शब्द का अर्थ
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					अनुच					 :
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					वि० =अनुच्च।				 | 
			
			
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					अनुचर					 :
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					वि० [सं० अनु√चर् (गति आदि)+ट] [स्त्री० अनुचरी, भाव० अनुचरण] १. किसी के पीछे चलनेवाला। २. सेवा करने वाला। पुं० सहचर। साथी।				 | 
			
			
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					अनुचार					 :
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					पुं० [सं० अनु√चर्+घञ्] १. किसी के अधीन रहकर उसके पीछे-पीछे चलना। २. किसी आदरणीय, पूज्य या सेव्य का अनुचर बनकर और उसके प्रति निष्ठा रखते हुए किया जानेवाला अनुकूल आचरण या व्यवहार। (एलीजिएन्स)।				 | 
			
			
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					अनुचारक					 :
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					वि० [सं० अनु√चर्+ण्युल्-अक]=अनुचर।				 | 
			
			
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					अनुचारी (रिन्)					 :
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					पुं० [सं० अनु√चर्+णिनि] १. वह जो किसी का अनुचर हो। २. सेवक। दास।				 | 
			
			
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					अनुचित					 :
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					वि० [सं० न-उचित, न० त०] [भाव० अनौचित्य] १. जो उचित न हो। ना-मुनसिब। २. बुरा। खराब। ३. जो ठीक या वाजिब न हो। औचित्य की सीमा के बाहर। गैर-वाजिब। (अन्ड्यू)				 | 
			
			
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					अनुचिंतन					 :
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					पुं० [सं० अनु√चिन्त्(स्मरण)+ल्युट्-अन] १. सोच-विचार। २. बीती या भूली हुई बात फिर से स्मरण करना। ३. चिंता।				 | 
			
			
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					अनुचिंता					 :
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					स्त्री० [सं० अनु√चिन्त्+अ-टाप्]=अनुचिंतन।				 | 
			
			
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					अनुच्च					 :
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					वि० [सं० न-उच्च, न० त०] जो उच्च या ऊँचा न हो। फलतः नीचा। उच्च का विपर्याय।				 | 
			
			
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					अनुच्चरित					 :
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					वि० [सं० न-उच्चारित, न० त०] १. जिसका उच्चारण न हुआ हो। २. (व्यंजन या स्वर) जिसका उच्चारण बोलने में न होता हो। (साइलेण्ट) ३. न बोलने या उत्तर न देनेवाला।				 | 
			
			
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					अनुच्छिति					 :
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					स्त्री० [सं० न-उच्छित्ति, न० त०]=अनुच्छेद।				 | 
			
			
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					अनुच्छिष्ट					 :
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					वि० [सं० न-उच्छिष्ट,न० त०] १. जो उच्छिष्ट या जूठा न हो। २. जो अभी तक और किसी के उपयोग, प्रयोग या व्यवहार में न आया हो, फलतः बिलकुल नया।				 | 
			
			
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					अनुच्छेद					 :
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					पुं० [सं० न-उच्छेद, न० त०] १. कट जानेपर भी अलग या नष्ट न होना। २. किसी साहित्यिक रचना, पुस्तक आदि के किसी प्रकरण के अन्तर्गत वह विशिष्ट विभाग जिसमें किसी एक विषय या उसके किसी अंग की मीमांसा या विवेचना होती है। (पैराग्राफ)				 | 
			
			
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