शब्द का अर्थ
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					पुष्टि					 :
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					स्त्री० [सं०√पुष+क्तिन] १. पुष्ट अर्थात् दृढ़ या मजबूत होने की अवस्था या भाव। दृढ़ता। मजबूती। २. पुष्ट करने की क्रिया या भाव। पोषण। ३. धन, संतान आदि की होनेवाली वृद्धि। बढ़ती। ४. वह उदाहरण, तर्क या प्रमाण, जिसमें कोई बात पुष्ट की जाय। ५. किसी कही हुई बात का ऐसा अनुमोदन या समर्थन जिससे वह और भी अधिक या पूर्ण रूप से पुष्ट हो जाय। जैसे—आपकी इस बात से मेरे मत (या संदेह) की पुष्टि होती है। ६. सोलह मातृकाओं में से एक। ७. मंगला, विजया आदि आठ प्रकार की चारपाइयों में से एक। ८. धर्म की पत्नियों में से एक। ९. एक योगिनी का नाम। १॰. असगंध नामक ओषधि। अश्वगंध। ११. दे० ‘पुष्टिमार्ग’।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
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					पुष्टि					 :
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					स्त्री० [सं०√पुष+क्तिन] १. पुष्ट अर्थात् दृढ़ या मजबूत होने की अवस्था या भाव। दृढ़ता। मजबूती। २. पुष्ट करने की क्रिया या भाव। पोषण। ३. धन, संतान आदि की होनेवाली वृद्धि। बढ़ती। ४. वह उदाहरण, तर्क या प्रमाण, जिसमें कोई बात पुष्ट की जाय। ५. किसी कही हुई बात का ऐसा अनुमोदन या समर्थन जिससे वह और भी अधिक या पूर्ण रूप से पुष्ट हो जाय। जैसे—आपकी इस बात से मेरे मत (या संदेह) की पुष्टि होती है। ६. सोलह मातृकाओं में से एक। ७. मंगला, विजया आदि आठ प्रकार की चारपाइयों में से एक। ८. धर्म की पत्नियों में से एक। ९. एक योगिनी का नाम। १॰. असगंध नामक ओषधि। अश्वगंध। ११. दे० ‘पुष्टिमार्ग’।				 | 
			
			
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					पुष्टि-कर					 :
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					वि० [ष० त०] १. पुष्ट करनेवाला। २. पुष्टि करनेवाला। ३. बल या वीर्य्यवर्द्धक।				 | 
			
			
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					पुष्टि-कर					 :
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					वि० [ष० त०] १. पुष्ट करनेवाला। २. पुष्टि करनेवाला। ३. बल या वीर्य्यवर्द्धक।				 | 
			
			
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					पुष्टि-कर्म (र्मन्)					 :
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					पुं० [ष० त०] अभ्युदय के लिए किया जानेवाला एक धार्मिक कृत्य।				 | 
			
			
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					पुष्टि-कर्म (र्मन्)					 :
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					पुं० [ष० त०] अभ्युदय के लिए किया जानेवाला एक धार्मिक कृत्य।				 | 
			
			
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					पुष्टि-काम					 :
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					वि० [ब० स०] अभ्युदय का इच्छुक।				 | 
			
			
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					पुष्टि-काम					 :
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					वि० [ब० स०] अभ्युदय का इच्छुक।				 | 
			
			
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					पुष्टि-कारक					 :
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					वि० [ष० त०] पुष्टिकर। (दे०)				 | 
			
			
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					पुष्टि-कारक					 :
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					वि० [ष० त०] पुष्टिकर। (दे०)				 | 
			
			
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					पुष्टि-मत					 :
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					पुं०=पुष्टि-मार्ग।				 | 
			
			
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					पुष्टि-मत					 :
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					पुं०=पुष्टि-मार्ग।				 | 
			
			
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					पुष्टि-मार्ग					 :
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					पुं० [ष० त०] भक्ति-क्षेत्र में, श्री वल्लभाचार्य के शुद्धाद्वैत मन की साधना-व्यवस्था जो श्रीमद्भागवत के ‘पोषणं तदनुग्रहः’ वाले तत्त्व पर आधारित है। इसमें भक्त कर्म-निरपेक्ष होकर भगवान श्रीकृष्ण को आत्म-समर्पण करके ही सुखी रहता है; और अपने कर्मों के फल की कामना नहीं करता।				 | 
			
			
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					पुष्टि-मार्ग					 :
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					पुं० [ष० त०] भक्ति-क्षेत्र में, श्री वल्लभाचार्य के शुद्धाद्वैत मन की साधना-व्यवस्था जो श्रीमद्भागवत के ‘पोषणं तदनुग्रहः’ वाले तत्त्व पर आधारित है। इसमें भक्त कर्म-निरपेक्ष होकर भगवान श्रीकृष्ण को आत्म-समर्पण करके ही सुखी रहता है; और अपने कर्मों के फल की कामना नहीं करता।				 | 
			
			
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					पुष्टिकरी					 :
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					स्त्री० [सं० पुष्टिकर+ङीष्] गंगा। (काशी-खंड)				 | 
			
			
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					पुष्टिकरी					 :
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					स्त्री० [सं० पुष्टिकर+ङीष्] गंगा। (काशी-खंड)				 | 
			
			
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					पुष्टिका					 :
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					स्त्री० [सं० पुष्टि+कन्—टाप्] जल की सीप। सुतही सीपी।				 | 
			
			
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					पुष्टिका					 :
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					स्त्री० [सं० पुष्टि+कन्—टाप्] जल की सीप। सुतही सीपी।				 | 
			
			
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					पुष्टिद					 :
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					वि० [सं० पुष्टि√दा (देना)+क] पुष्टिकर। (दे०)				 | 
			
			
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					पुष्टिद					 :
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					वि० [सं० पुष्टि√दा (देना)+क] पुष्टिकर। (दे०)				 | 
			
			
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					पुष्टिदग्धयत्न					 :
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					पुं० [सं० दग्ध-यत्न, ष० त०, पुष्टिदग्धयत्न, मध्य० स०] चिकित्सा का एक प्रकार जिसमें आग में जले हुए अंग को आग से सेंक कर या किसी प्रकार का गरम-गरम लेप करके अच्छा किया जाता है।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					पुष्टिदग्धयत्न					 :
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					पुं० [सं० दग्ध-यत्न, ष० त०, पुष्टिदग्धयत्न, मध्य० स०] चिकित्सा का एक प्रकार जिसमें आग में जले हुए अंग को आग से सेंक कर या किसी प्रकार का गरम-गरम लेप करके अच्छा किया जाता है।				 | 
			
			
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					पुष्टिदा					 :
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					स्त्री० [सं० पुष्टिद+टाप्] १. अश्वगंधा। असगंध। २. वृद्धि नाम की ओषधि।				 | 
			
			
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					पुष्टिदा					 :
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					स्त्री० [सं० पुष्टिद+टाप्] १. अश्वगंधा। असगंध। २. वृद्धि नाम की ओषधि।				 | 
			
			
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					पुष्टिपति					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] अग्नि का एक भेद।				 | 
			
			
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					पुष्टिपति					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] अग्नि का एक भेद।				 | 
			
			
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