शब्द का अर्थ
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					थन					 :
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					पुं० [सं० स्तन] १. गाय, भैंस, बकरी इत्यादि चौपायों का वह अंग जिसमें दूध जमा रहता है। २. उक्त अंग का फली के समान का उपांग जिसे दबा तथा खींचकर दूध दूहा जाता है।				 | 
			
			
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					थन-टुट्टू					 :
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					वि० [हिं० थन+टूटना] (मादा पशु) जिसके थन का दूध टूट गया हो; अर्थात् दूध आना या उतरना बन्द हो गया हो।				 | 
			
			
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					थनकुदी					 :
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					स्त्री० [देश०] एक तरह की नीले रंगवाली छोटी चिड़िया।				 | 
			
			
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					थनगन					 :
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					पुं० [बरमी] एक प्रकार का बड़ा पेड़ जो मध्यभारत में बहुतायत से होता है। स्त्री०=ठन-गन।				 | 
			
			
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					थनी					 :
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					स्त्री० [सं० गलस्तन] १. गलथना। (दे०) २. हाथी के कान के पास गलथने की तरह निकाला हुआ मांस-पिंड। ३. घोड़े की लिंगेंद्रिय में थन के आकार का लटकता हुआ मांस जो ऐब समझा जाता है।				 | 
			
			
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					थनु					 :
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					पुं०=थन।				 | 
			
			
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					थनुसुत					 :
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					पुं० [सं० स्थाणु+सुत] शिव के पुत्र गणेश और कार्तिकेय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					थनेला					 :
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					पुं० [हिं० थन+एला (प्रत्य०)] [स्त्री० अल्पा० थनेली] १. स्तन पर विशेषतः स्त्रियों के स्तन पर होनेवाला एक तरह का फोड़ा। २. एक तरह का कीड़ा जिसके गाय आदि के थन पर काटने से उनका दूध सूख जाता है।				 | 
			
			
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					थनैत					 :
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					पुं० [हिं० थान] १. किसी स्थान का अधिकारी देवता या शासक। २. गाँव का मुखिया। २. वह अधिकारी जो जमींदारों की ओर से गाँवों से लगान वसूल करता था।				 | 
			
			
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