शब्द का अर्थ
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					अहर					 :
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					पुं० [देश०] मिट्टी का वह बरतन जिसमें छीपी रंग रखते हैं। पुं०=अधर। उदाहरण-अहर, पयोहर, दुइ नयण, मीठा जेहा मख्ख।-ढो० मा० दू०।				 | 
			
			
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					अहरन					 :
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					स्त्री० [सं० आ+धरण-रखना] लोहारों सोनारों आदि की निहाई।				 | 
			
			
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					अहरना					 :
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					स० [सं० आहरणम्-निकालना] लकड़ी को छीलकर साफ या सुडौल करना।				 | 
			
			
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					अहरह (स्)					 :
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					क्रि० वि० [सं० अहन् शब्द को वीप्सा में द्वित्व] १. प्रतिदिन। २. नित्य। सदा। ३. लगातार। निरंतर।				 | 
			
			
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					अहरा					 :
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					पुं० [सं० आहरण-इकट्ठा करना] १. कोई चीज पकाने के लिए बनाया हुआ कंडों का ढेर। २. कंडे जलाकर तैयार की हुई आग। ३. मनुष्यों के ठहरने का स्थान। ४. दे० ‘आहर’।				 | 
			
			
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					अहरात					 :
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					पुं० =अहोरात्र (दिन-रात)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					अहरिमन					 :
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					पुं० [पह०] पारसी धर्म में पाप और अंधकार का अधिष्ठाता देवता। शैतान।				 | 
			
			
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					अहरी					 :
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					स्त्री० [सं० आहरण-इकट्ठाकरना] १. वह स्थान जहाँ लोगों को पानी पिलाने का प्रबंध रहता है। पौसरा। प्याऊ। २. जानवरो के पानी पीने के लिए कुएँ के पास बनाया जानेवाल हौज। ३. पानी से भरा हुआ हौज।				 | 
			
			
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					अहर्गण					 :
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					पुं० [सं० अहन्-गण, ष० त०] १. दिनों का समूह। २. सृष्टि के आरंभ से इष्ट अर्थात् किसी विशिष्ट दिन के बीच का समय।				 | 
			
			
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					अहर्दल					 :
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					पुं० [सं० अहन्-दल, ष० त०] मध्याह्र। दोपहर।				 | 
			
			
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					अहर्निश					 :
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					क्रि० वि० [सं० अहन्-निश,द्व०स०] १. रात-दिन। २. नित्य। सदा। ३. निरंतर। लगातार।				 | 
			
			
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					अहर्पति					 :
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					पुं० [सं० अहन्-पति, ष० त०] सूर्य।				 | 
			
			
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					अहर्मणि					 :
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					पुं० [सं० अहन्-मणि, स० त०] सूर्य।				 | 
			
			
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					अहर्मुख					 :
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					पुं० [सं० अहन्-मुख, ष० त०] उषःकाल। सबेरा। दिन का आरंभिक भाग। तड़का।				 | 
			
			
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					अहर्य					 :
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					वि० [सं०√अर्ह्+ण्यत्]=अर्हणीय।				 | 
			
			
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