शब्द का अर्थ
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					भंडा					 :
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					पुं० [सं० भाँड़] १. पात्र। बरतन। २. भंडार। ३. भेद। रहस्य। मुहावरा— (किसी का) भंडा फूटना=रहस्य विशेषतः कुचक्र का पता लोगों को लगना। भेद प्रकट होना। भंडा फोड़ना=गुप्त रहस्य खोलना। सब पर भेद प्रकट करना। ४. वह लकड़ी या बल्ला जिसका सहारा लगाकर मोटे और बारी बल्लों को उठाते या खिसकाते हैं।				 | 
			
			
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					भंडा-फोड़					 :
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					वि० [हि० भाँड़ा+फोड़ना] दूसरों का रहस्य विशेषतः कुचक्र लोगों पर प्रकट करनेवाला। पुं० किसी के गुप्त रहस्यों या कुचक्रों का सब पर किया जानेवाला उद्घाटन।				 | 
			
			
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					भंडार					 :
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					पुं० [सं० भांडार] १. कोष। खजाना। २. किसी चीज या बात का बहुत बड़ा आधान या आश्रय स्थान। जैसे—विद्या का भंडार। ३. अनाज रखने का कोठा। खत्ता। खत्ती। ४. वह कमरा या कोठरी जिसमें भोजन बनाने के लिए अन्न् बरतन आदि रखे जाते हैं। ५. उदर। पेट। ६. खोपड़ी। ७. नदी का तल। तलहटी। ८. किसी राजा या जमींदार की वह भूमि या गाँव जिसमें वह स्वंय खेती करता है। ९. दे० ‘भंडारा’।				 | 
			
			
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					भंडारा					 :
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					पुं० [हिं० भंडार] १. साधु-सन्यासियों आदि का भोज। वह भोज जिसमें संन्यासियों और साधुओ को खिलाया जाता है। क्रि० प्र०—करना।—देना। २. उदर। पेट। ३. खोपड़ी। ४. जीव-जन्तुओं का झुंड या समूह। क्रि० प्र०-जुड़ना ५. दे० ‘भंडार’।				 | 
			
			
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					भंडारी					 :
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					पुं० [हिं० भंडार+ई (प्रत्यय)] १. भंडार का प्रधान अध्यक्ष या व्यवस्थापक। भंडार का प्रबंधक। २. रसोइया। ३. खजांची। ४. तोपखाने का दरोगा। स्त्री० [हिं० भंडार+ई प्रत्यय)] १. कोश। खजाना। २. छोटी कोठरी। स्त्री०=१. भँडरिया। २. भंडार।				 | 
			
			
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