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भर  : अव्य० [हिं० भरना] १. अवकाश, परिमाण, वय आदि की संपूर्णता (या समस्तता) किसी इकाई के रूप में सूचित करते हुए जैसे—कटोरा भर,गज भर, उमर भर, आदि। २. तक। पर्यत। ३. अच्छा तरहसे। पूरी तरहसे। जैसे—लड़के को एक बार आँख भर देखने की उसकी कामना थी। अव्य० [सं० भार] १. क्रे द्वारा या सहायता से। उदाहरण—सिर भर जाउँ उचित अस मोरा।—तुलसी। पुं० भरे हुए होने की अवस्था या भाव। पूर्णता। यथेष्ठता। उदाहरण—भर लाग्यो परन उरोजनि मैं रघुनाथ राजी रोम राजी भाँति कल अलि सैनी की।—रघुनाथ। क्रि० प्र०—डालना।—पड़ना। वि० कुल। पूरा। समस्त। मुहावरा—भर पाना=(क) कुल प्राप्य या धन या सामग्री प्राप्त करना। (ख) पूरा बदला चुक जाना। जैसे—जैसा तुमने किया वैसा भर पाया। पुं० [सं० भरत या भरद्वाज] हिंदुओं में एक जाति जो किसी समय अस्पृष्य मानी जाती थी। पुं० =भट (वीर)। पुं० [सं०] भार। बोझ। उदाहरण—भर खंचै भँजियौ भिड़।—प्रिथीराज। वि० [सं०√भृ (भरण करना)+अप्] (वह) जो भरण-पोषण करता हो। पुं० युद्ध। लड़ाई। पुं० [?] उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में रहनेवाली एक निम्न जाति। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भर-पाई  : स्त्री० [हिं० भरना+पाना] १. वह स्थिति जिसमें से किसी से कुल प्राप्य धन वसूल हो जाय। २. उक्त का सूचक लेख जो इस बात का सूचक होता है कि अब हमें अमुक व्यक्ति से कुछ लेना शेष नहीं रह गया है। क्रि० वि० पूर्ण रूप से पूरी तरह से। उदाहरण—माला दुखित भई भर-पाई।—सूर।
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भर-भराहट  : स्त्री० [अनु०] भरभराने की अवस्था, क्रिया या भाव।
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भर-मार  : स्त्री० [हिं० भरना+मार=अधिकता] अनावश्यक या व्यर्त चीजों की अधिकता।
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भर-सक  : अव्य० [हिं० भर+सकना] जितनी समर्थता या शक्ति हो सकती है उतनी का उपयोग करते हुए। यथासाध्य।
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भरई  : पुं० =भरदूल या भरत। (पक्षी)।
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भरक  : पुं० [देश] पंजाब और बंगाल की दलदलों में रहनेवाला एक प्रकार का पक्षी जो प्रायः अकेला रहता है, मांस के लिए इसका शिकार किया जाता है। स्त्री०=भड़क।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भरकट  : पुं० [सं० भरट+कन्] संन्यासियों का एक वर्ग या संप्रदाय।
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भरकना  : अ०=भड़कना।
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भरका  : पुं० [देश] १. वह जमीन जिसकी मिट्टी काली और चिकनी हो, परन्तु सूख जाने पर सफेद और भुरभुरी हो जाय। यह प्रायः जोती नहीं जाती। २. जंगलों, पहाड़ों आदि का वह गड्ढा जिसमें चोर छिपते हैं। ३. छोटा नाला। नाली। ४. जमीन का छोटा टुकड़ा। उदाहरण—बड़ा रकबा काटकर छोटे-छोटे भरकों में पलट दिया गया था।—वृन्दावन लाल। पुं० =भरक (पक्षी)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भरकाना  : स०=भड़काना।
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भरकी  : स्त्री०=भरका।
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भरकूट  : पुं० [हिं०] मस्तक। माथा।
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भरट  : पुं० [सं०√भृ (भरण करना)+अटच्] १. कुम्हार। २. सेवक नौकर।
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भरण  : पुं० [सं०√भृ (भरण करना)+ल्युट-अन] १. भरना। २. खिलपिला कर जीवित रखना। पालन-पोषण आदि के लिए दी जानेवाली वृत्ति या वेतन। ३. किसी चीज के न रहने या नष्ट होने पर की जानेवाली उसकी पूर्ति। भरती। ४. भरणी नक्षत्र। वि० [स्त्री० भरणी०] भरण अर्थात् पानल-पोषण करनेवाला। (यौ० के अन्त में) उदाहरण—तोहीं कर्णि हरणी तो हीं विश्व भरणी।—विश्राम सागर।
