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दूर  : वि० [सं० दूर्√इ (गति)+रक्, धातु का लोप, रलोप, दीर्घ] [फा० दूर] [भाव० दूरत्व, दूरी] जो देश, काल, संबंध, स्थिति आदि के विचार से किसी निश्चित वस्तु, बिंदु व्यक्ति आदि से बहुत अंतर या फासले पर हो। जो निकट, पास या समीप अथवा किसी से मिला हुआ न हो। पद—दूर का=जो पास या समीप का न हो। जिससे घनिष्ठ लगाव या संबंध न हो। जैसे—(क) वे भी हमारे दूर के रिश्तेदार हैं। (ख) ये सब तो बहुत दूर की बातें हैं। दूर का बात=(क) बहुत आगे चलकर आनेवाली बात। (ख) बहुत कठिन और प्रायः अनहोनी-सी बात। (ग) दूरदर्शिता और समझदारी की बात। मुहा०—दूर की कहना=बहुत समझदारी की बात और दूरदर्शिता की बात कहना। दूर की सूझना=दूरदर्शिता की बात ध्यान में आना। (ख) ऐसी बात का ध्यान में आना जो प्रायः अनहोनी या असंभव हो। (व्यंग्य) क्रि० वि० १. देश, काल, संबंध आदि के विचार से किसी निश्चित बिंदु से बहुत अंतर पर। बहुत फासले पर। ‘पास’ का विपर्याय। जैसे—उनका मकान यहाँ से बहुत दूर है। २. अलग। पृथक्। जैसे—वे झगड़ों से दूर रहते हैं। मुहा०-दूर करना=(क) अलग या जुदा करना। अपने पास से हटाना। (ख) न रहने देना। नष्ट कर देना। जैसे—बीमारी दूर करना। दूर खिंचना, भागना या रहना=उपेक्षा, घृणा, तिरस्कार आदि के कारण बिलकुल अलग रहना। पास न आना। बचना। जैसे—इस तरह की बातों में सदा दूर रहना चाहिए। दूर तक पहुँचना=दूर की या बहुत बारीक बात सोचना। दूर दूर करना=उपेक्षा, घृणा आदि के कारण तिरस्कारपूर्वक अपने पास से अलग करना या हटाना। दूर होना=(क) पास से अलग हो जाना। लगाव या संबंध न रह जाना। जैसे—अब वे पुरानी आदतें दूर हो गई हैं। (ख) नष्ट हो जाना। मिट जाना। जैसे—बीमारी दूर हो गई है। पद—दूर क्यों जायँ या जाइए=अपरिमित या दूर दृष्टांत न लेकर परिचित और निकटवाले का ही विचार करें। जैसे—दूर क्यों जायँ, अपने भाई-बंदों को ही देख लीजिए।
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दूर-चित्र  : पुं० [मध्य० स०] [वि० दूर-चित्री] वह चित्र या प्रतिकृति जो विद्युत् की सहायता से दूरी पर प्रस्तुत की जाती है। (टेलिफोटोग्राफ)
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दूर-चित्रक  : पुं० [सं० दूरचित्र+क्विप्+णिच्+ण्वुल्—अक] वह यंत्र जिसकी सहायता से दूरचित्र प्रस्तुत किये जाते हैं। (टेलिफोटोग्राफ)
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दूर-चित्रण  : पुं० [स० त०] दूर-चित्रक यंत्र की सहायता से दूर चित्र प्रस्तुत करने की क्रिया या प्रणाली। (टेलिफोटोग्राफी)
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दूर-दर्श  : पुं० [ष० त०] रेडियो की तरह का एक उपकरण जिसमें अभिनय प्रसारण, भाषण, आदि करनेवाले व्यक्तियों के कथन सुनाई पड़ने के साथ-साथ उनके चित्र भी दिखाई पड़ते हैं। (टेलिवीजन)
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दूर-दर्शक  : वि० [ष० त०] १. दूरदर्शी। २. बुद्धिमान। पुं० दूर-बीन। दूर-वीक्षक। (दे०)
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दूर-दर्शन  : पुं० [ष० त०] १. दूर की चीज देखना या बात सोचना, समझना। २. [ब० स०] गिद्ध। २. वैज्ञानिक प्रक्रिया जिसमें विद्युत तरंगों की सहायता से बहुत दूर के दृश्य प्रत्यक्ष रूप से सामने दिखाई देते हैं। ४. दे० ‘दूर-दर्श’।
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दूर-दर्शिता  : स्त्री० [सं० दूरदर्शिन्+तल्—टाप्] दूरदर्शी होने की अवस्था, गुण या भाव। दूरंदेशी।
