शब्द का अर्थ
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					बेहर					 :
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					पुं० [?] पहाड़ी इलाकों में वह नीची और ऊबड़-खाबड़ भूमि जिसकी बहुत सी मिट्टी नदी या वर्षा के जल से बह गई हो, और जगह जगह गहरे गड्ढ़े पड़ गये हों।				 | 
			
			
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					बेहर					 :
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					वि० [सं० विहृ ?] १. अचर। स्थावर। २. अलग। जुदा। पृथक्। उदा०—बेहर बेहर भाऊ तेन्ह खँड-खँड ऊपर जा।—जायसी। पुं० [?] वापी।= बावली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					बेहरना					 :
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					अ० [हिं० बेहर] किसी चीज का फटना या तड़क जानआ। दरार पड़ना।				 | 
			
			
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					बेहरा					 :
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					पुं० [देश०] १. एक प्रकार की घास जिसे चौपाये बहुत चाव से खाते हैं। (बुंदेल०) २. मूँज की घास जिसे चौपाये बहुत चाव से खाते हैं। (बुंदेल०) २. मूँज की बनी हुई गोल या चिपटी पिटारी जिसमें नाक में पहनने की नथ रखी जाती है। वि० [हिं० बेहर] अलग। जुदा। पृथक्। पुं०=बेयरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					बेहराना					 :
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					सं० [हिं० बेहरना का स०] फाड़ना।				 | 
			
			
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					बेहरी					 :
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					स्त्री० [सं० विहृति= बलपूर्वक लेना] १. किसी विशेष कार्य के लिए बहुत से लोगों से चंदे के रूप में माँगकर थोड़ा-थोड़ा धन इकट्ठा करने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०—उगाहना—माँगना। २. उक्त प्रकार से इकट्ठा किया हुआ धन। ३. वह किस्त जो असामी शिकमीदार को देता है। बाछा।				 | 
			
			
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