शब्द का अर्थ
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					झलक					 :
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					स्त्री० [सं० झल्लिका=चमक] १. झलकने की क्रिया, अवस्था या भाव। २. ऐसा क्षणिक दर्शन या प्रत्यक्षीकरण जिसमें किसी चीज के रूप-रंग, आकार-प्रकार आदि का पूरा-पूरा ज्ञान तो न हो, पर उसका कुछ आभास अवश्य मिल जाय। ३. ऐसा दृश्य जिससे किसी चीज का संक्षिप्त परिचय मात्र मिलता हो। ४. चित्रकला में, वह आभा या रंगत जो किसी समूचे चित्र में व्याप्त हो। ५. चमक। प्रभा।				 | 
			
			
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					झलकदार					 :
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					वि० [हिं० झलक+फा० दार] जिसमें आभा या चमक हो। चमकीला।				 | 
			
			
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					झलकना					 :
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					अ० [हिं० झलक+ना (प्रत्यय)] १. इस प्रकार किसी के सामने एकाएक कुछ क्षणों के लिए उपस्थित होना और तुरंत ही अंतर्धान या अदृश्य हो जाना कि उसके आकार-प्रकार, रूप-रंग आदि का ठीक और पूरा भान न हो पाये। २. लाक्षणिक अर्थ में किसी बात आदि का आभास मात्र मिलना। जैसे–उसकी बात से झलकता था कि पुस्तक उसी ने चुराई है। ३. चमकना।				 | 
			
			
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					झलकनि					 :
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					स्त्री०=झलक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					झलका					 :
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					पुं० [सं० ज्वल=जलना] छाला। फफोला। उदाहरण–झलका झलकत पायन ऐसे।–तुलसी।				 | 
			
			
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					झलकाना					 :
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					स० [हिं० झलकना का स० रूप०] १. ऐसी क्रिया करना जिससे कोई चीज झलके या कुछ चमकती हुई थोड़ी देर के लिए सामने आये। २. चमकाना। ३. बात-चीत व्यवहार आदि में कोई अभिप्राय या आशय बहुत ही अस्पष्ट या कुछ छिपे हुए रूप में लक्षित कराना। आभास देना। दरसाना।				 | 
			
			
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					झलकी					 :
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					स्त्री० [हिं० झलक] १. आकाशवाणी रेडियो से प्रसारित होनेवाली एक प्रकार की बहुत छोटी नाटिका जिसके अंगों को परस्पर सम्बद्ध करने के लिए व्याख्यात्मक छोटी वार्त्ता भी होती है। इनमें दैनिक जीवन की सामान्य घटनाओं का उल्लेख होता है। (आधुनिक) २.=झलक।				 | 
			
			
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