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भरण-पोषण  : पु० [सं० द्व० स०] किसी का इस प्रकार पालन करना कि वह जीविका निर्वाह की चिंता से दूर रहे। (मेन्टेनेन्स)
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भरणी  : स्त्री० [सं० भरण+ङीष्] १. घोषक लता। कड़वी तरोई। २. सत्ताइस नक्षत्रों में दूसरा नक्षत्र जिसमें त्रिकोण के रूप में तीन तारे हैं। ३. भूमि खोदने की एक शुभ लग्न। (ज्यो०)
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भरणी-भू  : पुं० [सं० ब० स०] राहु।
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भरणीय  : वि० [सं०√भृ+अनीयर] जिसका भरण किया जाने को हो या करना उचित हो। पाले-पोसे जाने के योग्य।
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भरण्य  : पुं० [सं० भरण+यत्] १. मूल्य। दाम २. वेतन। तनखाह। ३. नौकर। सेवक। ४. मजदूर।
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भरण्या  : पुं० [सं० भरण्य+टाप्] १. वेतन। मजदूरी। २. पत्नी। जोरू।
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भरण्यु  : पुं० [सं० भरण्य+उन्] १. ईश्वर। २. चन्द्रमा। ३. सूर्य। ४. अग्नि। ५. मित्र।
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भरंत  : स्त्री० [सं० भ्रांति] १. धोखा। भय। २. संदेह। शक। स्त्री० [हिं० भरना] भरने की क्रिया, या भाव। विशेष दे० ‘भरत’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भरत  : पुं० [सं०√भृ+अतच्] १. दुष्यंत् का शकुंतला के गर्भ से उत्पन्न पुत्र जिसके नाम के आधार पर इस देश का नाम भारत पड़ा था। २. राम के सौतेले भाई जो कैकेयी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। ३. नाट्यशास्त्र के एक प्रधान आचार्य। ४. अभिनेता। ५. दे० ‘जड़ भरत’। ६. जैनों के अनुसार प्रथम तीर्थकर ऋषभ के ज्येष्ठ पुत्र का नाम। पुं० [सं० भरद्वाज] १. भरने की क्रिया या भाव। २. वह चीज जो किसी दूसरी चीज में भरी जाय। ३. किसी आधान के अन्दर का वह अवकाश जिसमें चीजें भरी जाती है। ४. कसीदे आदि के कामों में वह रचना जो बीच का खाली स्थान भरने के लिए की जाती है। ५. मालगुजारी या लगान। (पश्चिम)। पुं० [देश०] १. काँस नामक धातु। कसकुट। २. उक्त धातु के बरतन बनानेवाला। ठठेरा। ३. भरी हुई चीज। भराव।
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भरत-खंड  : पुं० [सं० ष० त०] राजा भरत के किए हुए पृथ्वी के नौ खंडों में से एक खंड। भारतवर्ष। हिन्दुस्तान। भारतवर्ष के दक्षिण का कुमारिका खंड।
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भरत-पुत्रक  : पुं० [सं० ष० त०] अभिनेता। नट।
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भरत-भूमि  : स्त्री० [सं० ष० त०] भारतवर्ष।
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भरत-वाक्य  : पुं० [सं० ष० त०] संस्कृत नाटकों के अंत में वह पद्य जिसमें नाट्यशास्त्र के जन्मदाता भरतमुनि की स्तुति की जाती है।
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भरत-शास्त्र  : पुं० [सं० मध्य० स०] नाट्यशास्त्र।
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भरतज्ञ  : वि० [सं० भरत√ज्ञा (जानना)+क] नाट्यशास्त्र का ज्ञाता।
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भरतरी  : स्त्री० [सं० भर्त्तृ] पृथ्वी (डिं०)। पुं० =भर्त्तृहरि।
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भरतवर्ष  : पुं० =भारतवर्ष।
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भरता  : पुं० [देश०] १. कुछ विशिष्ट तरकारियों को आग पर भूनकर तदुपरान्त उनके गूदे को छौंक कर बनाया जानेवाला सालन। चोखा। जैसे—बैंगन का भरता,आलू का भरता। २. लाक्षणिक अर्थ में,किसी चीज का मसला हुआ रूप। पुं० =भर्त्ता। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भरतार  : पुं० [सं० भर्त्ता] १. स्त्री का पति। खसम। २. मालिक। स्वामी।
