शब्द का अर्थ
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पंजी :
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स्त्री० [सं०√पंज्+इन्—ङीप्] हिसाब, विवरण आदि लिखने की पुस्तिका। रजिस्टर। बही। |
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पंजी-बंधन :
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पुं० [सं० त० त०]=पंजीयन। |
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पंजीकरण :
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पुं० [सं० पंजी+च्वि√कृ (करना)+ल्युट्—अन्] १. किसी लेख या लेखे का पंजी में लिखा जाना। २. नाम-सूची में नाम लिखा या चढ़ाया जाना। |
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पंजीकार :
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पुं० [सं० पंजी√कृ+अण्] १. वह जो पंजी या बही खाता लिखने का काम करता हो। आय-व्यय आदि का लेखक। मुनीम। २. वह ज्योतिष जो पंचांग बनाने का काम करता हो। ३. मिथिला में वह पंडित जिसके पास भिन्न-भिन्न गोत्रों के लोगों की वंशावलियाँ रहती हैं; और जो यह व्यवस्था देता है कि अमुक-अमुक परिवारों में वैवाहिक संबंध स्थापित हो सकता है या नहीं। |
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पंजीकृत :
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भू० कृ० [सं० पंजी√कृ+क्त] (लेख) जिसका पंजीकरण हुआ हो। |
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पंजीबद्ध :
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भू० कृ० [सं० त० त०]=पंजीकृत। |
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पंजीयक :
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पुं० [सं० पंजीकार] १. वह जो पंजी पर लेख, विवरण आदि लिखता हो। २. किसी संस्था अथवा विभाग के अभिलेख सुरक्षित रखनेवाला प्रधान अधिकारी। (रजिस्ट्रार) |
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पंजीयन :
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स्त्री० [सं० पंजीकरण] किसी लेख या लेखे का किसी कार्यालय की पंजी में (विशेषतः राजकीय पंजी में) लिखा जाना। (रजिस्ट्रेशन) |
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पंजीरी :
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स्त्री० [हिं० पाँच+ईरी (प्रत्य०)] कई करह की चीजों और मसालों को भूनकर बनाया जाने वाला एक प्रकार का मीठा चूर्ण खो जाने में काम आता है। कसार। जैसे—सत्यनारायण की पूजा के लिए बनानेवाली पँजीरी; प्रसूता अथवा दुर्बलों को खिलाने के लिए बनाई जानेवाली पौष्टिक पँजीरी। स्त्री० [देश०] दक्षिण भारत में होनेवाला एक प्रकार का पौधा जिसके कुछ अंगों का उपयोग औषध के रूप में होता है। अज-पाद। इन्दुपर्णी। |
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