शब्द का अर्थ
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					गरु					 :
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					वि० [सं० गुरु] १. भारी। वजनदार। २. गौरवशाली। ३. जिसका स्वभाव गंभीर या शान्त हो। धीर।				 | 
			
			
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					गरुअत्त					 :
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					वि० [सं० गुरु] बड़ा। महान्।				 | 
			
			
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					गरुआ					 :
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					वि० [सं० गुरु] [स्त्री० गरुई] १. भारी। वजनी। २. अभिमानी। घमंडी। पुं०-गडुआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					गरुआई					 :
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					स्त्री० [हिं० गरुआ] गुरुता। भारीपन।				 | 
			
			
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					गरुआना					 :
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					अ० [सं० गुरु] भारी या वजनदार होना। स० भारी करना या बनाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					गरुड़					 :
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					पुं० [सं० गरुत्√डी (उड़ना)+ड, पृषो० तलोप] १. गिद्ध की जाति का एक प्रकार का बहुत बड़ा पक्षी जो पुराणों में विष्णु का वाहन कहा गया है। २. सफेद रंग का एक प्रकार का जल-पक्षी जिसे पड़वा ढेक भी कहते हैं। ३. प्राचीन भारत की एक प्रकार की सैनिक व्यूह-रचना। ४. गरुड़ पक्षी के आकार का एक प्रकार का प्रासाद। ५. पुराणानुसार चौदहवें कल्प का नाम। ६. श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम। ७. छप्यय छंद का एक प्रकार या भेद। ८. नृत्य में, एक प्रकार की मुद्रा।				 | 
			
			
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					गरुड़-घंटा					 :
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					पुं० [ष० त०] ठाकुर जी की पूजा में बजाया जानेवाला वह घंटा जिसके ऊपर गरुड़ की आकृति बनी होती थी।				 | 
			
			
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					गरुड़-ध्वज					 :
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					पुं० [ब० स०] १. विष्णु। २. प्राचीनकाल के बने हुए ऐसे स्तंभ जिनपर गरुड़ की आकृति होती थी।				 | 
			
			
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					गरुड़-पक्ष					 :
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					पुं० [ष० त०] नृत्य में दोनों हाथ कमर पर रखने की एक मुद्रा।				 | 
			
			
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					गरुड़-पाश					 :
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					पुं० [मध्य० स०] पुरानी चाल का एक प्रकार का वह फंदा जो शत्रु को फँसाने के लिए उसके ऊपर फेंका जाता था।				 | 
			
			
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					गरुड़-पुराण					 :
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					पुं० [मध्य० स०] अठारह पुराणों में से एक जिसमें यमपुर तथा अनेक प्रकार के नरकों का वर्णन है। प्रेत-कर्म का विधान भी इसी में है। विशेष–हिन्दुओं में किसी के मर जाने पर दस दिन तक इसकी कथा सुनने का माहात्म्य है।				 | 
			
			
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					गरुड़-प्लुत					 :
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					पुं० [ष० त० ] नृत्य में एक प्रकार की मुद्रा।				 | 
			
			
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					गरुड़-भक्त					 :
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					पुं० [ष० त० ] प्राचीन भारत का एक संप्रदाय जो गरुड़ की उपसाना करता था।				 | 
			
			
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					गरुड़-यान					 :
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					पुं० [ब० स०] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण।				 | 
			
			
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					गरुड़-रुत					 :
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					पुं० [ष० त० ] एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः नगण, जगण, भगण, जगण, तगण तता अंत में एक गुरु होता है।				 | 
			
			
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					गरुड़-व्यूह					 :
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					पुं० [उपमि० स०] प्राचीन भारत में सैनिक व्यूह रचना का एक प्रकार जिसमें सेना का मध्य भाग अपेक्षया अधिक विस्तृत रखा जाता था।				 | 
			
			
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					गरुड़-सिंह					 :
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					पुं० [उपमि० स०] प्राचीन भारतीय वास्तु में, वह कल्पित सिंह जिसका अगला भाग गरुड़ के समान तथा पिछला भाग सिंह के सामन होता था।				 | 
			
			
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					गरुड़गामी (मिन्)					 :
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					पुं० [सं० गरुड़√गम् (जाना)+णिनि] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण।				 | 
			
			
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					गरुड़ांक					 :
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					पुं० [गरुड़-अंक,ब० स०] विष्णु।				 | 
			
			
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					गरुड़ांकित					 :
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					पुं० [गरुड़-अंकित,उपमि० स० ] दे० ‘गरुड़ाश्मा’।				 | 
			
			
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					गरुड़ाग्रज					 :
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					पुं० [गरुड़-अग्रज,ष० त०] अरुण, जो गरुड़ का बड़ा भाई कहा गया है।				 | 
			
			
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					गरुड़ाश्या(श्मन्)					 :
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					पुं० [गरुड़-अश्मन्,उपमि० स०] पन्ना नामक रत्न।				 | 
			
			
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					गरुता					 :
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					स्त्री०=गुरुता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					गरुत्					 :
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					पुं० [सं०√गृ(शब्द)+डति] पंख। पर।				 | 
			
			
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					गरुत्मान्(मत्)					 :
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					पुं० [सं० गरुत्+मतुप्] १. गरुड़। २. पक्षी। ३. अग्नि।				 | 
			
			
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					गरुल					 :
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					पुं० [सं० गरुड़] गरुड़। उदाहरण–कंत गरुल होतहिं निरदयी।–जायसी।				 | 
			
			
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					गरुवाई					 :
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					स्त्री०=गुरुता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					गरुहर					 :
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					वि०=गुरु (भारी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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