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दूर-दृष्टि  : स्त्री० [स० त०] भविष्य की बातों को पहले से ही सोचने-समझने की शक्ति।
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दूर-पात  : वि० [ब० स०] दूर से आने के कारण थका हुआ।
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दूर-पार  : अव्य० [हिं०] इसे दूर करो; और इसका नाम तक न लो। (स्त्रियाँ) उदाह०—गाल पर ऊँगली को रखकर यूँ कहा। मैं तेरे घर जाऊँगी। ऐ दूर-पार।—रंगी।
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दूर-प्रसर  : वि० [ब० स०] दूर तक फैलनेवाला। उदा०—वे हैं समृद्धि की दूर-प्रसर माया में।—निराला।
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दूर-प्रहारी (रिन्)  : वि० [सं० दूर-प्र√हृ (हरण)+णिनि] १. दूर तक प्रहार करनेवाला। २. (तोप या बंदूक) जिसके गोले-गोलियों की उड़ान का पल्ला अधिक लंबा होता है; अर्थात् जो बहुत दूर तक मार करे।
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दूर-बोध  : पुं० [ष० त०] शारीरिक इंद्रियो की सहायता लिये बिना केवल आध्यात्मिक या मानसिक बल से दूसरे के मन की बातें या विचार जानने की क्रिया या विद्या। (टेलिपैथी)
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दूर-बोधी (धिन्)  : पुं० [सं० दूरबोध+इनि] वह जो दूरबोध की कला या विद्या जानता हो। (टेलिपैथिस्ट) वि० दूर-बोध की कला या विद्या से संबंध रखनेवाला। (टेलिपैथिक)
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दूर-भाषक  : पुं० [ष० त०] [वि० दूर-भाषिक] एक प्रसिद्ध यंत्र जिसकी सहायता से दूर बैठे हुए लोग आपस में बात-चीत करते हैं। (टेलिफोन)
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दूर-भाषिक  : वि० [सं०] दूर-भाषक यंत्र संबंधी या उसके द्वारा होनेवाला। (टेलीफोनिक) जैसे—दूर-भाषिक संवाद।
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दूर-मुदृक  : पुं० [सं०] एक आधुनिक यंत्र जिसकी सहायता से दूर-लेख (तार से आये हुए संदेश, समाचार आदि) कागज पर छपते चलते है। (टेलिप्रिंटर) विशेष—वस्तुतः यह दूर-लेखक यंत्र के साथ लगा हुआ एक प्रकार का टंकन यंत्र होता है, जिससे आये हुए संदेश आदि हाथ से लिखने की आवश्यकता नहीं रह जाती, वे आप से आप कागज पर टंकित होते रहते या छपते चलते हैं।
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दूर-मुदृण  : पुं० [सं०] दूर-मुदृक यंत्र के द्वारा संदेश टंकित करने या छापने की प्रक्रिया या प्रणाली। (टेलीप्रिंटिंग)
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दूर-मुद्र  : पुं० [सं०] दूर-मुदृक यंत्र की सहायता से अंकित दूर-लेख। (टेलिप्रिंट)
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दूर-मूल  : पुं० [ब० स०] मूँज।
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दूर-लेख  : पुं० [ष० त०] दूर-लेखक यंत्र कि सहायता से (अथ्राततार द्वारा) आया हुया संदेश या समाचार।(टेलीग्राम)
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दूर-लेखक  : पुं० [ष० त०] १. एक प्रकार का यंत्र जिसके द्वारा कुछ विशिष्ट संकेतों के द्वारा दूरी पर समाचार भेजने का यंत्र। (टेलीग्राफ) २. वह जो उक्त यंत्र के द्वारा समाचार भेजने और प्राप्त करने की विद्या जानता हो। (टेलीग्राफिस्ट)
