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पवन  : पुं० [सं०√पू (पवित्र करना)+युच्—अन] १. वायु। हवा। २. विशेषतः वायु की वह हलकी धारा जो पृथ्वी के प्राणियों के आस-पास रहकर कभी कुछ तेज और कभी कुछ धीमी चलती है और जिसका ज्ञान हमारी त्वगिंद्रिय को होता है। (विंड) विशेष—हमारे यहाँ पुराणों में ४९ प्रकार के पवन कहे गये हैं। परन्तु लोक में पवन उसी अर्थ में प्रचलित है जो ऊपर बतलाया गया है। ३. हवा की सहायता से अनाज के दाने में से भूसा अलग करना। ओसाना। बरसाना। ४. श्वास। साँस। मुहा०—पवन का भूसा होना=उसी प्रकार अदृश्य या नष्ट हो जाना जिस प्रकार हवा में भूसा उड़ जाता है। ५. प्राण-वायु। ६. जल। पानी। ७. कुम्हार का आँवा। ८. विष्णु। ९. पुराणानुसार उत्तम मनु के एक पुत्र का नाम। १॰. रहस्य संप्रदाय में, प्राणायाम। उदा०—आसनु पवनु दूरि कर बवरे।—कबीर।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पवन  : पुं० [सं०√पू (पवित्र करना)+युच्—अन] १. वायु। हवा। २. विशेषतः वायु की वह हलकी धारा जो पृथ्वी के प्राणियों के आस-पास रहकर कभी कुछ तेज और कभी कुछ धीमी चलती है और जिसका ज्ञान हमारी त्वगिंद्रिय को होता है। (विंड) विशेष—हमारे यहाँ पुराणों में ४९ प्रकार के पवन कहे गये हैं। परन्तु लोक में पवन उसी अर्थ में प्रचलित है जो ऊपर बतलाया गया है। ३. हवा की सहायता से अनाज के दाने में से भूसा अलग करना। ओसाना। बरसाना। ४. श्वास। साँस। मुहा०—पवन का भूसा होना=उसी प्रकार अदृश्य या नष्ट हो जाना जिस प्रकार हवा में भूसा उड़ जाता है। ५. प्राण-वायु। ६. जल। पानी। ७. कुम्हार का आँवा। ८. विष्णु। ९. पुराणानुसार उत्तम मनु के एक पुत्र का नाम। १॰. रहस्य संप्रदाय में, प्राणायाम। उदा०—आसनु पवनु दूरि कर बवरे।—कबीर।
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पवन-अस्त्र  : पुं०=पवनास्त्र।
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पवन-कुमार  : पुं० [ष० त०] १. हनुमान। २. भीमसेन।
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पवन-चक्र  : पुं० [ष० त०] चक्कर खाती हुई चलनेवाली जोर की हवा। चक्रवात। बवंडर।
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पवन-चक्र  : पुं० [ष० त०] चक्कर खाती हुई चलनेवाली जोर की हवा। चक्रवात। बवंडर।
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पवन-तनय  : पुं० [ष० त०] १. हनुमान। २. भीमसेन।
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पवन-नन्द  : पुं० [ष० त०] पवन-पुत्र। (दे०)
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पवन-नन्दन  : पुं० [सं० ष० त०]=पवन-तनय।
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पवन-परीक्षा  : स्त्री० [ष० त०] १. अषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को होनेवाली ज्योतिषियों की एक क्रिया जिसमें वायु की गति आदि की जाँच करके ऋतु-संबंधी विशेषतः वर्षा संबंधी भविष्य का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। (कुछ स्थानों में देहातों में इस दिन मेले लगते हैं।) २. वह क्रिया जिससे यह जाना जाता है कि वायु की गति किस दिशा की ओर है। हवा देखना।
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पवन-परीक्षा  : स्त्री० [ष० त०] १. अषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को होनेवाली ज्योतिषियों की एक क्रिया जिसमें वायु की गति आदि की जाँच करके ऋतु-संबंधी विशेषतः वर्षा संबंधी भविष्य का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। (कुछ स्थानों में देहातों में इस दिन मेले लगते हैं।) २. वह क्रिया जिससे यह जाना जाता है कि वायु की गति किस दिशा की ओर है। हवा देखना।