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भरतिया  : वि० [हं० भरत (काँसा)+इया (प्रत्यय)] भरत अर्थात् काँसे का बना हुआ। पुं० भरत के बरतन आदि बनानेवाला कसेरा। ठठेरा। भरत।
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भरती  : स्त्री० [हिं० भरना] १. किसी चीज में कोई दूसरी चीज भरने की क्रिया,या भाव। भराई। पद—भरती का=जो अनावश्यक रूप से यों ही स्थान-पूर्ति मात्र के विचार से रखा या सम्मिलित किया गया हो। जैसे—इस पुस्तकालय में बहुत सी पुस्तकें तो यों ही भरती की जान पड़ती है। २. नक्काशी, चित्रकारी, कसीदे आदि के बीच का स्थान इस प्रकार भरना जिसमें उसका सौन्दर्य बढ़ जाय। जैसे—कसीदे के बूटों में की भरती, नैचे में की भरती। ३. किसी दल वर्ग समाज आदि में कार्यकर्ता सदस्य आदि के रूप में प्रविष्ट या सम्मिलित किये जाने की क्रिया या भाव। जैसे—विद्यालय में विद्यार्थी की या सेना में रंगरूट की होनेवाली भरती। ४. वह जहाज या नाव जिसमें माल लादा जाता हो। (लश०) ५. जहाज या नाव में उक्त प्रकार से भरा हुआ माल (लश०) ६. जहाज या नाव पर माल लादने की क्रिया। (लश०) ७. समुद्र में पानी का चड़ाव। ज्वार। (लश०) ८. नदी की बाढ़। (लश०) स्त्री० [देश०] १. एक प्रकार की घास जो पशुओं के चारे के काम में आती है। २. साँवाँ नामक कदन।
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भरतोद्वता  : स्त्री० [सं० त० त०] केशव के अनुसार एक प्रकार का छंद।
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भरत्थ  : पुं० =भरत।
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भरथ  : पुं० =भरत।
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भरथरी  : पुं० दे० ‘भर्त्तृहरि’।
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भरदूल  : पुं० दे० ‘भरत’ (पक्षी)।
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भरद्वाज  : पुं० [सं०√भृ+अप=द्वि√जन्+ड, पृषो०=द्वाज, भरद्वाज, कर्म० स०] १. अंगरिस गोत्र के उतथ्य ऋषि की स्त्री ममता के गर्भ से और उत्थ्य के भाई बृहस्पति के वीर्य से उत्पन्न एक वैदिक ऋषि जो गोत्र प्रवर्तक और मंत्रकार थे। बनवास काल में रामचन्द्र इनके आश्रम में भी गए थे। २. उक्त ऋषि के गोत्र का व्यक्ति। ३. बौद्धों के अनुसार एक अर्हत् का नाम। ४. एक अग्नि का नाम। ५. एक प्राचीन जनपद। ६. भरत पक्षी।
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भरन  : स्त्री० [हिं० भरना] १. भरने या भरे जाने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. ऐसी भरपूर वर्षा जिसके खेत आदि अच्छी तरह भर जायँ। उदाहरण—(क) आने से उसके दिल का मेरे खिल गया, चमन् ऐशो तरब के अब्र की पड़ने लगी भरन।—नजीर। (ख) सावन की झड़ी भादों की भरन। (कहा०)
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भरना  : स० [सं० भरण] [भाव० भराई, भराव] १. किसी आधार या पात्र के अन्दर की खाली जगह में कोई चीज उँडेलना, गिराना, डालना या रखना। बीच के अवकाश में इस प्रकार कोई चीज रखना कि वह खाली न रह जाय। जैसे—गाड़ी में माल, घड़े में पानी या गुब्बेरे में हवा भरना। पद—भरापूरा। २. बीच के अवकाश में कोई उपेक्षित, आवश्यक या उपयुक्त चीज रखना या लगाना। स्थापित करना। जैसे—गड्ढे में मिट्टी भरना, चित्र में रंग भरना, तोप में गोला भरना, मुँह में पान भरना, लिफाफों में चिट्ठियाँ भरना आदि। ३. खाली आसन, पद आदि पर किसी को बैठाना या नियुक्त करके स्थान की पूर्ति करना। जैसे—उन्होंने मंत्री होते ही सारा विभाग भाई-बन्धुओं से भर दिया। ४. पशुओं, यानों आदि पर बोझ लादना। ५. भावी लाभ के विचार से अधिक मात्रा में कोई चीज या माल खरीद कर इकट्ठा करना और रख छोड़ना। जैसे—फसल के दिनों में गेहूँ भरना, मंदी के समय कपड़ा या सोना भरना। ६. सिंचाई के लिए खेत में पानी पहुँचाना। सींचना। ७. छेद, मुँह, विवर, सन्धि