शब्द का अर्थ
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					चिद					 :
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					पुं०=चित्।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					चिदाकाश					 :
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					पुं० [सं० चित्-आकाश, उपमि० स०] आकाश के समान निर्लिप्त और सब का आधार भूत ब्रह्म। परब्रह्म।				 | 
			
			
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					चिदात्मक					 :
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					वि० [सं० चित्-आत्मन्, ब० स० कप्] चेतना से युक्त।				 | 
			
			
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					चिदात्मा(त्मन्)					 :
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					पुं० [चित्-आत्मन्,ब० स०] १. चैतन्य स्वरूप परब्रह्म। २. चेतना शक्ति।				 | 
			
			
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					चिदानंद					 :
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					पुं० [सं० चित्-आनंद, कर्म० स०] चैतन्य और आनन्दमय पर ब्रह्म।				 | 
			
			
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					चिदाभास					 :
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					पुं० [सं० चित्-आभास, ष० त०] १. आत्मा के चैतन्य स्वरूप पर पड़नेवाला ब्रह्म का आभास या प्रतिबिंब। २. जीवात्मा।				 | 
			
			
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					चिदालोक					 :
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					पुं० [सं० चित्-आलोक, ष० त०] सदा बना रहनेवाला आत्मा का प्रकाश। शाश्वत प्रकाश।				 | 
			
			
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					चिद्घन					 :
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					वि० [सं० चित्√हन्+अप्, घन, आदेश०] जिसमें चेतना शक्ति हो। चेतना से युक्त। उदाहरण–श्री वृंदावन चिद्घन कंछु छवि बरनि न जाई।–नंददास। पुं० ब्रह्मा।				 | 
			
			
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					चिद्रूप					 :
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					वि० [सं० चित्-रूप, ब० स०] १. शुद्ध चैतन्य रूप, चिन्मय। २. परम ज्ञानी। ३. अच्छे स्वभाववाला। पुं० चैतन्य स्वरूप। परब्रह्म।				 | 
			
			
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					चिद्विलास					 :
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					पुं० [सं० चित्-विलास, ष० त०] १. चैतन्य स्वरूप ईश्वर की माया। २. शंकराचार्य के एक प्रसिद्ध शिष्य।				 | 
			
			
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