शब्द का अर्थ
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					पना					 :
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					पुं० [सं० प्रपानक या पानीय] भुने हुए आम, इमली आदि का बनाया जानेवाला एक तरह का खट-मीठा शरबत। पन्ना। प्रत्य०=पन। जैसे—पाजीपना।				 | 
			
			
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					पनाती					 :
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					पुं० [सं० प्रन्प्तृ] [स्त्री० पनातिन] पुत्र अथवा कन्या का नाती। पोते अथवा नाती का पुत्र। परनाती।				 | 
			
			
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					पनार (रा)					 :
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					पुं०=पनारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					पनारि					 :
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					स्त्री० [हिं० प=पर+नारि] पराई स्त्री। उदा०—जो पनारि कौ रसिक...। मतिराम।				 | 
			
			
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					पनाला					 :
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					पुं० [स्त्री० अल्पा० पनाली]=परनाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					पनालिया					 :
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					वि० [हिं० पनाला=परनाला] पनाले या परनाले के समान गंदा और त्याज्य। जैसे—पनालिया पग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					पनालिया-पत्र					 :
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					पुं० [हिं० पनालिया+सं० पत्र] वह समाचार-पत्र (या समाचार-पत्रों का वर्ग) जिसमें अधिकतर बातें अशिष्टतापूर्ण और अश्लील ढंग से कही जाती हैं और दूषित भाव से लोगों पर कीचड़ उछाला जाता है। (गटर प्रेस)				 | 
			
			
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					पनास					 :
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					पुं० [हिं० पनासना] १. पालन-पोषण। २. दे० ‘पोस’।				 | 
			
			
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					पनासना					 :
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					स० [सं० पानाशन] पोषण करना। पालना-पोसना।				 | 
			
			
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					पनाह					 :
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					स्त्री० [फा०] १. शत्रु के उपद्रव या दूसरे संकटों से प्राणरक्षा या अपना बचाव करने की क्रिया या भाव। त्राण। २. उक्त आशय से किसी की रक्षा या शरण में जाने की क्रिया या भाव। मुहा०—(किसी काम, बात या व्यक्ति से) पनाह माँगना=किसी बहुत ही अप्रिय या अनिष्ट वस्तु अथवा विकट व्यक्ति से दूर रहने की कामना करना। किसी से बहुत बचने की इच्छा करना। जैसे—मैं आप से पनाह माँगता हूँ। ३. ऐसा स्थान जहाँ छिप या रहकर कोई शत्रु संकट आदि से बचता हो। बचाव या रक्षा की जगह। क्रि० प्र०—देना।—पाना।—माँगना। मुहा०—पनाह लेना= विपत्ति से बचने के लिए रक्षित स्थान में पहुँचना। शरण लेना।				 | 
			
			
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