शब्द का अर्थ
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					जेह					 :
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					स्त्री० [सं० ज्या से फा० जिह=चिल्ला] १. धनुष की डोरी में का वह अंश जो खींचकर आँख के पास लाया जाता है तथा निशाने की सीध में रखा जाता है। चिल्ला। २. दीवार के नीचेवाले भाग में होनेवाला पलस्तर जो साधारणयतः कुछ अधिक मोटा होता है। क्रि० प्र०–उतारना।–निकालना।				 | 
			
			
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					जेहड़					 :
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					स्त्री० [हिं० जेट+घट] एक के ऊपर एक करके रखे हुए जल से भरे घड़े।				 | 
			
			
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					जेहड़ि					 :
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					अव्य० [?] १. ज्यों ही। २. जैसे ही। (डिं०)				 | 
			
			
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					जेहन					 :
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					पुं० [अ० जेहन] [वि० जहीन] समझने-बूझने की योग्यता या शक्ति। धारणा-शक्ति। बुद्धि।				 | 
			
			
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					जेहनदार					 :
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					वि०=जहीन (तीक्ष्ण बुद्धिवाला)।				 | 
			
			
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					जेहर					 :
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					स्त्री० [?] पैर में पहनने की पाजेब।				 | 
			
			
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					जेहरि					 :
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					स्त्री०=जेहर। (पाजेब)।				 | 
			
			
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					जेहल					 :
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					स्त्री० [फा० जिहल] [वि० जेहली] १. बेवकूफी। मूर्खता। २. हठ। जिद। पुं० =जेल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					जेहलखाना					 :
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					पुं=जेलखाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					जेहली					 :
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					वि० [फा० जिहल] जो कोई बात समझाने-बुझाने पर जल्दी समझता हो।				 | 
			
			
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					जेहवा					 :
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					क्रि० वि० [स्त्री० जेहवी]=जैसा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					जेहा					 :
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					क्रि० वि० [स्त्री० जेही]=जैसा।				 | 
			
			
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					जेहि					 :
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					सर्व० [सं० यस्] १. जिसको। जिसे। २. जिससे।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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