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कालि  : क्रि० वि० [सं० कल्य०] १. आज से पहले वाले दिन। २. आज के बाद आनेवाला दिन। कल (देखें)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कालि-काला  : क्रि० वि० [हिं० कालि+काल] कदाचित्। कभी। किसी समय।
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कालिक  : वि० [सं० काल+ठञ्-इक०] १. किसी विशिष्ट काल से संबंध रखनेवाला। जैसे—पूर्वकालिक, मध्यकालिक। २. उचित, उपयुक्त या नियत समय पर होने वाला। ३. रह-रहकर कुछ निश्चित समय पर होनेवाला। (पीरिआँडिक) पुं० १. नाक्षत्र मास। २. काला चंदन। ३. कौंच पक्षी। ४. कलेजा (डिं०) ५. ऐसी पत्रिका या समाचार-पत्र जिसका प्रकाशन नियमित रूप से होता है। तथा जिसमें प्रतिदिन के अथवा उस काल से संबंधित समाचार या सूचनाएँ रहती हो । (पीरिआडिकल जरनल)
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कालिका  : स्त्री० [सं० काल+ठन्-इक, टाप्] १. कालापन। २. कालारंग। ३. स्याही, विशेषतः काली स्याही। ४. कालिमा। ५. बादलों की घटा। मेघ-माला। ६. काली मिट्टी। ७. काले रंग की हर्रे। ८. जटामासी। ९. शरीर पर के रोओं की पंक्ति। रोमावली। १॰. आँख की पुतली। ११. आँख में का काला तिल। १२. दुर्गा की एक मूर्ति जो रण-क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी मानी गई है। १३. चार वर्ष की वह बालिका, जिसका किसी उत्सव पर उक्त देवी के रूप में पूजा की जाती हो। १४. दक्ष की कन्या का नाम। १५. मादा बिच्छू। १६. बिच्छुआ नामक घास। १७. कौए की मादा। १८. काकोली। १९. श्यामा नामक पक्षी। २॰. कान की एक विशेष नस। २१. मादा श्रृंगाल। सियारिन। गीदड़ी।
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कालिका-पुराण  : पुं० [मध्य० स०] हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध उपपुराण जिसमें कालिका देवी के माहात्म्य का वर्णन है।
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कालिका-वृद्धि  : स्त्री० [ष० त०] वह ब्याज जो नियमित रूप से तथा निश्चित काल बीतने पर दिया या लिया जाय।
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कालिकेय  : पुं० [सं० कालिका+ढक्-एय] दक्ष की कन्या। कालिका से उत्पन्न असुरों की एक जाति।
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कालिख  : स्त्री० [सं० कालिका] १. किसी चीज पर जमनेवाला धुएँ का अथवा और किसी प्रकार का काला मैल। २. लाक्षणिक रूप में ऐसी बात या वस्तु, जिससे किसी पर बहुत ही लज्जाजनक रूप में कलंक या धब्बा लगता हो। जैसे—किसी के मुंह पर कालिख लगना।
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कालिंग  : वि० [सं० कलिंग-अण्] १. कलिंग देश में उत्पन्न होनेवाला। २. कलिंग संबंधी। पुं० १. कलिंग देश का निवासी। २. कलिंग देश का राजा। ३. हाथी। ४. साँप। ५. तरबूज।
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कालिंगड़ा  : पुं० [सं० कलिंग०] संपूर्ण जाति का एक राग, जिसके गाने का समय रात का अंतिम पहर माना गया है। कलिंगड़ा।
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कालिज  : पुं० [अं०]=कालेज। पुं० [?] एक प्रकार का चकोर।
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कालिंजर  : पुं० [सं० कालंजर] बाँदा जिले के पास का एक प्रदेश और उससे संलग्न एक पर्वत-श्रेणी।
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कालिंद  : वि० [सं० कलिंद या कालिंदी+अण्] कलिंद या कालिंदीसंबंधी। पुं० [कालि=जलराशि√या (देना)+क, पृषो० मुम्०] तरबूज।
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कालिंदक  : पुं० [सं० कालसिंद+कन्] तरबूज।
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कालिंदी  : पुं० [सं० कलिंद+अण्-ङीष्०] १. यमुना नदी जो कलिंद पर्वत से निकली है। २. लाल निसोथ। ३. उड़ीसा का एक वैष्णव सम्प्रदाय। ४. संगीत में ओड़व जाति की एक रागिनी।
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कालिंद्री  : स्त्री०=कालिंदी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कालिब  : पुं० [अ०] १. किसी वस्तु का ढाँचा। २. टीन या लकड़ी का वह गोल ढाँचा जिस पर चढ़ाकर टोपियाँ दुरूस्त की जाती हैं। ३. देह। शरीर। ४. दे० ‘कलबूत’।
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कालिमा (मन्)  : स्त्री० [सं० काल+इमानिच्] १. काले होने की अवस्था, गुण या भाव। कालापन। २. अंधकार। अँधेरा। ३. कालिख। ४. कलंक। लांछन।
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कालिय  : पुं० [सं० क-आ√ली (छिपना)+क] एक बहुत बड़ा और भीषण साँप जो यमुना में रहता था और जिसका दमन कृष्ण ने किया था।
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