शब्द का अर्थ
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					परस					 :
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					पुं० [सं० स्पर्श] परसने की क्रिया या भाव। स्पर्श। पुं० [सं० परश] पारस पत्थर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					परसंग					 :
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					पुं०=प्रसंग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					परसन					 :
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					पुं० [सं० स्पर्शन] परसने की क्रिया या भाव। छूना। स्पर्श। जैसे—दरसन-परसन।				 | 
			
			
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					परसना					 :
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					स० [सं० स्पर्शन] १. स्पर्श करना। छूना। २. अनुभूत करना। उदा०—कछु भेदियाँ पीर हिये परसो।—घनानन्द। ३. भोजन करनेवालों की थालियों, पत्तलों आदि में खाद्य पदार्थ रखना। ५. भोजन कराना। परोसना। अ० खाद्य पदार्थों का पत्तलों आदि में रखा या लगाया जाना।				 | 
			
			
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					परसन्न					 :
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					वि० [भाव० परसन्नता]=प्रसन्न।				 | 
			
			
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					परसमनि					 :
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					पुं०=स्पर्शमणि (पारस पत्थर)।				 | 
			
			
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					परसर्ग					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] आधुनिक भाषा-विज्ञान में, ने, को, के, से, में आदि संज्ञा-विभक्तियाँ जिनके संबंध में यह कहा जाता है कि ये प्रकृति के साथ सटाकर नहीं बल्कि प्रकृति से हटाकर लिखी जानी चाहिए।				 | 
			
			
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					परसंसा					 :
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					स्त्री०=प्रशंसा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					परसा					 :
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					पुं०=परशु। २.=फरसा। पुं०=परोसा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					परसाद					 :
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					पुं०=प्रसाद। अव्य० [सं० प्रसादात्] १. प्रसाद या कृपा से। २. वजह से। कारण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					परसादी					 :
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					स्त्री०=परसाद (प्रसाद)।				 | 
			
			
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					परसाना					 :
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					स० [हिं० परसना] १. स्पर्श कराना। छुआना। २. भोजन परसने या परोसने का काम किसी से कारना।				 | 
			
			
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					परसिद्ध					 :
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					वि०=प्रसिद्ध।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					परसिया					 :
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					पुं० [देश०] एक तरह का पेड़ जिसकी लकड़ी मेज, कुरसियाँ आदि बनाने के काम आती है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [सं० परशु, हिं० परसा] १. छोटा परशु। २. हँसिया।				 | 
			
			
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					परसी					 :
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					स्त्री० [देश०] एक तरह की छोटी मछली।				 | 
			
			
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					परसु					 :
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					पुं०=परशु।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					परसूत					 :
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					वि०=प्रसूत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					परसेद					 :
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					पुं०=प्रस्वेद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					परसों					 :
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					अव्य० [सं० परश्व] १. बीते हुए दिन से ठीक पहलेवाला दिन। २. आगामी कल के बादवाला दूसरा दिन।				 | 
			
			
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					परसोतम					 :
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					पुं०=पुरुषोत्तम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					परसोर					 :
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					पुं० [देश०] एक तरह का अगहनी धान।				 | 
			
			
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					परसौहाँ					 :
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					वि० [हिं० परसना+औहाँ (प्रत्य०)] स्पर्श करने या छूनेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					परस्त्री-गमन					 :
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					पुं० [सं० परस्त्रीगमन, स० त०] पराई स्त्री के साथ संभोग करना जो विधिक दृष्टि से अपराध और धार्मिक दृष्टि से पाप है।				 | 
			
			
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					परस्पर					 :
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					अव्य० [सं० पर, द्वित्व, सकार का आगम] १. एक दूसरे के साथ। जैसे—दोनों रेखाओं को परस्पर मिलाओ। २. दो या दो से अधिक पक्षों में। जैसे—ब्च्चे परस्पर मिठाई बाँट लेंगे। ३. एक दूसरे के प्रति। जैसे—इन लोगों में परस्पर बैर है।				 | 
			
			
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					परस्पर-व्यापी					 :
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					वि० [सं०] (चीजें, बातें या स्थितियाँ) जो आपस में आंशिक रूप में एक दूसरे के क्षेत्र का अतिक्रमण करके उनमें व्याप्त हों। अतिच्छादित। (ओवरलैपिंग)				 | 
			
			
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					परस्परोपमा					 :
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					स्त्री० [सं० परस्पर-उपमा, ष० त०] उपमेयोपमा। (दे०)				 | 
			
			
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					परस्मैपद					 :
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					पुं० [सं० अलुक स०] संस्कृत धातुओं का एक वर्ग जिनसे बननेवाली क्रियाएँ कर्ता की अनुसारी होती हैं। ‘आत्मनेपद’ से भिन्न।				 | 
			
			
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					परस्व					 :
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					पुं० [सं०] १. दूसरे की संपत्ति। २. पराधीनता।				 | 
			
			
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