शब्द का अर्थ
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अविक :
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पुं० [सं० अवि+कन्] १. भेड़। २. हीरा (रत्न)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अविकच :
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वि० [सं० न० त०] जो खिला न हो, फलतः बन्द (फल)। |
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अविकचित :
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वि० [सं० न० त०] =अविकच। |
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अविकट :
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पुं० [अवि+कट्च्] भेड़ों का झुंड। |
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अविकत्थ :
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वि० [सं० वि√कत्थ् (श्लाघा)+अच्, न० त०] जो अपने संबंध में बढ़ा-चढ़ाकर बातें न करता हो। श्लाघाशून्य। |
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अविकल :
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वि० [सं० न० त०] १. जो विकल न हो अर्थात् शांत। २. ज्यों का त्यों। जैसे—अविकल अनुवाद। ३. पूरा। संपूर्ण। ४. क्रमित। व्यवस्थित। ५. निश्चित। |
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अविकल्प :
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वि० [सं० न० ब०] १. जिसमें या जिसका कोई विकल्प न हो। २. सदा निश्चित रूप से एक-सा रहनेवाला। ३. संदेह-रहित। असंदिग्ध। |
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अविका :
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स्त्री० [सं० अवि+क-टाप्] भेड़। |
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अविकार :
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वि० [सं० न० ब०] १. जिसमें विकार न हो। विकाररहित। २. जिसके आकार या रूप में परिवर्तन न होता हो। पुं० [सं० न० त०] विकार का अभाव। परिवर्त्तन न होना। |
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अविकारी (रिन्) :
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वि० [सं० न० त०] १. जिसमें विकार न हुआ हो या न हो सकता हो। विकारशून्य। २. जिसमें कोई विकार या परिवर्त्तन न हुआ हो। जो विकृत न हुआ हो। पुं० व्याकरण में अव्यय शब्द जिसके रूप में कभी विकार नहीं होता। जैसे—अतः,परंतु, प्रायः बहुधा आदि। |
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अविकार्य :
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वि० [सं० न० त०] १. जिसमें विकार उत्पन्न न किया गया जा सके या न होता हो। २. नित्य। |
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अविकाशी (शिन्) :
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वि० [सं० न० त०] १. जो विकाशी न हो। २. जिसका या जिसमें विकास न हो। ३. जिसमें चमक न हो। ४. जो खिला, फूला या बढ़ा न हो। |
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अविकृत :
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वि० [सं० न० त०] जो विकृत अर्थात् बिगड़ा हुआ न हो, फलतः ज्यों का त्यों। |
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अविकृति :
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स्त्री० [सं० न० त०] विकृत होने की अवस्था या भाव। अविकार। |
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अविक्रम :
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वि० [सं० न० ब०] जो विक्रमशाली अर्थात् वीर न हो, फलतः अशक्त या कमजोर। पुं० [न० त०] १. कमजोरी। दुर्बलता। २. कायरता। |
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अविक्रय :
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पुं० [सं० न० त०] विक्रय अर्थात् बिक्री न होना। (नान-सेल) |
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अविक्रांत :
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वि० [सं० न० त०] १. जो विक्रांत न हो। २. अतुलनीय। अनुपम। ३. कमजोर। दुर्बल। |
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अविक्रिय :
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वि० [सं० न० ब०] जिसमें किसी प्रकार का विकार न हुआ हो अथवा विकार उत्पन्न न किया जा सकता हो। |
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अविक्रेय :
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वि० [सं० न० त०] १. जो विक्रेय (बेचे जाने के योग्य) न हो। २. जो बेचा न जा सके। (अन-सेलेबुल्) |
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अविक्षत :
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वि० [सं० न० त०] जो विक्षत (टूटा-फूटा) न हो, फलतः पूरा या समूचा। २. जिसकी कोई क्षति या हानि न हुई हो। ३. जिसे आघात या चोट न लगी हो। |
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अविक्षिप्त :
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वि० [सं० न० त०] १. जो क्षिप्त (फेंका हुआ) न हो। २. जो विक्षित (पागल या घबराया हुआ) न हो, फलतः धीर, शांत या समझदार। |
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