शब्द का अर्थ
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					दाख					 :
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					स्त्री० [सं० द्राक्षा] १. अंगूर नामक लता और उसका फल। २. मुनक्का। ३. किशमिश। वि०=दक्ष। उदाहरण—ताकों विहित बखानहीं, जिनकी कविता दाख।—मतिराम।				 | 
			
			
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					दाख-निर्विषी					 :
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					स्त्री० [हिं० दाख+ सं० निर्विषी] हर-जेवड़ी नामक झाड़ी जिसकी पत्तियों और जड़ों का औषध के रूप में व्यवहार होता है। पुरही।				 | 
			
			
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					दाखना					 :
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					स० १.=दिखाना। २.=देखना।				 | 
			
			
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					दाखिल					 :
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					वि० [फा०] १. जो किसी विशिष्ट क्षेत्र या स्थान की सीमा लाँघ कर उसमें प्रविष्ट कर चुका हो। २. कहीं आया या पहुँचा हुआ। ३. जो कहीं दिया या पहुँचाया गया हो। (फाइल्ड)				 | 
			
			
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					दाखिल-खारिज					 :
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					पुं० [अ०] किसी वस्तु पर से किसी का स्वामित्व बदलने पर पुराने स्वामी का नाम काटकर नये स्वामी का नाम सरकारी कागज पत्रों पर चढ़ाया जाना।				 | 
			
			
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					दाखिल-दफ्तर					 :
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					वि० [फा० दाखिल] (निवेदन, याचना आदि संबंधी पत्र) जो बिना किसी प्रकार का निर्णय या विचार किये, परंतु रक्षित रखने के लिए दफ्तर के कागज-पत्रों, नत्थियों आदि में रख दिया गया हो।				 | 
			
			
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					दाखिला					 :
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					पुं० [फा० दाखिलः] १. किसी व्यक्ति के कहीं दाखिल या प्रविष्ट होने की क्रिया या भाव। २. नियत शुल्कों आदि के अतिरिक्त वह धन जो पहले-पहल किसी संस्था में दाखिल या सम्मिलित होकर उसके सदस्यों के नाम लिखाने के समय अथवा विद्यालयों आदि में भरती होने के समय विद्यार्थियों को देना पड़ता है। प्रवेश-शुल्क। ३. वह पत्र जो कहीं कुछ चीजें दाखिल या जमा करने पर उसके प्रमाण के रूप में लिखा करनेवाले का नाम, पता आदि बातें लिखी रहती हैं।				 | 
			
			
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					दाखिली					 :
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					वि० [अ०] १. आंतरिक। भीतरी। अंतरंग। ‘खारिजी’ का विपर्याय। २. दिली। हार्दिक।				 | 
			
			
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					दाखी					 :
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					स्त्री०=दाक्षी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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