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शब्द का अर्थ

पहुँ  : पुं० [सं० पिय ?] १. पति। २. प्रियतम।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पहु  : पुं०=प्रभु।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=पौ (प्रातःकाल का हलका प्रकाश)।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पहुँ  : पुं० [सं० पिय ?] १. पति। २. प्रियतम।
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पहु  : पुं०=प्रभु।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=पौ (प्रातःकाल का हलका प्रकाश)।
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पहुँच  : स्त्री० [हिं० पहुँचना] १. पहुँचने की क्रिया या भाव। २. किसी के कहीं पहुँचने की भेजी जानेवाली सूचना। जैसे—अपनी पहुँच तुरंत भेजना। ३. ऐसा स्थान जहाँ तक किसी की गति हो सकती हो या कोई पहुँच सकती हो। जैसे—यह तसवीर बहुत ऊँची टँगी है, तुम्हारे हाथ की पहुँच उस तक नहीं होगी (या न हो सकेगी)। ४. किसी स्थान तक पहुँचने की योग्यता, शक्ति या सामर्थ्य। पकड़। जैसे—वह स्थान बड़े बड़ों की पहुँच के बाहर है। ५. किसी विषय का होनेवाला ज्ञान या परिचय। ६. अभिज्ञता की सीमा। ज्ञान की सीमा।
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पहुँच  : स्त्री० [हिं० पहुँचना] १. पहुँचने की क्रिया या भाव। २. किसी के कहीं पहुँचने की भेजी जानेवाली सूचना। जैसे—अपनी पहुँच तुरंत भेजना। ३. ऐसा स्थान जहाँ तक किसी की गति हो सकती हो या कोई पहुँच सकती हो। जैसे—यह तसवीर बहुत ऊँची टँगी है, तुम्हारे हाथ की पहुँच उस तक नहीं होगी (या न हो सकेगी)। ४. किसी स्थान तक पहुँचने की योग्यता, शक्ति या सामर्थ्य। पकड़। जैसे—वह स्थान बड़े बड़ों की पहुँच के बाहर है। ५. किसी विषय का होनेवाला ज्ञान या परिचय। ६. अभिज्ञता की सीमा। ज्ञान की सीमा।
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पहुँचना  : अ० [सं० प्रभूत, प्रा० पहुँच्च] १. (वस्तु अथवा व्यक्ति का) एक विंदु से चलकर अथवा और किसी प्रकार दूसरे विन्दु पर (बीच का अवकाश पार करके) उपस्थित, प्रस्तुत या प्राप्त होना। जैसे—(क) रेलगाड़ी का दिल्ली पहुँचना। (ख) घड़ी की छोटी सूई का १२ पर पहुँचना। (ग) आदमी का घर या स्वर्ग पहुँचना। २. किसी से भेंट आदि करने के लिए उसके यहाँ जाकर उपस्थित होना। पद—पहुँचा हुआ=(क) जिसके संबंध में यह माना जाता हो कि वह सिद्धि प्राप्त करके ईश्वर तक पहुँच गया है। (ख) किसी काम या बात में पूर्ण रूप से दक्ष या पारंगत। किसी बात के गूढ़ रहस्यों या मूल तत्त्वों तक का पूरा ज्ञान रखनेवाला। ३. किसी के द्वारा भेजी हुई चीज का किसी व्यक्ति को मिलना या प्राप्त होना। जैसे—पत्र या संदेश पहुँचना। ४. (किसी चीज का) किसी रूप में मिलना या प्राप्त होना। जैसे—आघात या दुःख पहुँचना, फायदा पहुँचना। ५. फैलने या फैलाये जाने पर किसी चीज का किसी सीमा तक जाना या किसी दूसरी चीज को छूना अथवा पकड़ लेना। जैसे—(क) आग का जंगल की एक सीमा से दूसरी सीमा तक पहुँचना। (ख) हाथ का छींके तक पहुँचना। ६. मान, मात्रा, संख्या आदि में बढ़ते-बढ़ते या घटते-घटते किसी विशिष्ट स्थिति को प्राप्त होना। जैसे—(क) हमारे यहाँ गेहूँ की उपज ५॰ मन प्रति बीघे तक जा पहुँची है। (ख) लड़का आठवें दरजे में पहुँच गया है। (ग) ताप मान अभी ११॰ तक ही पहुँचा है। ७. बढ़कर किसी के तुल्य या बराबर होना। जैसे—अब तुम भी उनके बराबर पहुँचने लगे हो। ८. एक दशा या रूप से दूसरी दशा या रूप को प्राप्त होना। जैसे—जान जोखिम में पहुँचना। ९. प्रविष्ट होना। घुसना। जैसे—वह भी किसी न किसी तरह अंदर पहुँच गया। १॰. किसी चीज का किसी दूसरी चीज से प्रभावित होना। जैसे—कपड़ों में सील पहुँचना। ११. लाक्षणिक अर्थ में, किसी प्रकार के तत्त्व, भाव, मनःस्थति, रहस्य आदि को ठीक-ठीक जानने में समर्थ होना। जैसे—यह बहुत गंभीर विषय है, इस तक पहुँचना सहज नहीं है।