आदि बंद करने के लिए उनमें कोई चीज जड़ना, ठूँसना, बैठाना या लगाना। जैसे—खिड़की या झरोखे में ईंटें, छड़ या जाली भरना। ८. लेख आदि के द्वारा आवश्यक अपेक्षाओं की पूर्ति करना या सूचनाएँ अंकित करना। जैसे—आवेदन-पत्र, पंजी या प्रपत्र (फार्म) भरना। ९. किसी के मन में तुष्टि, पूर्णता, यथेष्टता आदि की धारणा या भावना उत्पन्न करना। किसी का मनस्तोष करना। जैसे—बातचीत या व्यवहार से किसी का मन भरना। १॰. अपेक्षित समर्थन, सहमति, स्वीकृति आदि की सूचक पूर्ति करना। जैसे—किसी के कथन की सही या साखी भरना; किसी बात की हामी भरना। ११. किसी को किसी का विद्रोही या विरोधी बनाने अथवा अपने अनुकूल करने के लिए उसके मन में कोई बात अच्छी तरह जमाना या बैठाना। जैसे—आपने तो उन्हें पहले ही भर रखा था, फिर वे मेरी बात क्यों सुनते ? १२. जीव-जंतुओं का किसी को काटना या डसना। उदा०—जहाँ सो नागिन भर गई, कला करै सो अंग।—जायसी। १३. आर्थिक देने, क्षति-पूर्ति, भार आदि के परिशोध के रूप में घन देना। चुकाना। जैसे—ऋण या दंड भरना। १४. यंत्रों आदि में कुंजी घुमाकर या और किसी प्रकार ऐसी क्रिया करना जिसमें वे अपना काम करने लगें। जैसे—घड़ी भरना, ताला भरना। १५. जैसे-तैसे या कुछ कष्ट सहकर दिन काटना या समय बिताना। जैसे—नैहर जनमु भरब बरु जाई।—तुलसी। १६. (कष्ट या विपत्ति) भोगना। सहना। जैसे—करे कोई, भरे कोई। उदा०—राम वन वपु धरि विपति भरे।—सूर। विशेष—भिन्न भिन्न संज्ञाओं के साथ इस क्रिया के योग से बहुत से मुहावरे भी बनते हैं। जैसे—किसी की गोद भरना देवी या देवता की चौकी भरना, महावर आदि से किसी के पैर भरना, (किसी बात या व्यक्ति का) दम भरना, रिश्वत देकर किसी का घर भरना, मनो-विनोद के लिए किसी का स्वांग भरना आदि। ऐसे मुहावरों के लिए संबद्ध संज्ञाएँ देखें। संयो० क्रि०—डालना।—देना।—रखना। अ० १. खाली जगह या आधार का किसी बाहरी या नये पदार्थ के योग से पूर्ण या युक्त होना। जैसे—बरसाती पानी से तालाब भरना, दवा से घाव भरना, पाल से हवा भरना, कीचड़ से पैर भरना, फलों या फूलों से पेड़ भरना, माता (चेचक) के दागों से शरीर भरना, आदमियों से बाजार, मेला या सभा भरना आदि। विशेष—ऊपर स० ‘भरना’ में जो अर्थ आये हैं, उनमें से अधिकतर अर्थों के प्रसंग में इसका अ० प्रयोग भी होता है। जैसे—(क) खेत, देने या रंग भर गया। (ख) भोजन से पेट भर गया। २. दुर्बल या रुग्ण शरीर का यौवन, स्वस्थता आदि के योग से धीरे-धीरे हृष्ट-पुष्ट होना। जैसे—पहले तो वह बहुत दुबला-पतला था, पर अब धीरे-धीरे भरने लगा है। ३. पशुओं पर बोझ लदना अथवा सवारियों पर यात्रियों का बैठना है। ४. मन का असंतोष, क्रोध, संताप आदि से मुक्त होना। जैसे—जब देखो, तब तुम भरे बैठे रहते हो। उदा०—वह भरी ही थी, उमड़ बहने लगी यों।—मैथिलीशरण गुप्त। ५. आवेश करुणा, स्नेह आदि से अभिभूत होने के कारण कुछ कहने के योग्य न रह जाना। किसी भाव की प्रबलता के कारण कुछ कहने में असमर्थ होना। उदा०—गया भरा-सा भमरा कनिष्ठ।—मैथिलीशरण। विशेष—(क) ऐसे अवसरों पर इसके साथ प्रायः संयो० क्रि० ‘आना’ का प्रयोग होता है। जैसे—उसे रोते देख कर मेरा जी भर आया; अर्थात् उसमें करुणा का आविर्भाव हुआ। कुछ अवसरों पर इसका प्रयोग बिना पूरक संज्ञा के भी होता है। जैसे—उसे देखते ही मेरी आँखें भर आईं; अर्थात् आँखों में आँसू भर गये। (ख) कुछ अवस्थाओं में अ० ‘भरना’ और ‘भर जाना’ के अर्थों में बहुत अधिक अन्तर भी होता है। जैसे—(क) तुम्हारी तरफ से हमारा मन भरा है; अर्थात् हम पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं और (ख) यहाँ रहते रहते हमारा जी भर गया है; अर्थात् हम ऊब गये हैं अथवा विरक्त हो गये हैं। ६. किसी चीज या बात से ओत-प्रोत या पूर्ण रूप से युक्त होना। जैसे—(क) इसी तरह की फालतू बातों से सारी पुस्तक भरी है। (ख) कीचड़ भरे पैर तो पहले धो लो। ७. ऋण, देन आदि का चुकाया जाना। परिशोधन होना। ८. अपेक्षा, आवश्यक, आशा आदि की किसी रूप में पूर्ति होना। जैसे—खाने-पीने की चीजों से पेट भरना, किसी के आचरण या व्यवहार से मन भरना। ९. अवकाश, छिद्र, विवर आदि का बंद होना। १॰. (अंक, गोद आदि के पूर्ण या किसी से युक्त होने के विचार से) आलिंगन होना। गले लगना। भेंटना। बसना। उदा०—हरी चंद सो करे जगदाता सो घर नीच भरै।