शब्द का अर्थ
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					द्यु					 :
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					पुं० [सं०√दिव् (चमकना)+उन्] १. दिन। दिवस। २. आकाश। ३. स्वर्ग। ४. सूर्य लोक। ५. अग्नि। आग।				 | 
			
			
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					द्यु-गण					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] दे० ‘अहर्गण’।				 | 
			
			
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					द्यु-ज्या					 :
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					स्त्री० [सं० उपमि० स०] अहोरात्र वृत्त की व्यासरूप ज्या।				 | 
			
			
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					द्यु-निश					 :
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					पुं० [सं० द्व० स०] दिन और रात।				 | 
			
			
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					द्यु-पति					 :
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					पुं० [ष० त०] १. सूर्य। २. इन्द्र।				 | 
			
			
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					द्यु-मणि					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] १. सूर्य। २. आक। मदार। ३. वैद्यक में शोधा हुआ तांबा।				 | 
			
			
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					द्यु-लोक					 :
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					पुं० [सं० कर्म० स०] स्वर्गलोक।				 | 
			
			
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					द्यु-सद्म (न्)					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] स्वर्ग।				 | 
			
			
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					द्यु-सरित्					 :
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					स्त्री० [सं० ष० त०] स्वर्ग की मंदाकिनी नदी।				 | 
			
			
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					द्युक					 :
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					पुं० [सं० द्यु+कन्] उल्लू।				 | 
			
			
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					द्युकारि					 :
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					पुं० [सं० द्युक-अरि ष० त०] कौआ।				 | 
			
			
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					द्युग					 :
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					वि० [सं० द्यु√गम् (गति)+ड] आकाश में गमन करनेवाला। पुं० चिड़िया। पक्षी।				 | 
			
			
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					द्युचर					 :
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					वि० [सं० द्यु√चर (गति)+ट] आकाश में चलने या विचरण करनेवाला। पुं० १. चिड़िया। पक्षी। २. ग्रह, नक्षत्र आदि आकाशस्थ पिंड।				 | 
			
			
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					द्युत					 :
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					वि० [सं०√द्युत् (प्रकाश)+क] जिसमें द्युति या प्रकाश हो। चमकीला। पुं० किरण				 | 
			
			
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					द्युताध्यक्ष					 :
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					पुं० [द्युत-अध्यक्ष, ष० त०] प्राचीन भारत में वह राजकीय अधिकारी जो जूए का निरीक्षण करता था और जुआरियों से राजकीय प्राप्य भाग लिया करता था। (कौ०)				 | 
			
			
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					द्युति					 :
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					स्त्री० [सं०√द्युत्+इन्] १. प्रकाशमान होने की अवस्था, गुण या भाव। चमक। २. शारीरिक सौन्दर्य। शरीर की कांति। ३. लावण्य। छवि। ४. किरण। पुं० चतुर्थ मनु के समय के एक ऋषि (पुराण)।				 | 
			
			
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					द्युति-कर					 :
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					वि० [ष० त०] प्रकाश उत्पन्न करनेवाला। चमकनेवाला। पुं० ध्रुव।				 | 
			
			
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					द्युति-धर					 :
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					वि० [ष० त०] प्रकाश या कांति धारण करनेवाला। पुं० विष्णु।				 | 
			
			
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					द्युतित					 :
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					भू० कृ०=द्योतित।				 | 
			
			
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					द्युतिमंत					 :
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					वि०=द्युतिमान्।				 | 
			
			
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					द्युतिमा					 :
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					स्त्री० [हिं० द्युति+मा (प्रत्य०)] प्रकाश। रोशनी। २. चमक। द्युति। ३. तेज।				 | 
			
			
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					द्युतिमान्(मत्)					 :
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					वि० [सं० द्युति+मतुप्] [स्त्री० द्युतिमती] जिसमें चमक या आभा हो। प्रकाशवाला। पुं० १. स्वायंभुव मनु के एक पुत्र। २. महाभारत काल में शाल्व देश के एक राजा जिन्हें क्रौच द्वीप का राज्य मिला था।				 | 
			
			
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					द्युन					 :
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					पुं० [सं०] जन्मकुंडली में लग्न से सातवाँ स्थान।				 | 
			
			
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					द्युपथ					 :
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					पुं० [सं०] आकाशमार्ग।				 | 
			
			
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					द्युमत्सेन					 :
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					पुं० [सं०] शाल्व देश के एक राजा जो सत्यवान् के पिता थे और दुर्भाग्य से अंधे हो गये थे।				 | 
			
			
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				| 
					द्युमद्गान					 :
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					पुं० [सं०] एक प्रकार का सामगान।				 | 
			
			
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					द्युमयी					 :
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					स्त्री० [सं०] विश्वकर्मा की कन्या जो सूर्य को ब्याही थी।				 | 
			
			
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					द्युमान् (मत्)					 :
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					वि० [सं० दिव्+मतुप्, उत्व]= द्युतिमान्।				 | 
			
			
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					द्युम्न					 :
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					पुं० [सं० द्यु√म्ना (अभ्यास)+क] १. सूर्य। २. अन्न। ३. धान। ४. बल। शक्ति।				 | 
			
			
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					द्युवा (वन्)					 :
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					पुं० [सं०√द्यु (आगे बढ़ना)+कनिन्] १. सूर्य। २. स्वर्ग।				 | 
			
			
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				| 
					द्युषद्					 :
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					पुं० [सं० द्यु√सद् (गति)+क्विप्] १. देवता। २. ग्रह, नक्षत्र आदि आकाशचारी पिंड।				 | 
			
			
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