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शब्द का अर्थ

चौप  : पुं०=चोप।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
चौपई  : स्त्री० [सं० चतुष्परी] १५ मात्राओं का एक प्रकार का छंद जिसके चरणों के अन्त में एक-एक लघु होता है।
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चौपखा  : पुं० [हिं० चौ=चार+सं० पक्ष, हिं० पाख] १. चारों ओर के पाखे या दीवारें। २. चहारदीवारी। परिखा।
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चौपग  : पुं० [हिं० चौ+पग] वह जिसके चार पैर हों। चौपाया।
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चौपट  : वि० [हिं० चौ=चार+पट=किवाड़ा, या हिं० चापट] १.चारों ओर से खुला हुआ; और फलतः अरक्षित। जैसे–घर के सब दरवाजे चौपट खुले छोड़कर चल दिये। २. (कार्य या वस्तु) जो नष्ट-भ्रष्ट हो गई हो। जैसे– उन्होंने सारा खेल (या मकान) चौपट कर दिया। ३. (व्यक्ति) जो बुरे संग-साथ के कारण बुरी आदतें सीखकर बिलकुल बिगड़ गया या भ्रष्ट हो चुका हो।
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चौपट चरण  : पुं० [हिं० चौपट+सं० चरण] वह व्यक्ति जिसके कहीं पहुँचने अथवा किसी काम में हाथ लगाने पर सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट हो जाता हो। (परिहास और व्यंग्य)
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चौपटहा, चौपटा  : वि० [हिं० चौपट+हा (प्रत्य०)] १. किया-धरा काम चौपट करनेवाला। तोड़-फोड़ या नष्ट-भ्रष्ट करनेवाला।
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चौपड़  : स्त्री० [सं० चतुष्पट, प्रा० चउप्पट] १. चौसर (खेल और बिसात)। मुहा०–चौपड़-मँड़ना, मढ़ना या माँड़ना=चौपड़ खेलने के लिए बिसात बिछाना। २. खाट, पलंग आदि की बुनावट का वह प्रकार जिसमें चौसर की आकृति बनी होती है। ३. मन्दिर, महल आदि के आँगन की उक्त प्रकार की बनावट। जैसे–मन्दिर के चौपड़ में....भाले गड़वाये।–वृन्दावनलाल वर्मा।
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चौपड़  : पुं०=चौपाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चौपत  : वि० [हिं० चौ=चार+परत] १. चार तहों या परतों में लगाया या लपेटा हुआ। २. जिसकी या जिसमें चार तहें हों। पुं० [?] पत्थर का वह टुकड़ा जिसकी कील पर कुम्हार का चाक रखा रहता है।
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चौपतना, चौपताना  : स० [हिं० चौपात] १. किसी चीज विशेषतः कपड़े आदि की चार तहें लगाना। २. लपेटकर तह लगाना।
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चौपतिया  : वि० [हिं० चौ+पत्ती] १. चार पत्तोंवाला। जिसमें चार पत्ते हों। २. जिसमें चार पत्तियाँ एक साथ दिखाई गई हों। जैसे–चौपतिया फूल, चौपतिया कसीदा। स्त्री० १. कसीदे, चित्रकला आदि में, ऐसी बूटी जिसमें तार पत्तियाँ बनी हों। २. एक प्रकार का साग। ३. एक प्रकार की। घास जो गेहूँ की खेती को हानि पहुँचाती है।
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चौपथ  : पुं० [सं० चतुष्पथ] १. चौराहा। चौमुहानी। २. वह पत्थर जिसकी कील पर कुम्हार का चाक रहता है।
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चौपद ( ा)  : पुं० [सं० चतुष्पद] १. चार पैरोंवाला पशु। चौपाया। २. एक प्रकार का छंद। चतुष्पद।
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चौपया  : पुं०=चौपाया।
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चौपर  : स्त्री०=चौपड़।
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चौपरतना  : स०=चौपतना।
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चौपल  : पुं०=चौपथ।
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चौपहरा  : वि० [हिं० चौ=चार+पहर] [स्त्री० चौपहरी] १. चार पहर का। चार पहर-संबंधी। २. चार-चार पहरों के अन्तर पर होनेवाला। ३. चारों पहर अर्थात हर समय (दिन भर या रात भर) होता रहनेवाला। जैसे–चौपहरी नौबत बजना।
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चौपहल  : वि० [हिं० चौ+फा० पहलू, सं० फलक] जिसके या जिसमें चार पहल या पार्श्व हों। जिसमें लंबाई, चौडाई और मोटाई हो। वर्गात्मक।
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चौपहला  : पुं०=चौपाल(डोला)। वि०=चौपहल।
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चौपहलू  : वि०=चौपहल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चौपहिया  : वि० [हिं० चौ+पहिया] चार पहियोंवाला। जिसमें चार पहिये हों। जैसे–रेल-गाड़ी का चौपहिया डिब्बा। पुं० चार पहियोंवाली गाड़ी।
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चौपहिलू  : वि०=चौपहल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चौपा  : पुं०=चौपाया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चौपाई  : स्त्री० [सं० चतुष्पदी] चार चरणों का एक प्रसिद्ध मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में १६ मात्राएँ होती हैं। स्त्री० चारपाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चौपाया  : पुं० [सं० चतुष्पाद, चतुष्पदी, प्रा० चौप्पअ, चउपाइया, बँ० उ० चौपाया, सि० चौपाई, गु० चोपाई] ऐसा पशु जो चारों (दो अगले और दो पिछले) पैरों से चलता हो। जैसे–गाय, घोड़ा, हिरन, आदि। वि० जिसमें चार पाये या पावें हों।
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चौपार  : स्त्री०=चौपाल। उदाहरण–सब चौपारिन्ह चंदन खंभा।–जायसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चौपाल  : पुं० [हिं० चौबार] १. ऊपर से छाया हुआ और चारों ओर से खुलता स्थान जहाँ देहात के लोग बैठकर बात-चीत, विचार-विमर्श आदि करते हैं। २. छायादार बड़ा चबूतरा। ३. देहाती मकानों के आगे का दालान या बरामदा। ४. एक प्रकार की पालकी जो ऊपर से छायादार पर चारों ओर से खुली हुई होती है।
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चौपुरा  : पुं० [हिं० चौ=चार+पुर=चरस+आ(प्रत्यय)] वह बड़ा कूआँ जिस पर एक साथ चार पुर या मोट चलते अथवा चल सकते हों।
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चौपेजी  : वि० [हिं० चौ (चार)+अं० पेज] १. चार पृष्ठोंवाला। २. (पुस्तकों आदि की छपाई में कागज) जिसके पूरे ताव को दो बार मोड़कर चार सम पृष्ठों में विभक्त किया गया हो। (क्वार्टो)
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चौपैया  : पुं० [सं० चतुष्पदी] एक छंद जिसके प्रत्येक चरण में ३॰ मात्राएँ और अन्त में गुरु होता है।
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