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दूर-लेखतः (तस्)  : क्रि० वि० [सं० दूरलेख+तस्] दूर-लेखक यंत्र की प्रकिया अथवा सहायता से। (टेलिग्रफिकली) जैसे—उत्तर दूर लेखतः भेजेंगे।
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दूर-लेखी (खिन्)  : वि० [सं० दूरलेख+इनि] दूर-लेख के द्वारा होने या उससे संबध रखनेवाला। (टेलिग्राफिक) जैसे—दूर-लेखी धनादेश। (टेलीग्राफिक मनीआडर)
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दूर-वाणी  : स्त्री० दे० ‘दूर भाषक’।
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दूर-वीक्षक  : पुं० [ष० त०] नल के आकार का एक प्रसिद्ध उपकरण जिसे आँखों के सामने सटाकर रखने पर दूर की चीजें कुछ पास और फलतः स्पष्ट दिखाई देती है। दूर-बीन। (टेलिस्कोप)
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दूर-वीक्षण  : पुं० [ष० त०] दूर की चीजें दूर-वीक्षक की सहायता से देखने की क्रिया या भाव।
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दूरक  : वि० [सं० दूर+णिच्+ण्वुल्—अक] १. दूर करने या हटानेवाला। २. दूर या अलग रखनेवाला, और फलतः विरोधी। उदा०—ये उभय परस्पर पूरक हैं अथवा दूरक यह कौन कहे।—मैथिलीशरण।
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दूरंग  : पुं०=दुर्ग (किला)। उदा०—सवा लष्ष उत्तर सयल, कमऊँ गढ़ दूरंग।—चंदबरदाई।
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दूरंगम  : वि० [सं० दूर√गम् (जाना)+खच्, मुम्]=दूरगामी।
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दूरगामी (मिन्)  : वि० [सं० दूर√गम् (जाना)+णिनि] दूर तक गमन करनेवाला।
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दूरंतरी  : अव्य० [सं० दूरांतरे] दूर से। उदा०—दुरंतरी आवतौ देखि।—प्रिथीराज।
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दूरता  : स्त्री० [सं० दूर+तल्—टाप्]=दूरी।
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दूरता-मापक  : पुं० [ष० त०] एक प्रकार का यंत्र जिसकी सहायता से भू-मापन, युद्ध-क्षेत्र आदि में वस्तुओं की दूरी जानी जाती है। (टेलिमीटर)
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दूरत्व  : पुं० [सं० दूर+त्व] दूर होने की अवस्था या भाव। दूरी।
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दूरदर्शक-यंत्र  : पुं० [कर्म० स०] दूर-बीन। दूर-वीक्षक।
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दूरदर्शी (र्शिन्)  : वि० [सं०] बहुत दूर तक की बात पहले ही सोच तथा समझ लेनेवाला। पुं० १. पंडित। विद्वान २. बुद्धिमान। ३. गिद्ध नामक पक्षी।
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दूरंदेश  : वि० [फा० दूरअंदेश] [भाव० दूरंदेशी] अग्र-शोची। दूरदर्शी।
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दूरंदेशी  : स्त्री० [फा०] दूरदर्शिता।
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दूरबा  : स्त्री०=दूर्वा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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दूरबीन  : वि० [फा०] दूर तक देखनेवाला। स्त्री० दे० ‘दूरवीक्षक’। (यंत्र)
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दूरवर्ती (तिन्)  : वि० [सं० दूर√व्रत (बरतना)+णिन] जो अधिक दूरी पर स्थित हो। दूर का।
