शब्द का अर्थ
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					टेर					 :
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					स्त्री० [सं० तार=संगीत में ऊंचा स्वर] १. टेरने की क्रिया या भाव। २. किसी को बुलाने के लिए ऊँचे स्वर से की जानेवाली पुकार। ३. संगीत में वह ऊँचा स्वर जिसका उच्चारण एक साथ निरन्तर कुछ समय के लिए किया जाय। ४. गुजर। निर्वाह।				 | 
			
			
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					टेरक					 :
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					वि० [सं० केकर, पृषो० सिद्ध] ऐंचाताना। भेंगा।				 | 
			
			
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					टेरना					 :
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					स० [हिं० टर+ना (प्रत्यय)] १. किसी को अपने पास बुलाने के लिए कुछ ऊंचे स्वर से या चिल्लाकर पुकारना। २. किसी प्रकार के संकेत के रूप में या यों ही ऊंचा स्वर निकालना। जैसे–मुरली या वंशी टेरना। स० [?] १. (काम, बात या समय) टालना। २. (किसी व्यक्ति को) टरकाना।				 | 
			
			
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					टेरवा					 :
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					पुं० [देश०] हुक्के की वह नली जिस पर चिलम रखी जाती हैं।				 | 
			
			
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					टेरा					 :
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					पुं० [?] १. अंकोल का पेड़। २. पेड़ का तना या धड़। ३. पेड़ की डाल या शाखा। वि० दे० ‘भेंगा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					टेराकोटा					 :
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					पुं० [अं०] मृण्मूर्ति (दे०)।				 | 
			
			
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					टेरी					 :
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					स्त्री० [देश०] १. पतली शाखा। टहनी। २. कुंती या बखेरी नाम का पौधा जिसकी कलियां चमड़ा सिझाने के काम आती हैं ३. बक्कम की फली। ४. दरी की बुनाई में काम आनेवाला एक प्रकार का सूजा।				 | 
			
			
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					टेरो					 :
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					स्त्री० [देश०] एक तरह की सरसों। उलटी।				 | 
			
			
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