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पहुँचना  : अ० [सं० प्रभूत, प्रा० पहुँच्च] १. (वस्तु अथवा व्यक्ति का) एक विंदु से चलकर अथवा और किसी प्रकार दूसरे विन्दु पर (बीच का अवकाश पार करके) उपस्थित, प्रस्तुत या प्राप्त होना। जैसे—(क) रेलगाड़ी का दिल्ली पहुँचना। (ख) घड़ी की छोटी सूई का १२ पर पहुँचना। (ग) आदमी का घर या स्वर्ग पहुँचना। २. किसी से भेंट आदि करने के लिए उसके यहाँ जाकर उपस्थित होना। पद—पहुँचा हुआ=(क) जिसके संबंध में यह माना जाता हो कि वह सिद्धि प्राप्त करके ईश्वर तक पहुँच गया है। (ख) किसी काम या बात में पूर्ण रूप से दक्ष या पारंगत। किसी बात के गूढ़ रहस्यों या मूल तत्त्वों तक का पूरा ज्ञान रखनेवाला। ३. किसी के द्वारा भेजी हुई चीज का किसी व्यक्ति को मिलना या प्राप्त होना। जैसे—पत्र या संदेश पहुँचना। ४. (किसी चीज का) किसी रूप में मिलना या प्राप्त होना। जैसे—आघात या दुःख पहुँचना, फायदा पहुँचना। ५. फैलने या फैलाये जाने पर किसी चीज का किसी सीमा तक जाना या किसी दूसरी चीज को छूना अथवा पकड़ लेना। जैसे—(क) आग का जंगल की एक सीमा से दूसरी सीमा तक पहुँचना। (ख) हाथ का छींके तक पहुँचना। ६. मान, मात्रा, संख्या आदि में बढ़ते-बढ़ते या घटते-घटते किसी विशिष्ट स्थिति को प्राप्त होना। जैसे—(क) हमारे यहाँ गेहूँ की उपज ५॰ मन प्रति बीघे तक जा पहुँची है। (ख) लड़का आठवें दरजे में पहुँच गया है। (ग) ताप मान अभी ११॰ तक ही पहुँचा है। ७. बढ़कर किसी के तुल्य या बराबर होना। जैसे—अब तुम भी उनके बराबर पहुँचने लगे हो। ८. एक दशा या रूप से दूसरी दशा या रूप को प्राप्त होना। जैसे—जान जोखिम में पहुँचना। ९. प्रविष्ट होना। घुसना। जैसे—वह भी किसी न किसी तरह अंदर पहुँच गया। १॰. किसी चीज का किसी दूसरी चीज से प्रभावित होना। जैसे—कपड़ों में सील पहुँचना। ११. लाक्षणिक अर्थ में, किसी प्रकार के तत्त्व, भाव, मनःस्थति, रहस्य आदि को ठीक-ठीक जानने में समर्थ होना। जैसे—यह बहुत गंभीर विषय है, इस तक पहुँचना सहज नहीं है।
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पहुँचा  : पुं० [सं० प्रकोष्ठ अथवा हिं० पहुँचना] १. हाथ की कुहनी के नीचे और हथेली के बीच का भाग। कलाई। गट्टा। मणिबंध। मुहा०—(किसी का) पहुँचा पकड़ना=बलपूर्वक किसी को कोई काम करने के लिए उसे रोक रखने के लिए उसकी कलाई पकड़ना। जैसे— वह तो राह-चलते लोगों से पहुँचा पकड़कर माँगने (या लड़ने) लगता है। कहा०—उँगली पकड़ते, पहुँचा पकड़ना=किसी को जरा-सा अनुकूल या प्रसन्न देखकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए उसके पीछे पड़ जाना। २. टखने के कुछ ऊपर तथा पिंडली से कुछ नीचे का भाग। ३. पाजामे आदि की मोहरी का विस्तार। (पश्चिम)
