शब्द का अर्थ
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					अपार					 :
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					वि० [सं० न० ब०] १. जिसका पार न हो। सीमा-रहित। अनंत। २. बहुत अधिक। ३. उग्र। तीव्र। प्रचंड। पुं० १. समुद्र। सागर। २. नदी का सामनेवाला किनारा। ३. असहमति। ४. सांख्य के अनुसार वह तुष्टि जो अपमान, परिश्रम आदि से बचने पर होती है।				 | 
			
			
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					अपारग					 :
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					वि० [सं० न० त०] १. जो पार जानेवाला न हो। २. अयोग्य। ३. असमर्थ।				 | 
			
			
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					अपारदर्शक					 :
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					वि०=अपार-दर्शी।				 | 
			
			
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					अपारदर्शिता					 :
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					स्त्री० [सं० अपरदर्शिन्+तल्-टाप्] अपारदर्शी होने की अवस्था, गुण या भाव। (ओपैसिटी)				 | 
			
			
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					अपारदर्शी (र्शिन्)					 :
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					वि० [सं० न० त०] जो पारदर्शी न हो। जिसके उस पार की चीज दिखाई न दे। (ओपेक)				 | 
			
			
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					अपारा					 :
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					स्त्री० [सं० न० ब० टाप्] धरती या पृथ्वी, जिसका कहीं पार नहीं है।				 | 
			
			
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					अपार्थ					 :
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					वि० [सं० अप-अर्थ, ब० स०] १. अर्थ से रहित या हीन, फलतः निरर्थक। व्यर्थ। २. अनुचित, अशुद्ध या दूषित अर्थवाला। ३. जिसका कोई उद्देश्य फल या प्रभाव न हो। निष्फल। ४. विनष्ट। पुं० साहित्य में, पद या वाक्य का अर्थ स्पष्ट न होने का दोष।				 | 
			
			
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					अपार्थक					 :
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					पुं० [सं० अपार्थ+कन्] न्याय में एक निग्रह स्थान जो ऐसे वाक्यों के प्रयोग से होता है जिनमें पूर्वापर का विचार या संबंध न हो। वि० =अपार्थ।				 | 
			
			
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