० [सं० युगम्+णिच्+ल्युट-अन] [भू० कृ० युग्मित] १. दो चीजों को आपस में जोड़, बाँध या मिलाकर एक साथ करने की क्रिया या भाव। (कपलिंग)। २. युग्म बनाने की क्रिया या भाव। (कॉनजुगेशन)				 | 
			
			
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					युग्मांजन					 :
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					पुं० [सं० युग्म-अंजन, कर्म० स०] स्रोतांजन और सौवीरांजन इन दोनों का समूह।				 | 
			
			
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					युग्मेच्छा					 :
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					स्त्री० [सं० युग्म-इच्छा, ष० त०] मैथुन या संभोग की इच्छा।				 | 
			
			
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					युग्य					 :
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					पुं० [सं० युग+यत् वा√युज्+क्यप्, नि०] १. वह गाड़ी जिसमें दो घोड़े या बैल जोते जाते हैं। जोड़ी। २. वे दो पशु जो एक साथ गाड़ी में जोते जाते हों। जोड़ी। वि० जो (गाड़ी आदि) में जोते जाने के योग्य हो या जोता जाने को हो।				 | 
			
			
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					युग्याह					 :
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					पुं० [सं० युग्य+वह (ढोना)+णिच्+अण्, उप० स०] १. युग्य (दो बैलों या दो घोड़ोंवाली गाड़ी) हाँकनेवाला। २. किसी प्रकार की गाड़ी हाँकनेवाला व्यक्ति। गाड़ीवान।				 | 
			
			
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