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दूरस्थ  : वि० [सं० दूर-√स्था (ठहरना)+क] १. जो दूरी पर स्थित हो। २. (घटना) जिसके वर्तमान में घटित होने की संभावना न हो।
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दूरागत  : भू० क्र० [दूर-आगत पं० त०] दूर से आया हूआ। उदा०— ‘माँ’। फिर एक किलक दूरागत गूँज उठी कुटिया सूनी।—प्रसाद।
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दूरांतरित  : वि० [दूर-अंतरित] १. दूर किया हुआ। २. दूरस्थ।
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दूरान्वय  : पुं० [दूर-अन्वय तृ० त०] रचना का वह दोष जो कर्त्ता और क्रिया, विशेष्य और विशेषण आदि के पास-पास न रहने अर्थात् परस्पर अनावश्यक रूप से दूर रहने के कारण उत्पन्न होता है।
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दूरापात  : पुं० [दूर-आपात ब०त०] वह अस्त्र जो दूर से फेंककर चलाया जाय।
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दूरारूढ़  : वि० [दूर-आरुढ़ स० त०] १. बहुत आगे बढ़ा हुआ। २. तीव्र। ३. बद्धमूल। ४. प्रगाढ़।
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दूरि  : वि०=दूर। स्त्री०=दूरी।
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दूरी  : स्त्री० [सं० दूर+ई (प्रत्य०)] १. दूर होने की अवस्था या भाव। २. दो वस्तुओं, विन्दुओं आदि के बीच के बीच का अवकाश, विस्तार या स्थान। स्त्री० [?] खाकी रंग की एक प्रकार की लवा (चिड़िया)।
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दूरीकरण  : पुं० [सं० दूर+च्वि√क्र (करना)+ल्युट्—अन] दूर करने या हटाने की क्रिया या भाव।
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दूरे-अमित्र  : पुं० [ब० स० अलुक् समास] उमचास मरुतों में से एक मरुत् का नाम।
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दूरोह  : पुं० [सं० दूर्√रुह् (चढ़ना)+खल्, दीर्घ] आदित्य सोक जहाँ चढ़कर जाना बहुत कठिन है।
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दूरोहण  : पुं० [सं० दूर्-रोहण प्रा० ब० स०] सूर्य।
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दूर्य  : पुं० [सं० दूर+यत्] १. छोटा कचूर। २. गुह। मल। विष्ठा।
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दूर्वा  : स्त्री० [सं०√ दूर्व् (हिंसा)+अच्—टाप्] एक प्रसिद्ध पवित्र घास जो देवताओं को चढ़ाई जाती है। दूब।
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दूर्वाक्षी  : स्त्री० [सं०] वसुदेव के भाई वृक की स्त्री का नाम। (भागवत)
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दूर्वाद्य घृत  : पुं० [दूर्वा-आद्य ब० स०, दूर्वद्य-घृत कर्म० स०] वैद्यक में, एक प्रकार की बकरी का घी जिसमें दूब, मजीठ, एलुआ, सफेद चंदन आदि मिलाया जाता है और जिसका व्यहार आँख, मुँह, नाक, कान आदि से रक्त जानेवाला रक्त रोकने के लिए होता है।
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दूर्वाष्टमी  : स्त्री० [दूर्वा-अष्टमी मध्य० स०] भादों सुदी अष्टमी जिस दिन हिंदू व्रत करते हैं।
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दूर्वासोम  : पुं० [सं०] एक तरह की सोमलता। (सुश्रुत)
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दूर्वेष्टिका  : स्त्री० [स० दूर्वा-इष्टिका मध्य० स०] एक तरह की ईंट जिससे यज्ञ की वेदी बनाई जाती थी।
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