शब्द का अर्थ
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					आसव					 :
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					पुं० [सं० आ√सु+अण्] १. फलों आदि के खमीर से बनाया हुआ एक प्रकार का मद्य जो भभके से बिना चुआये ही बनता है। (वाइन) २. वैद्यक में कुछ विशिष्ट प्रकार से बनाया हुआ वह मद्य जिसका प्रयोग पौष्टिक पेय के रूप में होता है। जैसे—द्राक्षासव। ३. कोई मधुर और मादक पदार्थ जो किसी रूप में पान किया जाता हो। जैसे—अधरासव। ४. कोई उत्तेजक या बलवर्धक चीज या बात। ५. वह पात्र जिसमें मद्य पीते हैं।				 | 
			
			
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					आसवक					 :
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					पुं० [सं० आ√सु+ण्वुल्-अक] वह जो भभके आदि से अरक, शराब आदि चुआता हो। आसव बनानेवाला। (डिस्टिलर)				 | 
			
			
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					आसवन					 :
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					पुं० [सं० आ√सु+ल्युट्-अन] [कर्त्ता, आसवक, भू० कृ० आसवित, आसुत] १. किसी तरल पदार्थ को गरमाकर उसे वाष्प के रूप में लाना और फिर उस वाष्प को ठंढा करके तरल रूप देना। २. भभके आदि की सहायता से अरक, शराब आदि का चुआना या टपकाना। (डिस्टिलेशन)				 | 
			
			
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					आसवनी					 :
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					स्त्री० [सं० आसवन से] १. वह स्थान जहाँ आसवन का काम होता हो। २. वे यंत्र आदि जिनकी सहायता से आसवन किया जाता है। (डिस्टिलरी)				 | 
			
			
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					आसवित					 :
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					भू० कृ० [सं० आसवन] जिसका आसवन किया गया हो। आसव के रूप में तैयार किया हुआ। (डिस्टिल्ड) जैसे—आसवित जल।				 | 
			
			
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					आसवी (दिन्)					 :
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					पुं० [सं० आसव+इनि] वह जो शराब पीता हो। वि० आसन-संबंधी।				 | 
			
			
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