—सूर। १३. किसी अंग से अधिक और कुछ समय तक निरंतर कोई काम लेते रहने पर उस अंग का कुछ पीड़ा-युक्त और भारी होना तथा काम करने में कष्ट बोध करना। जैसे—चलते-चलते पाँव भरना, लिखते-लिखते हाथ भरना (या भर जाना)। १४. गौ, घोड़ी, भैंद आदि मादा पशुओं का गर्भवती होना। संयो० क्रि०—आना। पुं० १. भरने या भरे जाने की क्रिया या भाव। २. भरने के लिए दी जानेवाली कोई चीज या किया जानेवाला परिश्रम, व्यय आदि। जैसे—इसी तरह बैठकर जनम भर दूसरों का भरना भरते रहो। ३. घूस, रिश्वत। (क्व०) स० [हिं० भार] भार उठाना या ढोना। उदा०—भरि भरि भार कहारन आना।—तुलसी।
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भरनि  : स्त्री० [सं० भरण] १. कपड़े लत्ते। पोशाक। २. दे० ‘भरनी’।
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भरनी  : स्त्री० [हिं० भरना] १. भरने या भरे जाने की क्रिया या भाव। २. वह चीज जो भरी जाय। ३. किसी काम या बात के फलस्वरूप प्राप्त होनेवाली दशा या स्थिति। जैसे—जैसी करनी वैसी भरनी। ४. खेतों में बीज आदि बोने की क्रिया। ५. खेतों की सिंचाई। ६. करगे में की डरकी। नार। ७. बुनाई में बाने का सूत। स्त्री० [?] १. छछूँदर। २. मोरनी। ३. गारुड़ी मंत्र। ४. एक प्रकार की जड़ी या बूटी। स्त्री०=भरणी (नक्षत्र)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भरपूर  : वि० [हिं० भरना+पूरा] १. जो पूरी तरह से भरा हुआ हो। परिपूर्ण। २. जिसमें किसी प्रकार की कमी या त्रुटि न हो। क्रि० वि० १. बहुत अधिक मात्रा या परिमाण मे। जितना चाहिए, उतना या उससे भी कुछ अधिक। २. पूर्ण रूप से। ३. अच्छी तरह। भली भाँति। पुं० =ज्वार (समुद्र का)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भरभराना  : अ० [अनु०] [भाव० भरभराहट] १. रोएँ खड़ा होना। २. (आँखों में) जल भर आना। २. (हृदय का) आवेगपूर्ण या विह्रल होना। ३. विफल होना। घबराना। ४. (ज्वर आदि में शरीर में) हलकी सूजन या दानों का उभार होना।
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भरभूँजा  : पुं० =भड़भूँजा।
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भरभेंटा  : पुं० [हिं० भर+भेंटना] १. अच्छी तरह गले मिलने की क्रिया। या भाव। २. मुकाबला। मुठभेंड़।
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भरम  : पुं० [सं० भ्रम] १. भ्रांति। संशय। संदेह। २. भेद। रहस्य। ३. अपने महत्त्व, साख आदि का रहस्य या विश्वसनीयता। क्रि० प्र०—खोना।—गँवाना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भरमना  : अ० [सं० भ्रमण] १. चलना-फिरना। घूमना या टहलना। २. इधर-उधर मारे-मारे फिरना। ३. धोखे में पड़कर इधर-उधर होना। भटकना। स्त्री० [सं० भ्रम] १. भूल। गलती। २. धोखा। भ्रांति। ३. मन में होनेवाला अनिश्चय। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भरमाना  : स० [हिं० भरमना का स० रूप०] १. ऐसा काम करना अथवा ऐसी स्थिति उत्पन्न करना जिससे किसी को भ्रम हो जाय। भ्रम में डालना। २. व्यर्थ इधर-उधर घूमना। भटकना। ३. आसक्त या मोहित करना। बिलमाना। अ० अचंभे में आना। चकित होना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भरमौहाँ  : वि० [हिं० भरम+औहाँ (प्रत्यय)] भ्रम उत्पन्न करनेवाला। भरमानेवाला। वि० [हिं० भरमना (घूमना)+औहाँ (प्रत्यय)] १. घूमने या घुमानेवाला। २. चक्कर खाने या खिलानेवाला।
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भरराना  : अ० [अनु०] १. भरर शब्द करते हुए गिरना। अरराना। २. किसी पर टूट या पिल पड़ना। स० १. भरर शब्द के साथ गिराना। २. किसी को किसी पर टूट या पिल पड़ने में प्रवृत्त करना।
