शब्द का अर्थ
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					नैर					 :
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					पुं० [सं० नगर] १. नगर। शहर। २. जनपद। देश।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					नैरंग					 :
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					पुं० [फा०] १. अद्भुत या विलक्षण चीज या बात। २. इंद्रजाल। जादू। ३. कपट। छल। धोखा।				 | 
			
			
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					नैरंगबाज					 :
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					पुं० [फा०] [भाव० नैरंगबाजी] १. मायावी। जादूगर। २. कपटी। छल। धोखा।				 | 
			
			
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					नैरंगी					 :
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					स्त्री० [फा०] १. दे० ‘नैरंग’। २. चालबाजी। धूर्तता। ३. चित्र की चंचलता।				 | 
			
			
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					नैरंजना					 :
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					स्त्री० [सं०] फल्गु नदी का प्राचीन नाम।				 | 
			
			
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					नैरंतर्य					 :
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					पुं० [सं० निरंतर+ष्यञ्] निरंतरता।				 | 
			
			
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					नैरंति					 :
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					स्त्री० [सं० नैऋत्य] दक्षिण-पश्चिम के बीच की दिशा। नैऋत्य कोण।				 | 
			
			
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					नैरपेक्ष्य					 :
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					पुं० [सं० निरपेक्ष+ष्यञ्] १. निरपेक्षता। २. उपेक्षा।				 | 
			
			
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					नैरयिक					 :
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					वि० [सं० निरय+ठक्-इक] नरक संबंधी। २. नरक में रहने या होनेवाला।				 | 
			
			
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					नैरर्थ्य					 :
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					पुं० [सं० निरर्थ+ष्यञ्] निरर्थकता।				 | 
			
			
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					नैरात्म्य					 :
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					पुं० [सं० निरात्मन्+ष्यञ्]१. निरात्म होन की अवस्था या भाव। २. एक दार्शनिक सिद्धांत जिसमें यह प्रतिपादित किया जाता है कि वास्तव में आत्मा का कोई अस्तित्व नहीं है। (निहलिज्म)				 | 
			
			
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					नैरात्म्यवाद					 :
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					पुं०=अनात्मवाद।				 | 
			
			
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					नैराश्य					 :
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					पुं० [सं० निराश+ष्यञ्] १. निराश होने की अवस्था या भाव। ऐसी स्थिति जिसमें मनुष्य निराश हो जाता हो। ना-उम्मेदी। २. निराश होने के फलस्वरूप होनेवाली उदासी।				 | 
			
			
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					नैरास्य					 :
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					पुं० [सं०] बाण चलाने का एक मंत्र।				 | 
			
			
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					नैरिक					 :
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					वि० [सं० नीर+ठक्-इक] नीर या जल संबंधी। जैसे–नैरिक चिन्ह, नैरिक रेखा।				 | 
			
			
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					नैरिकेय					 :
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					पुं० [सं०] वह विज्ञान या शास्त्र जिसमें जल विशेषतः भूतल के नीचे के जल के गुणों नियमों प्रवाहों विभाजनों आदि का विचार होता है। (हाइड्रॉलाजी)।				 | 
			
			
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					नैरुक्त					 :
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					वि० [सं० निरुक्त+अण्]१. शब्दों की निरुक्ति या व्युक्त्पत्ति से संबंध रखने वाला। २. निरुक्त शास्त्र सं संबंध रखने वाला। पुं०१.वह व्यक्ति जो शब्दों की निरुक्ति या व्युत्पत्ति जानता हो। २. वह ग्रंथ जिसमें शब्दों की निरुक्ति या व्युत्पत्ति बतलाई गयी हो।				 | 
			
			
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					नैरुक्तिक					 :
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					वि०, पुं० [सं० निरूक्त+ठक्-इक]=नैरुक्त।				 | 
			
			
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					नैरुज्य					 :
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					पुं० [सं० निरुज+ष्यञ्] निरुज या निरोग होने की अवस्था या भाव। आरोग्य। तंदुरस्ती। स्वस्थता।				 | 
			
			
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					नैरूहिक					 :
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					पुं० [सं० निरूह+ठक्-इक]एक तरह की वस्ति। (सुश्रुत)				 | 
			
			
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					नैर्ऋत					 :
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					पुं० [सं० निर्ऋति+अण्] निर्ऋति-संबंधी। पुं० १. निर्ऋति की संतान अर्थात् राक्षस। २. नैऋत्य अर्थात् पश्चिम-दक्षिण कोण का स्वामी राहु। ३. मूल नक्षत्र।				 | 
			
			
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					नैर्ऋती					 :
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					स्त्री० [सं० नैर्ऋत+ङीप्] १. दक्षिण-पश्चिम के मध्य की दिशा व कोण। २. दुर्गा।				 | 
			
			
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					नैर्ऋतेय					 :
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					वि० [सं० निऋति++ढक्–एय] निर्ऋति संबंधी। पुं० निर्ऋति देवता के वंशज।				 | 
			
			
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					नैर्गुण्य					 :
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					पुं० [सं० निर्गुण+ष्यञ्]१. निर्गुणता। २. कला कौशल आदि के ज्ञान का अभाव। ३. सत्त्व रज और तम तीनों गुणों से रहित होने की अवस्था या भाव।				 | 
			
			
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					नैर्देशिक					 :
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					वि० [सं० निर्देश+ठक्–इक] १. निर्देश संबंधी। २. निर्देश के रूप में होनेवाला। ३. निर्देश का पालन करनेवाला। पुं० नौकर। भृत्य।				 | 
			
			
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					नैर्मल्य					 :
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					पुं० [सं० निर्मल+ष्यञ्] १. निर्मलता। २. विषय-वासना आदि से रहित होना।				 | 
			
			
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					नैर्लज्य					 :
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					पुं० [सं० निर्लज्य+ष्यञ्] निर्लज्जता। बेहयाई।				 | 
			
			
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