शब्द का अर्थ
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					भृत					 :
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					पुं० [सं०√भू (भरण करना)+क्त] [स्त्री० भृता] १. भृत्य। दास। २. सेवक। नौकर। ३. बोझ ढोनेवाला दास जो मिताक्षरा में अधम कहा गया है। भू० कृ० १. भरा हुआ। पूरित। २. पाला-पोसा हुआ। ३. (वेतन, धन आदि) चुकाया हुआ। (पेड)				 | 
			
			
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					भृतक					 :
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					पुं० [सं० भूत+कन्] वेतन पर काम करनेवाला नौकर।				 | 
			
			
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					भृतक-बल					 :
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					पुं० [सं० कर्म० स०] वेतन पर रखी हुई सेना। (कौ०)				 | 
			
			
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					भृतकाध्यापक					 :
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					पुं० [सं० भृतक-अध्यापक, कर्म० स०] वह जो वेतन पर अध्यापन-कार्य करता हो।				 | 
			
			
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					भृति					 :
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					स्त्री० [सं०√भृ+क्तिन्] १. भरने की क्रिया या भाव। २. पालन-पोषण। ३. नौकरी। ४. तनख्वाह। वेतन। ५. मजदूरी। ६. दाम। मूल्य।				 | 
			
			
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					भृति-भोगी (गिन्)					 :
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					वि० [सं० भृति√भुज्+णिनि, उप० स०] वेतन लेकर या भाड़े पर किसी का काम करनेवाला। वेतन-भोगी। (मर्सीनरी)				 | 
			
			
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					भृति-रूप					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] १. पारिश्रमिक। २. पुरस्कार। इनाम।				 | 
			
			
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					भृतिभुक् (ज्)					 :
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					पुं० [सं० भृति√भुज् (उपभोग करना)+क्विप्, कुत्व] वेतन पर काम करनेवाला नौकर।				 | 
			
			
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					भृत्य					 :
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					पुं० [सं०√भृ+क्यप्, तुक्] [स्त्री० भृत्या] सेवक। नौकर।				 | 
			
			
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					भृत्य-भर्ता (तृ)					 :
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					पुं० [ष० त०] गृह-स्वामी।				 | 
			
			
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					भृत्यता					 :
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					स्त्री० [सं० भृत्य+तल्+टाप्] भृत्य होने की अवस्था, धर्म या भाव।				 | 
			
			
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					भृत्या					 :
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					स्त्री० [सं० भृत्य+टाप्] १. दासी। २. तनख्वाह। वेतन।				 | 
			
			
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