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भरराना  : स० [हिं० भरना का प्रे० रूप०] भरने का काम दूसरो से कराना। किसी को कुछ भरने में प्रवृत्त करना।
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भरल  : स्त्री० [देश०] नीले रंग की एक प्रकार की जंगली भेड़ जो बहुत कुछ बकरी की तरह होती और हिमालय में भूटान से लद्दाख तक होती है।
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भरवाई  : स्त्री० [हिं, भरवाना] १. भरवाने की क्रिया,भाव या पारिश्रमिक। २. वह टोकरी जिसमें झबो रखकर ढोया जाता है।
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भरसन  : स्त्री०=भर्त्सना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भरसाईं  : स्त्री०=भड़साईं (भाड़)।
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भरहरना  : अ० [देश] अस्त-व्यस्त या तितर-बितर करना। अ०=भरभराना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भरहराना  : अ०=भहराना।
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भरा  : वि० [हिं० भरना] [स्त्री० भरी] १. जिसमें कोई चीज पूरी तरह से डाली गई हो या पड़ी हो। जैसे—भरा घड़ा, भरा बोरा। २. जिसमें अपेक्षित आवश्यक, उपयुक्त या संगत तत्त्व अतवा पदार्थ यथेष्ट मात्रा में हो। जैसे—भरी गोद, भरा घर, भरी बंदूक, भरा बाजार, भरी सभा ३.जो यथेष्ट उत्कर्ष, उन्नति अर्थात् पूर्णता तक पहुँच चुका हो। जैसे—भरी जवानी, भरी बरसात भरा शरीर। ४. जो किसी विशिष्ट तत्त्व या बात से इस प्रकार बहुत कुछ मुक्त हो कि जरा या संकेत या सहारा पाकर उबल या फूट पड़े। जैसे—वह तो पहले ही (क्रोध या दुःख से) बरा बैठा था, तुम्हे देखते ही बिगड़ खड़ा हुआ। पद—भरी सभा में=सब के सामने।
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भरा-महीना  : पुं० [हिं० पद] बरसात के दिन जिसमें खेतों में बीज बोये जाते हैं।
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भराई  : स्त्री० [हिं० भरना] १. भरने की क्रिया, भाव या पारिश्रमिक। २. मध्य युग में एक प्रकार का स्थानीय कर।
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भरांचिटी  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की घास।
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भराँति  : स्त्री०=भ्रांति।
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भरापूरा  : वि० [हिं०] १. जिसमें किसी बात की कमी या न्यूनता न हो। सब प्रकार से या सभी अपेक्षित बातों से युक्त। २. हर तरह से संपन्न और सुखी। जैसे—भरा-पूरा घर या परिवार।
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भराव  : पुं० [हिं० भरना+आव (प्रत्य)] १. भरे हुए होने की अवस्था या भाव। २. भरने की क्रिया या भाव। ३. वह पदार्थ या रचना जिससे कोई अवकाश या खाली जगह भरी गई हो या भरी जाती हो। जैसे—कसीदे की बूटियों में तागों का भराव।
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भरित  : भू०क-०[सं० भर+इतच्] १. जो भरा गया हो। भरा हुआ। १. जिसका भरण-पोषण किया गया हो।
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भरिया  : वि० [हिं,भरना] १. भरनेवाला। २. ऋण भरने या चुकानेवाला। पुं० वह जो बरतन आदि ढालने का काम करता हो। ढलाई करनेवाला। ढालिया। पुं० [हिं० भार] १. भार ढोनेवाला मजदूर। २. कहार।
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भरी  : स्त्री० [हिं० भर] दस माशे की तौल जिससे सोना,चाँदी आदि धातुएँ तौली जाती थी। स्त्री० [?] एक प्रकार की घास जिससे छप्पर छाय़े जाते हैं।
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भरी गोद  : स्त्री० [हिं०] (स्त्री की) ऐसी गोद जिसमें संतान न हो। मुहावरा—भरी गोद खाली होना=पुत्र या संतान का मर जाना।
