शब्द का अर्थ
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गुज :
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पुं० [देश०] बाँस आदि की वह पतली छोटी फाँक जो दो चीजों को जोड़ने के लिए उनमें जड़ी जाती है। बाँस की कील या मेख। (बढ़ई)। |
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गुजर :
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पुं० [फा०] १. किसी बिन्दु या स्थान से होते हुए आगे बढ़ने की क्रिया या भाव। २. काल-क्षेप या जीवन यापन की दृष्टि से होनेवाला निर्वाह। जैसे–सौ रुपए में गुजर करना पड़ता है। ३. आने-जाने निकलने आदि का द्वार या मार्ग। जैसे–इस कमरे में हवा का गुजर नहीं है। ४. पहुँच। पैठ। प्रवेश। जैसे–इतने बड़े दरबार में भला हमारा गुजर कैसे हो सकता है। पद–गुजर-बसर=(देखें)। |
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गुजर-बसर :
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पुं० [फा०] कालक्षेप या जीवन यापन की दृष्टि से होनेवाला निर्वाह। गुजारा। |
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गुजरगाह :
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स्त्री० [फा०] १. किसी के गुजरने अर्थात् आने-जाने का मार्ग या स्थान। २. नदी पार करने का घाट। ३. मार्ग। रास्ता। |
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गुजरना :
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अ० [फा० गुजर+ना (प्रत्यय)] १. किसी स्थान से होते हुए आगे बढ़ना। जैसे–यह सड़क बनारस से गुजरती है। २. एक स्थिति से होकर दूसरी स्थिति में पहुँचना। मुहावरा–(किसी का) गुजर जाना=मृत होना। मरना।जैसे–उनके चाचा आज गुजर गये। ३. कोई घटना या बात घटित होना। जैसे–वहाँ तुम पर क्या गुजरी। मुहावरा–किसी पर गुजरना=किसी पर विपत्ति या संकट पड़ना। ४. व्यतीत होना। बीतना। जैसे–इसी प्रकार कितने ही वर्ष गुजर गये। ५. निर्वाह होना। ६. दूर रहना। बाज आना। जैसे–हम तो ऐसे जीने से गुजरे। |
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गुजरनामा :
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पुं० [अ०+फा०] वह अधिकार पत्र जिसकी सहायता से कोई किसी मार्ग से होता हुआ आगे जा सकता है। राहदारी का परवाना। पार-पत्र। |
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गुजरबान :
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पुं० [फा०] १. नदी पार करनेवाला अर्थात् मल्लाह। माँझी। २. वह जो घाट की उतराई या कर उगाहता हो। |
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गुजरात :
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पुं० [सं० गुर्जर-राष्ट्र] [वि० गुजराती] भारतीय संघ के बम्बई राज्य का एक प्रदेश। |
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गुजराती :
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वि० [हि० गुजरात] ‘गुजरात’ प्रदेश में बनने, होने अथवा उससे संबंध रखनेवाला। जैसे–गुजराती खान-पान, पहनावा या माल। पुं० ‘गुजरात’ प्रदेश का निवासी। स्त्री० १. गुजरात की भाषा। २. देवनागिरी से मिलती हुई वह लिपि जिसमें उक्त भाषा लिखी जाती है। ३. छोटी इलायची। |
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गुजरान :
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स्त्री० [फा०] जीवन का निर्वाह और समय का बीतना (खाने पीने, रहने-सहने आदि के विचार से)। जैसे–हमारी भी किसी तरह गुजरान होती ही है। |
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गुज़रानना :
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स० [हिं० गुजर] १. किसी के सामने उपस्थिति या पेश करना। जैसे–अरजीया नजर गुजरानना। २. व्यतीत करना। बिताना। जैसे–दिन गुजरानना। |
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गुजरिया :
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स्त्री०=गूजरी। |
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गुजरी :
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स्त्री० [सं० गुर्जर, हिं० गूजर] १. कलाई पर पहनने की एक प्रकार की पहुँची। २. गूजरी नाम की रागिनी। ३. दे० गूजरी। स्त्री० [हिं० गुजरना] मध्य युग में, दोपहर के बाद सड़को के किनारे लगनेवाला छोटा बाजार। |
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गुजरेटा :
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पुं० [हिं० गूजर+एट=बेटा(प्रत्यय)] [स्त्री० गुजरेटी] १. गूजर का पुत्र या लड़का। २. गूजर जाति का पुरुष या व्यक्ति। गूजर। ग्वाला। |
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गुजश्ता :
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वि० [फा० गुजश्तः] बीते हुए काल से संबंध रखनेवाला। गत। भूत। |
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गुज़ार :
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वि० [फा०] गुजारने (अर्थात् करने, देने या सामने लाने) वाला (यौ० के अंत में)। जैसे–खिदमतगुजार, मालगुजार, शुक्रगुजार आदि। पुं० वह स्थान जहाँ से होकर लोग गुजरते या आगे बढ़ते हों। जैसे–घाट,रास्त आदि। |
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गुज़ारना :
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स० [फा० गुजर] १. किसी स्थान से होते हुए आगे बढ़ाना। २. (समय) काटना या बिताना। व्यतीत करना। ३. किसी बड़े के सामने उपस्थित,पेश या निवेदन करना। जैसे–अर्ज गुजारना। ४. पालन करना। जैसे–नामज गुजारना। ४. (कष्ट या विपत्ति) डालना। ढाना। उदाहरण–गजब गुजारत गरीबन की धार पै।–पद्माकर। |
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गुज़ारा :
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पुं० [फा० गुजारः] १. गुजरने या गुजारने की क्रिया या भाव। २. गुजर। निर्वाह। ३. जीवन-निर्वाह के लिए मिलनेवाली आर्थिक सहायता या वृत्ति। ४. वह स्थान जहाँ से लोग नाव पर चढ़कर पार जाते हों अथवा आकर उतरतें हों। ५. मार्ग में पड़नेवाला वह स्थान जहाँ कोई अधिकार-पत्र दिखाना या कर देना पड़ता हो। |
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गुज़ारिश :
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स्त्री० [फा०] निवेदन। प्रार्थना। |
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गुज़ारिशनामा :
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स्त्री० [फा०] निवेदन पत्र। प्रार्थना-पत्र। |
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गुजारी :
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स्त्री० [?] गले में पहनने का एक प्रकार का हार। |
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गुज़ारेदार :
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पुं० [फा०] वह व्यक्ति जिसे जीवन निर्वाह के लिए गुजारा या वृत्ति मिलती हो। |
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गुजी :
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स्त्री० [?] नथनों में जमा हुआ सूखा मल। नकटी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गुजुआ :
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पुं० [देश] [स्त्री० गूजी, गुजुई] गोबरैला नाम का कीड़ा। |
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गुज्जर :
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पुं० दे० ‘गूजर’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गुज्जरवै :
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पुं० [सं० गुर्ज (पति)] गुजरात का राजा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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गुज्जरी :
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स्त्री० दे० ‘गूजरी’। |
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गुज्झ :
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वि० =गुह्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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गुज्झना :
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अ० [हिं० गुज्झ] छिपना। |
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गुज्झा :
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पुं० [सं० गुह्यक] १. रेशेदार गूदा। २. रेशों का गुच्छा। ३. बाँस की कील या मेख। गोझा। ४. एक प्रकार की कँटीली घास। वि० [सं० गुह्य] छिपा हुआ। गुप्त। |
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