शब्द का अर्थ
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					प्रवर					 :
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					वि० [सं० प्रा० स०] १. सबसे अच्छा, बढ़कर या श्रेष्ठ। २. अवस्था या वय में सबसे बड़ा। (सीनियर) ३. अधिकार, योग्यता आदि में सबसे बड़ा माना जानेवाला। (सुपीरियर) पुं० १. अग्नि का एक विशिष्ट प्रकार का आवाहन या आहुति २. पूर्व पुरुषों का क्रम या श्रृंखला। ३. कुल। वंश। ४. ऐसे ऋषि या मुनि की वंश-परम्परा या शिष्य-परम्परा जो किसी गोत्र का प्रर्वतक या संस्थापक रहा हो। विशेष—हमारे यहाँ प्रवरों एक-प्रवर द्विप्रवर, त्रिप्रवर और पंचप्रवर भेद या प्रकार कहे गये हैं। ५. वंशज। संतान। ६. हिन्दुओं के ४२ गोत्रों में से एक। ६. उत्तरीय वस्त्र। चादर। ८. अगर की लकड़ी।				 | 
			
			
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					प्रवर समिति					 :
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					स्त्री० [कर्म० स०] किसी विषय की छानबीन करने और विचार-विमर्श के बाद निश्चित मत प्रकट करने के लिए बनाई जानेवाली वह समिति जिसमें उस विषय के चुने हुए विशेषज्ञ रखे जाते है। (सिलेक्ट कमेटी)				 | 
			
			
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					प्रवर-गिरि					 :
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					पुं० [सं० कर्म० स०] मगध देश के एक पर्वत का प्राचीन नाम।				 | 
			
			
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					प्रवरण					 :
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					पुं० [सं० प्र√वृ+ल्युट्—अन] १. देवताओं का आवाहन। २. बौद्धों का एक उत्सव जो वर्षा ऋतु के अन्त में होता था।				 | 
			
			
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					प्रवरा					 :
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					स्त्री० [सं० प्रवर+टाप्] १. अगुरु या अगर की लकड़ी। २. दक्षिण भारत की एक छोटी नदी जो गोदावरी में मिलती है।				 | 
			
			
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					प्रवर्ग					 :
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					पुं० [सं० प्र√वृज् (छोड़ना)+घञ्] १. हवन करने की अग्नि। होमाग्नि। २. किसी वर्ग के अन्तर्गत किया हुआ कोई छोटा विभाग। ३. विष्णु।				 | 
			
			
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					प्रवर्त					 :
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					पुं० [सं० प्र√वृत् (बरतना)+घञ्] १. कोई कार्य आरम्भ करना। अनुष्ठान। प्रवर्तन। ठानना। २. एक प्रकार के मेघ या बादल। ३. वैदिक काल का एक प्रकार का गोलाकार आभूषण या गहना।				 | 
			
			
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					प्रवर्तक					 :
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					वि० [सं० प्र√वृत्+णिच्+ण्वुल्—अक] १. प्रवर्तन (देखें) करनेवाला। २. किसी काम या बात का आरंभ अथवा प्रचलन करनेवाला। प्रतिष्ठाता। ३. काम में लगाने या प्रवृत्त करनेवाला। प्रेरित करनेवाला। ४. उभारने या उसकानेवाला। ५. गति देने या चलानेवाला। ६. नया आविष्कार करनेवाला। ७. न्याय या विचार करनेवाला। पुं० साहित्य में, रूपकों की प्रस्तावना का वह प्रकार या भेद जिसमें प्रस्तुत कार्य से संबद्ध कृत्य का परित्याग करके कोई और काम कर बैठने का दृश्य उपस्थित किया जाता है। जैसे—संस्कृत के ‘महावीर चरित’ में राम की वीरता से प्रसन्न होकर परशुराम उनसे लड़ने का विचार छोड़कर प्रेमपूर्वक उनका आलिगन करने लगते हैं।				 | 
			
			
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					प्रवर्तन					 :
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					पुं० [सं० प्र√वृत्+णिच्+ल्युट्—अन] [भू० कृ० प्रवर्तित, वि० प्रवर्तनीय, प्रवर्त्य] १. नया काम या नई बात का आरंभ करना। श्रीगणेश करना। ठानना। २. नये सिरे से प्रचलित करना। ३. जारी करना। जैसे—अध्यादेश का प्रवर्तन। ४. प्रवृत्त करना। ५. उत्तेजित करना। ६. दुरुत्साहन। प्रवर्तना				 | 
			
			
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					प्रवर्तित					 :
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					भू० क. [सं० प्र√वृत्त+णिच्+क्त] १. ठाना हुआ। आरब्ध। २. चलाया हुआ। ३. निकाला हुआ। ४. उत्पन्न। ५. उभरा हुआ। ६. उत्तेजित।				 | 
			
			
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					प्रवर्षण					 :
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					पुं० [सं० प्र√वृष् (बरसना)+ल्युट्—अन] १. वर्षा ऋतु की पहली वर्षा। ३. किष्किधा का एक पर्वत जहाँ राम-लक्ष्मण के कुछ समय तक निवास किया था।				 | 
			
			
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					प्रवर्ह					 :
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					वि० [सं० प्र√वृह् (बढ़ना)+अच्] प्रधान। श्रेष्ठ।				 | 
			
			
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