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भरी जवानी  : स्त्री० [हिं०] पूर्णता तक पहुँची हुई ऐसी युवावस्था जिसका उतार अभी दूर हो। पूर्ण यौवन प्राप्त स्थिति। पद—भरी जावनी माँझा ढीला=यौवनावस्था में भी फुरती और शक्ति न होना।
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भरी थाली  : स्त्री० [हिं०] ऐसी स्थिति जिसमे जीविका का निर्वाह या इच्छाओं की पूर्ति सहज में होती हो जैसे—तुमने तो उसके आगे से भरी थाली खींच (या छीन) ली। मुहावरा—भरी थाली पर लात मारना=मिलती रोजी या लगी नौकरी जान-बूझकर छोड़ देना।
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भरु  : पुं० [सं०√भृ (भरण करना)+उन्] १. विष्णु। २. शिव। ३. समुद्र। ४ सोना। स्वर्ण। ५. मालिक। स्वामी। पुं० १. =भर। २. =भार। उदाहरण—भावक उभरौहों भयो कछू परयौ भरु आय।—बिहारी।
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भरुआ  : पुं० [देश०] टसर। पुं० =भड़ुआ। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भरुआना  : अ० [हिं० भारी+आना (प्रत्यय)] भारी होना। स० भारी करना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भरुका  : पुं० [हिं० भरना] पुरवे के आकार का मिट्टी का बना हुआ कोई छोटा पात्र। चुक्कड़।
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भरुज  : पुं० [सं० भ√रुज् (भंग करना)+क] [स्त्री० भरुजा] १. श्रृंगाल। २. भूना हुआ जौ।
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भरुटक  : पुं० [सं० भृ (भरण करना)+उट+कन्] भूना हुआ मांस।
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भरुहाना  : अ० [हिं,भारी या भारी+आना या होना (प्रत्यय)] अभिमान या घमंड करना। स० [हिं० भ्रम] १. भ्रम में डालना। २. बहकाना। ३. उत्तेजित करना। उकसाना। भड़काना।
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भरुही  : स्त्री० [देश०] कलम बनाने की एक प्रकार की कच्ची किलक। स्त्री०=बरत (पक्षी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भरेठ  : पुं० [हिं० भार+काठ] दरवाजे के ऊपर लगी हुई वह लकड़ी जिसके ऊपर दीवार उठाई जाती है। इसे ‘पटाव’ भी कहते हैं।
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भरेड  : पुं० =रेंड।
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भरैया  : वि० [हिं० भरना+ऐया (प्रत्यय] भरनेवाला। वि० [सं० भरण] भरण-पोषण करनेवाला। पालक। पोषक।
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भरोट  : पुं० [देश०] एक प्रकार की जंगली घास।
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भरोटा  : पुं० [हिं० भार+ओटा (प्रत्यय)] घास या लकड़ी आदि का गट्ठा। बोझ। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भरोस  : पुं० =भरोसा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भरोसा  : पुं० [?] १. मन की ऐसी स्थिति जिसमें यह आशा या विश्वास हो कि अमुक व्यक्ति समय पड़ने पर हमारी सहायता करेगा। आश्रय या सहारे के सम्बन्ध में मन में होनेवाली प्रतीति। अवलंब। आसरा। जैसे—हमें तो आप (या ईश्वर) का ही भरोसा है। २. ऐसी आशा जिसकी पूर्ति की बहुत कम संभावना हो। जैसे—मन में भरोसा रखो, वे तुम्हें निराश नही करेगें। पद—भरोसे का= जिस पर बहुत कुछ भरोसा किया जा सकता हो। विश्वसनीय।
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भरोसी  : वि० [हिं० भरोसा+ई (प्रत्यय)] १. भरोसा या आसरा रखनेवाला। जो किसी (काम बात या व्यक्ति) का भऱोसा रखता हो। २. जिसका भरोसा रखा जा सके। विश्वसनीय। ३. जो किसी के भरोसे रहता है। आश्रित।
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भरौती  : स्त्री० [हिं० भरना+औती (प्रत्यय)] १. भरने या भराने की क्रिया या भाव। २. वह रसीद जिसमें भरपाई लिखी गयी हो। भरपाई का कागज। ३. दे० ‘भरती’।
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भरौना  : वि० [हिं० भार+औना (प्रत्यय)] बोझिल। भारी। वजनी।
