शब्द का अर्थ
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					अवश					 :
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					वि० [सं० न० ब०] १. जो अधिकार या वश में न हो। २. जो अपने वश में न होकर किसी दूसरे के वश में हो। पुं० [न० त०] वश में न होने अथवा वश न चलने की अवस्था या भाव।				 | 
			
			
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					अवशता					 :
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					स्त्री० [सं० अवश+तस्-टाप्] अवश होने की अवस्था या भाव। बेबसी। लाचारी।				 | 
			
			
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					अवशप्त					 :
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					वि० [सं० अव√शप् (शापदेना)+क्त] =अभिशप्त।				 | 
			
			
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					अवशिष्ट					 :
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					वि० [सं० अव√शिष् (बचना)+क्त] (कार्य, धन पावना आदि) जो अभी बाकी या शेष बचा हो।				 | 
			
			
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					अवशीर्ण					 :
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					वि० [सं० अव√शृ (हिंसा)+क्त] १. कटा या टूटा हुआ। छिन्न-भिन्न। २. छितराया हुआ।				 | 
			
			
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					अवशीर्ष					 :
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					वि० [सं० ब० स०] १. जिसका सिर नीचे की ओर झुक गया हो। २. जिसका ऊपरी भाग नीचे हो गया हो। औंधा। ३. नत-मस्तक। पुं० एक प्रकार का नेत्र रोग।				 | 
			
			
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					अवशेष					 :
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					पुं० [सं० अव√शिष्+घञ्] १. वह जो कुछ उपभोग, नाश, विश्लेषण व्यय आदि के उपरांत बचा हो। २. वह धन या संपत्ति जो किसी के मरने के उपरांत बची हो। ३. अंत। समाप्ति।				 | 
			
			
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					अवशेषित					 :
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					भू० कृ० [सं० अवशिष्ट] १. जिसका अवशेष या अंत किया गया हो। २. अवशिष्ट।				 | 
			
			
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					अवशोषण					 :
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					पुं० [सं० अव√शुष् (सोखना)+णिच्+ल्युट्-अन] [वि० अवशोषक, अवशोषी] किसी पदार्थ विशेषतः तरल पदार्थ को खींचकर इस प्रकार अपने आप में मिला लेना कि जल्दी उसका पता न चले। सोखना (एब्जार्पशन)।				 | 
			
			
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					अवश्य					 :
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					अव्य० [सं० अवश्यम्] १. निश्चित रूप से। २. बिना कोई अंतर हुए। वि० [सं० न० त०] [स्त्री० अवश्या] १. जिस पर कोई वश न हो। २. जो वश में न किया जा सके।				 | 
			
			
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					अवश्यंभावी (विन्)					 :
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					वि० [सं० अवश्यम्√भू (होना)+णिनि] जिसका घटित होना बिलकुल निश्चित हो। जो अवश्य होने को हो। (इनेक्टेबुल)				 | 
			
			
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					अवश्या					 :
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					स्त्री० [सं० अव√श्यै (गति)+क-टाप्, या, न-वश्या, न० त०] १. मन-माना आचरण करने वाली स्त्री। स्वैरिणी। २. कुटला या दुश्चरित्रा स्त्री। ३. कोहरा। पाला।				 | 
			
			
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					अवश्याय					 :
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					पुं० [सं० अव√श्यै+ण] १. तुषार। पाला। २. ओस। ३. वर्षा की झींसी या फुहार। ४. हिम-कण। ५. अभिमान।				 | 
			
			
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