शब्द का अर्थ
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					बिच					 :
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					क्रि० वि०=बीच। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
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					बिचकना					 :
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					अ० [सं० विकुंचन] (मुँह) इस प्रकार कुछ टेढ़ा होना जिससे अप्रसन्नता, अरुचि आदि सूचति हो। जैसे—मुझे देखते ही उनका मुँह बिचक जाता है।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					बिचकाना					 :
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					स० [हिं० बिचकना का स०] १. कोई चीज देखकर उसके प्रति अपनी अप्रसन्नता अरुचि आदि प्रकट करते हुए मुँग कुछ टेढ़ा करना। जैसे—किसी को देखकर या किसी चीज के अप्रिय स्वाद के कारण मुँह बिचकाना। २. किसी का उपहास करने या मुँह चिढ़ाने के लिए उसकी तरह कुछ विकृत मुँह बनाना। किसी को चिढ़ाने के लिये बिगाड़कर उसी की तरह मुँह बनाना।				 | 
			
			
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					बिचच्छन					 :
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					वि०=विचक्षण। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					बिचरना					 :
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					अ० [सं० विचरण] १. इधर-उधर घूमना चलना-फिरना। विचरण करना। २. यात्रा या सफर करना।				 | 
			
			
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					बिचलना					 :
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					अ० [सं० विचलन] १. विचलित होना। इधर-उधर हटना। २. कहकर मुकरना। ३. साहस या हिम्मत छोड़ना। हतोत्साह होना। ४. सम्बन्ध छोड़कर अलग होना। अ० १.=बिछलना (फिसलना) २. बिछड़ना। ३. मचलना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					बिचला					 :
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					वि० [हि० बीच+ला(प्रत्यय)] [स्त्री० बिचली] १. बीच में होने या पड़नेवाला। २. जो न बहुत बड़ा हो और न बहुत छोटा। ३. मध्य श्रेणी का।				 | 
			
			
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					बिचलाना					 :
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					स० [सं० विचलन] १. विचलित करना। डिगाना। २. उचित मार्ग से इधर-उधर करना। बहकाना। ३. तितर-बितर करना। बिखेरना। ४. हिलाना।				 | 
			
			
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					बिचवई					 :
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					पुं० [सं० बीच+वई (प्रत्यय)] १. दीच-बचाव करनेवाला। २. मध्यस्थ। स्त्री० दो आदमियों का झगड़ा निपटाने के लिए की जानेवाली मध्यस्थता।				 | 
			
			
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					बिचवान					 :
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					पुं०=बिचवई। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					बिचवानी					 :
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					स्त्री०=बिचवई (मध्यस्थता)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					बिचार					 :
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					पुं०=विचार। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					बिचारना					 :
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					अ० [सं० विचार+ना (प्रत्यय)] १. विचार करना। सोचना। गौर करना। २. प्रश्न करना। पूछना।				 | 
			
			
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					बिचारा					 :
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					वि० [स्त्री० बिचारी]=बेचारा।				 | 
			
			
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					बिचारी					 :
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					पुं० [हि० बिचारना] विचार करनेवाला। विचारशील।				 | 
			
			
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					बिचाल					 :
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					पुं० [सं० विचाल] अंतर। फरक। स्त्री०=बे-चाल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					बिचुरना					 :
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					अ० [सं० विचयन] १. चयन करना। चुनना। २. कपास से बिनौले अलग करना। स० [सं० विचूर्णन] चूर्ण या टुकड़े-टुकड़े करना।				 | 
			
			
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					बिचेत					 :
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					वि० [सं० विचेतस्] १. मूर्च्छित। बेहोश। अचेत। २. जिसकी बुद्धि ठिकाने पर न रह गई हो। बद-हवास।				 | 
			
			
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					बिचौलिया					 :
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					पुं०=बिचौली। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					बिचौली					 :
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					पुं० [हिं० बीच+औली (प्रत्यय)] १. वह व्यक्ति जो उत्पादक से माल खरीदकर और बीच में कुछ नफा खाकर दुकानदारों आदि के हाथ बेचता हो। वह व्यक्ति जो किसी प्रकार का देन चुकानेवालों से वसूल करके मूल अधिकारी या स्वामी को देता हो और इस प्रकार बीच में स्वयं भी कुछ लाभ करता हो। (मिडिल मैन, उक्त दोनों अर्थों में) जैसे—जमींदार, जागीरदार आदि सरकार और किसानों के बीच में रहकर बिचौली का काम करते थे।				 | 
			
			
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					बिचौहा					 :
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					वि० [हिं० बीच+औहाँ (प्रत्यय)] बीच का। बीचवाला। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					बिच्छा					 :
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					पुं० [हि० बीच] १. बीच की दूरी या जगह। २. बीच का काल या समय। ३. अन्तर। फरक। पुं० [स्त्री० बिच्छी] बिच्छू। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					बिच्छू					 :
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					पुं० [सं० वृश्चिक] [स्त्री० बिच्छी] १. एक प्रसिद्ध छोटा जहरीला जानवर जो प्रायः गरम देशों में अंधेरे स्थानों में (जैसे—लकड़ियों या पत्थरों के नीचे, बिलों में रहता है। २. एक प्रकार की घास जो शरीर से छू जाने पर जलन उत्पन्न करती है। ३. काकतुंडी का पौधा या फल।				 | 
			
			
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					बिच्छेप					 :
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					पुं०=विक्षेप।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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