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भर्ग  : पुं० [सं०√भृज् (भूनना)+घञ्] १. शिव। महादेव। २. सूर्य का तेज। ३. चमक। दीप्ति। ४. एक प्राचीन जनपद।
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भर्जन  : पुं० [सं०√भृज्+ल्युट-अन] भाड़ में भूना हुआ अन्न।
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भर्तव्य  : वि० [सं० भृ+तव्य०] १. (भार) जो वहन किया जा सके। २. (व्यक्ति) जिसका भरण-पोषण किया जा सके या किया जाने को हो। पालनीय।
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भर्ता (र्त्तृ)  : वि० [सं०√भू+तृच्] भरण-पोषण करनेवाला। पुं० १. विष्णु। २. स्त्री का पति। ३. मालिक। स्वामी। पुं० =भरता। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भर्ती  : स्त्री०=भरती।
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भर्तृमती  : स्त्री० [सं० भर्तृ+मतुप्, ङीष्०] सधवा स्त्री।
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भर्तृस्थान  : पुं० [सं०] ग्रहों के स्वामी सूर्य का मूलस्थान,अर्थात् मुल्तान नगर।
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भर्तृहरि  : पुं० [सं०] १. उज्जैन के राजा इन्द्रदेव के पोते जो अपनी स्त्री समादेई (सिंघल की राजकुमारी) की दुश्चरित्रता के कारण दुःखी होकर संसार से विरक्त हो गये थे। संस्कृत में इनके बताये हुए श्रृंगार, शतक, नीति शतक, वैराग्य शतक, वाक्य पदीय आदि ग्रन्थ प्रसिद्ध है। २. संगीत में एक प्रकार का संकर राग जो ललित और पुरज के मेल से बनता है।
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भर्त्तार  : पुं० [सं० भर्त्तृ] स्त्री का पति। स्वामी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भर्त्सन  : पुं० [सं०√भत्स्+ल्युट-अन] किसी के अनुचित तथा दूषित आचरण या व्यवहार से क्रुद्ध और दुःखी होकर उसे कटु शब्दों में कुछ कहना और फलतः उसे लज्जित करना।
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भर्त्सना  : स्त्री० [सं०√भर्त्स+णिच्+युच्-अन,+टाप्०] १. =भर्त्सन। २. भर्त्सित होने की अवस्था या भाव।
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भर्त्सित  : भू० कृ० [सं०√भर्त्स+णिच्+क्त] जिसका भर्त्सना हुई या की गई हो।
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भर्म  : पुं० [सं०√भू (भऱण करना)+मिनन्] १. सोना। स्वर्ण। २. नाभि। पुं० =भ्रम।
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भर्मन  : पु०=भ्रमण। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भर्मना  : अ०=भरमना।
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भर्माना  : स०=भरमाना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भर्य  : पुं० [सं०√भृ (भरण करना)+यत्] किसी को भरण पोषण के निमित्त दिये जाने या मिलनेवाला धन। खरचा। गुजारा।
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भर्रा  : पुं० [भर शब्द से अनु] १. झाँसा। दमबुत्ता। क्रि० प्र०—देना। २. पक्षियों की उड़ान। ३. एक प्रकार की चिड़िया।
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भर्राटा  : पुं० [अनु०] १. भरभर शब्द होने की अवस्था या भाव। २. कुछ समय तक बराबर होनेवाला भरभर शब्द। क्रि० वि० १. भरभर शब्द करते हुए। २. बहुत जल्दी या तेजी से।
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भर्राना  : अ० [भर्र से अनु०] भर्र भर्र शब्द होना। जैसे—आवाज भर्राना। स० भर्र भर्र शब्द उत्पन्न करना। अ०=भरमाना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भर्सन  : पुं० =भर्त्सन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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भर्सना  : स्त्री०=भर्त्सना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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