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पवन-पुत्र  : पुं० [ष० त०] १. हनुमान। २. भीमसेन।
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पवन-पुत्र  : पुं० [ष० त०] १. हनुमान। २. भीमसेन।
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पवन-पूत  : पुं०=पवन-पुत्र।
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पवन-पूत  : पुं०=पवन-पुत्र।
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पवन-प्रचार  : पुं० [सं०] एक प्रकार का यंत्र जो यह सूचित करता है कि वायु का प्रवाह किस दिशा में हो रहा है।
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पवन-प्रचार  : पुं० [सं०] एक प्रकार का यंत्र जो यह सूचित करता है कि वायु का प्रवाह किस दिशा में हो रहा है।
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पवन-भट्ठी  : स्त्री० [सं० पवन+हिं० भट्ठी] धातुएँ आदि गलाने की एक विशेष प्रकार की आधुनिक यांत्रिक भट्ठी जिसमें नीचे से हवा पहुँचाकर आँच तेज की जाती है। (विंड फर्नेस)
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पवन-भट्ठी  : स्त्री० [सं० पवन+हिं० भट्ठी] धातुएँ आदि गलाने की एक विशेष प्रकार की आधुनिक यांत्रिक भट्ठी जिसमें नीचे से हवा पहुँचाकर आँच तेज की जाती है। (विंड फर्नेस)
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पवन-वाण  : पुं० [मध्य० स०] वह बाण जिसके चलाये जाने पर पवन का वेग बहुत अधिक बढ़ जाता था। (पुराण)
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पवन-वाण  : पुं० [मध्य० स०] वह बाण जिसके चलाये जाने पर पवन का वेग बहुत अधिक बढ़ जाता था। (पुराण)
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पवन-वाहन  : पुं० [ब० स०] अग्नि।
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पवन-व्याधि  : स्त्री० [ष० त०] वायु रोग। पुं० [ब० स०] श्रीकृष्ण के सखा उद्धव।
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पवन-व्याधि  : स्त्री० [ष० त०] वायु रोग। पुं० [ब० स०] श्रीकृष्ण के सखा उद्धव।
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पवन-संघात  : पुं० [ष० त०] किसी विशिष्ट स्थान पर दो विभिन्न दिशाओं से पवनों का एक साथ आना तथा परस्पर टकराना जो पुराणानुसार अकाल, शत्रुओं के आक्रमण आदि अशुभ लक्षणों का सूचक माना गया है।
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पवन-संघात  : पुं० [ष० त०] किसी विशिष्ट स्थान पर दो विभिन्न दिशाओं से पवनों का एक साथ आना तथा परस्पर टकराना जो पुराणानुसार अकाल, शत्रुओं के आक्रमण आदि अशुभ लक्षणों का सूचक माना गया है।
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पवन-सुत  : पुं० [ष० त०] १. हनुमान। २. भीमसेन।
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पवनचक्की  : स्त्री० [सं० पवन+हिं० चक्की] पवन के वेग से चलनेवाली चक्की। (विंडमिल) विशेष—ऐसी चक्की में ऊपर के ढाँचे में बड़ा सा पंखेदार चक्कर लगा रहता है। यह चक्कर हवा के जोर से घूमता है जिससे नीचे की चक्की का यंत्र चलने लगता है।
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पवनचक्की  : स्त्री० [सं० पवन+हिं० चक्की] पवन के वेग से चलनेवाली चक्की। (विंडमिल) विशेष—ऐसी चक्की में ऊपर के ढाँचे में बड़ा सा पंखेदार चक्कर लगा रहता है। यह चक्कर हवा के जोर से घूमता है जिससे नीचे की चक्की का यंत्र चलने लगता है।