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पहुँचा  : पुं० [सं० प्रकोष्ठ अथवा हिं० पहुँचना] १. हाथ की कुहनी के नीचे और हथेली के बीच का भाग। कलाई। गट्टा। मणिबंध। मुहा०—(किसी का) पहुँचा पकड़ना=बलपूर्वक किसी को कोई काम करने के लिए उसे रोक रखने के लिए उसकी कलाई पकड़ना। जैसे— वह तो राह-चलते लोगों से पहुँचा पकड़कर माँगने (या लड़ने) लगता है। कहा०—उँगली पकड़ते, पहुँचा पकड़ना=किसी को जरा-सा अनुकूल या प्रसन्न देखकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए उसके पीछे पड़ जाना। २. टखने के कुछ ऊपर तथा पिंडली से कुछ नीचे का भाग। ३. पाजामे आदि की मोहरी का विस्तार। (पश्चिम)
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पहुँचाना  : स० [हिं० पहुँचा का स०] १. किसी चीज को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना। जैसे—(क) उनके यहाँ मिठाई (या पत्र) पहुँचा दो। (ख) यह ताँगा हमें स्टेशन तक पहुँचायेगा। २. किसी व्यक्ति के संग चलकर उसे कहीं तक छोड़ने जाना। जैसे—नौकर का बच्चे को स्कूल पहुँचाना। ३. किसी को किसी विशिष्ट स्थिति में प्राप्त करना। किसी विशेष अवस्था या दशा तक ले जाना। जैसे—उन्हें इस उच्च पद तक पहुँचानेवाले आप ही हैं। ४. किसी रूप में उपस्थित, प्राप्त या विद्यमान कराना। जैसे—किसी को कष्ट या लाभ पहुँचाना; आँखों में ठंडक पहुँचाना; कहीं कोई खबर पहुँचाना। ५. प्रविष्ट कराना।
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पहुँचाना  : स० [हिं० पहुँचा का स०] १. किसी चीज को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना। जैसे—(क) उनके यहाँ मिठाई (या पत्र) पहुँचा दो। (ख) यह ताँगा हमें स्टेशन तक पहुँचायेगा। २. किसी व्यक्ति के संग चलकर उसे कहीं तक छोड़ने जाना। जैसे—नौकर का बच्चे को स्कूल पहुँचाना। ३. किसी को किसी विशिष्ट स्थिति में प्राप्त करना। किसी विशेष अवस्था या दशा तक ले जाना। जैसे—उन्हें इस उच्च पद तक पहुँचानेवाले आप ही हैं। ४. किसी रूप में उपस्थित, प्राप्त या विद्यमान कराना। जैसे—किसी को कष्ट या लाभ पहुँचाना; आँखों में ठंडक पहुँचाना; कहीं कोई खबर पहुँचाना। ५. प्रविष्ट कराना।
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पहुँची  : स्त्री० [हिं० पहुँचा] १. कलाई पर पहनने का एक तरह का गहना। जिसमें बहुत से गोल या कँगूरेदार दाने कई पत्तियों में गूँथे हुए होते हैं। २. प्राचीन काल में युद्ध के समय कलाई पर पहना जानेवाला एक तरह का आवरण। ३. पायल। पाजेब। (पश्चिम)
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पहुँची  : स्त्री० [हिं० पहुँचा] १. कलाई पर पहनने का एक तरह का गहना। जिसमें बहुत से गोल या कँगूरेदार दाने कई पत्तियों में गूँथे हुए होते हैं। २. प्राचीन काल में युद्ध के समय कलाई पर पहना जानेवाला एक तरह का आवरण। ३. पायल। पाजेब। (पश्चिम)
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पहुड़ना  : अ० १.=पौड़ना (तैरना)। २.=पौढ़ना (लेटना)।
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पहुड़ना  : अ० १.=पौड़ना (तैरना)। २.=पौढ़ना (लेटना)।
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पहुतना  : अ०=पहुँचना। (राज०)
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पहुतना  : अ०=पहुँचना। (राज०)
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पहुनई  : स्त्री०=पहुनाई।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पहुनई  : स्त्री०=पहुनाई।
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पहुना  : पुं०=पाहुना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पहुना  : पुं०=पाहुना।
