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दृष्टांत  : पुं० [सं० दृष्ट-अन्त, ब० स०] १. किसी चीज या बात का अंतिम, निश्चित और प्रामाणिक रूप देखना। २. कोई नई बात कहने अथवा मत प्रकट करने के समय उसकी प्रामाणिकता या सत्यता के पोषण या समर्थन के लिए उसी से मिलती-जुलती कही जानेवाली कोई ऐसी पुरानी और प्रामाणिक घटना या बात जिसे प्रायः लोग जानते हों। मिसाल। (इन्स्टेन्स) जैसे—भाइयों के पारस्परिक प्रेम का उल्लेख करते हुए उन्होंने राम और लक्ष्मण का दृष्टांत दिया। विशेष—उदाहरण और दृष्टांत में मुख्य अंतर यह है कि उदाहरण तो बौद्धिक और व्यावहारिक तथ्यों, पदार्थों, विचारों आदि के संबंध में नियम या परिपाटी के स्पष्टीकरण करने के लिए होता है, परन्तु दृष्टांत प्रायः आचरणों और क्रतियों के संबंध में आदर्श और प्रमाण के रूप में होता है। ‘उदाहरण’ का क्षेत्र अपेक्षाया अधिक विस्तृत और व्यापक हैं, इसी लिए ‘दृष्टांत’ के अन्तर्गत नहीं होता। इसके सिवा उदाहरण का प्रयोग तो साधारण बात-चीत के अवसर पर होता है, परन्तु दृष्टांत का प्रयोग नियम, मर्यादा, विधि, विधान आदि के पालन के प्रसंग में होता है। ३. उक्त के आधार पर साहित्य में, एक प्रकार का सादृश्य-मूलक अर्थालंकार जिसमें उपमेय और उपमान दोंनों से संबंध रखनेवाले वाक्यों में सेधर्म की पररस्परिक समानता और बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव दिखाया जाता है। विशेष—(क) ‘उदाहरण’ और ‘दृष्टांत’ अलंकारों में यह अंतर है कि उदाहरण में तो साधारण का विशेष से और विशेष का साधारण से समर्थन होता है; पर ‘दृष्टांत’ से साधारण की समता साधारण से और विशेष की समता विशेष से होती है। इसके सिवा उदाहरण में मुखय लक्ष्य उपमेय वाक्य (वाक्य का पूर्वार्ध) होता है; पर दृष्टांत में मुख्य लक्षण उपमान वाक्य (वाक्य का उत्तरार्ध) होता है। (ख) दृष्टांत और प्रतिवस्तूपमा में यह अन्तर है कि दृष्टांत में तो कही हुई बातों के सभी धर्मों में समानता होती है; परन्तु प्रतिवस्तूपमा में किसी एक ही धर्म की समानता का उल्लेख होता है। इसी लिए कुछ लोगों का मत है कि इन्हें एक ही अलंकार के दो भेद मानना चाहिए। ४. शास्त्र। ५. मरण। मृत्यू।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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