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पवनज  : वि० [सं० पवन√जन्+ड] जो पवन से उत्पन्न हुआ हो। पुं० १. हनुमान। २. भीमसेन।
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पवनज  : वि० [सं० पवन√जन्+ड] जो पवन से उत्पन्न हुआ हो। पुं० १. हनुमान। २. भीमसेन।
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पवना  : पुं० [स्त्री० पवनी] पौना (झरना)।
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पवना  : पुं० [स्त्री० पवनी] पौना (झरना)।
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पवनात्मज  : पुं० [सं० पवन-आत्मज, ष० त०] १. हनुमान। २. भीमसेन। ३. अग्नि।
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पवनात्मज  : पुं० [सं० पवन-आत्मज, ष० त०] १. हनुमान। २. भीमसेन। ३. अग्नि।
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पवनाश  : पुं० [सं० पवन√अश् (खाना)+अण्] साँप।
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पवनाशन  : पुं० [सं० पवन-अशन, ब० स०] साँप।
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पवनाशनाश  : पुं० [सं० पवनाशन√अश्+अण्] १. गरुड़। २. मोर।
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पवनाशनाश  : पुं० [सं० पवनाशन√अश्+अण्] १. गरुड़। २. मोर।
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पवनाशी (शिन्)  : वि० [सं० पवन√अश्+णिनि] जो वायु पीकर जीता हो। पुं० साँप।
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पवनास्त्र  : पुं० [सं० पवन-अस्त्र, मध्य० स०] एक प्राचीन अस्त्र जिसके द्वारा वायु का वेग तीव्रतम किया जाता था। (पुराण)
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पवनास्त्र  : पुं० [सं० पवन-अस्त्र, मध्य० स०] एक प्राचीन अस्त्र जिसके द्वारा वायु का वेग तीव्रतम किया जाता था। (पुराण)
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पवनी  : स्त्री० [सं० √पु (पवित्र करना)+ल्युट्—अन, ङीष्] झाड़ू। स्त्री० [हिं० पाना=प्राप्त करना] गाँव में रहनेवाली वह प्रजा या कुछ जातियाँ जो अपने निर्वाह के लिए क्षत्रियों ब्राह्मणों अथवा गाँव के दूसरे रहनेवालों से नियमित रूप से कुछ नेग, पारिश्रमिक, पुरस्कार आदि के रूप में अन्न-धन पाती हैं। जैसे—कुम्हार, चमार, नाऊ, बारी, धोबी आदि। स्त्री० हिं० ‘पौना’ का स्त्री० अल्पा०।
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पवनी  : स्त्री० [सं० √पु (पवित्र करना)+ल्युट्—अन, ङीष्] झाड़ू। स्त्री० [हिं० पाना=प्राप्त करना] गाँव में रहनेवाली वह प्रजा या कुछ जातियाँ जो अपने निर्वाह के लिए क्षत्रियों ब्राह्मणों अथवा गाँव के दूसरे रहनेवालों से नियमित रूप से कुछ नेग, पारिश्रमिक, पुरस्कार आदि के रूप में अन्न-धन पाती हैं। जैसे—कुम्हार, चमार, नाऊ, बारी, धोबी आदि। स्त्री० हिं० ‘पौना’ का स्त्री० अल्पा०।
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पवनेष्ट  : पुं० [सं० पवन-इष्ट, स० त०] बकायन।
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पवनेष्ट  : पुं० [सं० पवन-इष्ट, स० त०] बकायन।
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पवनोबुज  : पुं० [सं० पवन-अंबुज उपमि० स०, पृषो० सिद्धि] फालसा।
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पवनोबुज  : पुं० [सं० पवन-अंबुज उपमि० स०, पृषो० सिद्धि] फालसा।
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