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पहुनाई  : स्त्री० [हिं० पाहुना+आई (प्रत्य०)] १. पाहुने के रूप में कहीं ठहरने तथा सेवा-सत्कार आदि कराने की क्रिया या भाव। मुहा०—पहुनाई करना=बराबर दूसरों के यहाँ पाहुन या अतिथि बनकर खाते और रहते फिरना। दूसरों के आतिथ्य पर चैन से दिन बिताना। २. अतिथि का भोजन आदि से किया जानेवाला सत्कार। आतिथ्यसत्कार।
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पहुनाई  : स्त्री० [हिं० पाहुना+आई (प्रत्य०)] १. पाहुने के रूप में कहीं ठहरने तथा सेवा-सत्कार आदि कराने की क्रिया या भाव। मुहा०—पहुनाई करना=बराबर दूसरों के यहाँ पाहुन या अतिथि बनकर खाते और रहते फिरना। दूसरों के आतिथ्य पर चैन से दिन बिताना। २. अतिथि का भोजन आदि से किया जानेवाला सत्कार। आतिथ्यसत्कार।
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पहुनी  : स्त्री० [हिं० पाहुना का स्त्री०] १. रखेली स्त्री। २. समधी की स्त्री। समधिन। ३. दे० ‘पहुनाई’।
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पहुनी  : स्त्री० [हिं० पाहुना का स्त्री०] १. रखेली स्त्री। २. समधी की स्त्री। समधिन। ३. दे० ‘पहुनाई’।
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पहुन्नी  : स्त्री० [देश०] वह पच्चर जो लकड़ी चीरते समय चिरे हुए अंश के बीच इसलिए लगाया जाता है कि आरा चलाने के लिए बीच में यथेष्ट अवकाश रहे।
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पहुन्नी  : स्त्री० [देश०] वह पच्चर जो लकड़ी चीरते समय चिरे हुए अंश के बीच इसलिए लगाया जाता है कि आरा चलाने के लिए बीच में यथेष्ट अवकाश रहे।
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पहुप  : पुं०=पुष्प।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पहुप  : पुं०=पुष्प।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पहुमि (मी)  : स्त्री०=पुहमी (पृथ्वी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पहुमि (मी)  : स्त्री०=पुहमी (पृथ्वी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पहुरना  : पुं० [स्त्री० पहुरनी]=पाहुना।
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पहुरना  : पुं० [स्त्री० पहुरनी]=पाहुना।
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पहुरी  : स्त्री० [देश०] संगतराशों की एक तरह की चिपटी टाँकी जिससे वे गढ़े हुए पत्थर चिकने करते हैं। मठरनी।
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पहुरी  : स्त्री० [देश०] संगतराशों की एक तरह की चिपटी टाँकी जिससे वे गढ़े हुए पत्थर चिकने करते हैं। मठरनी।
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पहुला  : पुं० [सं० प्रफुल] १. कुमुद। कोई। उदा०—पहुला हारु हियैं लसै सन की बेंदी भाल।—बिहारी। २. गुलाब का फूल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पहुला  : पुं० [सं० प्रफुल] १. कुमुद। कोई। उदा०—पहुला हारु हियैं लसै सन की बेंदी भाल।—बिहारी। २. गुलाब का फूल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पहुवी  : पुहमी (पृथ्वी)। (राज०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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पहुवी  : पुहमी (पृथ्वी)। (राज०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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