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गाय  : स्त्री० [सं० गो० प्रा० पा० गाबी,बँ० उ० ने० गाइ, पं० गाँ, गु० मरा० गाय] सीगोंवाला एक प्रसिद्ध मादा चौपाया जिसका दूध अत्यन्त पुष्टिकारक और स्वादिष्ट होता है और पीने तथा दही, पनीर मख्खन आदि बनाने के काम आता है। साँड़ की मादा। मुहावरा–गाय का बछिया तले और बछिया का गाय तले करना=इधर का उधर और उधर का इधर करना। हेरा-फेरा करना। २. बहुत सीधा सादा और निरीह व्यक्ति। ३. संत साहित्य में, (क) आत्मा। (ख) वाणी। (ग) माया।
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गाय-बगला  : पुं० [हिं०] एक प्रकार का बगला (पक्षी) जो प्रायः पशुओं के झुंड़ों के आस पास मँडराता रहता और उनके शरीर पर के कीड़े खाता है। सुरखिया बगला।
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गायक  : पुं० [सं० गै (गाना)+ण्वुल्-अक] [स्त्री० गायिका] १. वह व्यक्ति जो गीत गाता हो। २. वह जो गीत गाकर अपनी जीविका का निर्वाह करता हो। ३. प्रशंसा या स्तुति करनेवाला व्यक्ति।
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गायकवाड़  : पुं० [मरा०] बड़ौदा के उन महाराजाओं की उपाधि जो मराठों के उत्तराधिकारी थे।
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गायकी  : स्त्री० [सं० गान] १. गान विद्या। २. गान विद्या के अनुसार ठीक प्रकार से गाने की क्रिया या भाव। ३. गान विद्या का पूरा ज्ञान और उसके अनुसार होनेवाला गाना।
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गायगोठ  : स्त्री० [हिं० गाय+गोठ] वह स्थान जहाँ गौएँ बाँधी या रखी जाती हैं। गोशाला।
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गायण  : पुं०=गायन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गायत  : वि० [अ०] १. बहुत अधिक। २. हद दरजे का। स्त्री० १. किसी वस्तु की अधिकता। २. गरज। मतलब।
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गायताल  : पुं० [हिं० गाय+ताल] निकृष्ट या निकम्मा चौपाया। वि० निकम्मा और निकृष्ट। रद्दी।
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गायताल खाता  : पुं० [हिं०] खाते या बही का वह अंश जिसमें ऐसी रकमें लिखी जाती हैं जिनके वसूल होने की बहुत ही कम आशा होती है।
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गायत्र  : पुं० [सं० गायत्√त्रै (रक्षा करना)+क] [स्त्री० गायत्री] गायत्री छंद।
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गायत्री  : पुं० [सं० गायत्र+ङीष्] १. एक प्रकार का वैदिक छंद। २. उक्त छंद में रचित एक प्रसिद्ध मंत्र जो भारतीय आर्यों में परम पवित्र माना जाता है। सावित्री। ३. दुर्गा। ४. गंगा। ५. छः अक्षरों की एक प्रकार की वर्णिक वृत्ति जिसके कई भेद है। ६. खैर का पेड़।
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गायन  : पुं० [सं०√गै+ल्युट्-अन] १. गाने की क्रिया या भाव। २. गाई जाने वाली छन्दात्मक रचना। गीत। गान। ३. गवैया। गायक। ४. कार्तिकेय।
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गायब  : वि० [अ०] जो सहसा अन्तर्धान हो गया अथवा परोक्ष में चला गया हो। जो आँखों से ओझल हो गया हो। लुप्त। मुहावरा–(कोई चीज) गायब करना=चालाकी या चोरी से कोई चीज उठा या हटा लेना। पद–गायब गुल्ला=जो इस प्रकार अदृश्य या लुप्त हो गया हो कि जल्दी उसका पता न चले। पुं० चौसर, शतरंज आदि खेलने का वह विशिष्ट कौतुकपूर्ण प्रकार जिसमें कोई कुशल खेलाड़ी स्वंय तो आड़ में छिपा बैठा रहता है और दूसरे खेलाड़ी की चाल का रूप या विवरण सुन कर ही उस चाल के उत्तर में अपने पक्ष की चाल चलने का आदेश देता है। विसात मोहरे आदि से अलग और दूर रहकर तथा उन्हें बिना देखें खेलने का ढंग या प्रकार। मुहावरा–गायब खेलना= उक्त प्रकार से आड़ में बैठकर चौसर शतरंज या ऐसा ही कोई खेल (बिना उसके उपकरण देखे) खेलना।
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गायब-बाज  : पुं० [अ०+फा०] [भाव० गायब-बाजी] वह खेलाड़ी जो गायब (चौसर शतरंज आदि) खेलता हो।
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गायबाना  : क्रि० वि० [अ० गायबानः] १. गुप्त रीति से। छिपे छिपे। २. किसी की चोरी से या पीठ पीछे।
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गायरौन  : पुं०=गोरोचन।
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गायित्री  : स्त्री०=गायत्री।
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गायिनी  : वि० स्त्री० [सं०√गै+णिनि-ङीष्] १. गानेवाली स्त्री। २. वह स्त्री जो गाकर अपनी जीविका का निर्वाह करती हो। ३. एक प्रकार का मात्रिक छंद।
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