शब्द का अर्थ
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					अनाह					 :
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					पुं० [सं०√नह् (बंधन)+घञ्, न० त०] पेट फूलने का रोग। अफरा। वि० =अनाथ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					अनाहक					 :
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					क्रि० वि० [फा०ना+अ,हक] व्यर्थ। बेफायदा। उदाहरण— चौरासी लख जीव जोनि मैं भटकत फिरत अनाहक।—सूर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					अनाहत					 :
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					वि० [सं० न-आहत, न० त०] १. जो आहत न हो। २. जिसपर आघात न हुआ हो। ३. जिसकी उत्पत्ति आघात से न हुई हो। ४. (गणित में) जिसका गुणन न हुआ हो। पुं० १. हाथों के अँगूठों से दोनों कान बंद करने पर सुनाई पड़नेवाला एक प्रकार का शब्द। अनहद नाद। २. हठयोग में शरीर के अंदर ह्रदय के पास का वह चक्र या स्थान जहाँ से उक्त शब्द निकलता है। (हार्ट प्लेक्सस) ३. नया कपड़ा जो अभी पहना न गया हो।				 | 
			
			
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					अनाहतनाद					 :
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					पुं० [कर्म० स०] वह ध्वनि या शब्द जो योगियों को अपने अंदर सुनाई पड़ता है। ( दे०‘अनाहत’ २. )				 | 
			
			
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					अनाहतशब्द					 :
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					पुं० [कर्म० स०]=अनाहत नाद।				 | 
			
			
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					अनाहदवाणी					 :
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					स्त्री० [सं० अनाहत-वाणी] आकाश-वाणी। देव-वाणी।				 | 
			
			
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					अनाहार					 :
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					पुं० [सं० न-आहार, न० त०] [वि० अनाहारी] आहार या भोजन का अभाव या त्याग। वि० [न० ब०] जिसने कुछ खाया न हो। निराहार।				 | 
			
			
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					अनाहार-मार्गणा					 :
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					स्त्री० [ष० त०] जैनों का एक प्रकार का व्रत।				 | 
			
			
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					अनाहार्य					 :
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					वि० [सं० न-आहार्य, न० त०] १. (पदार्थ) जो आहार्य या खाये जाने के योग्य न हो। २. जिसे पकड़ा न जा सके। ३. जिसे उत्पन्न न किया जा सके।				 | 
			
			
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					अनाहिताग्नि					 :
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					पु० [सं० न-आहिताग्नि न० त०] वह जिसने विधिपूर्वक अग्न्याधान न किया हो। अग्निहोत्र न करनेवाला।				 | 
			
			
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					अनाहूत					 :
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					वि० [सं० न-आहूत, न० त०] १. जो आहूत न हो। जिसे बुलाया न गया हो। अनिमंत्रित। २. (कथन या बात) जो अवसर या प्रयोजन न होने पर भी अनावश्यक रूप से कही गई हो। (अन्-कॉल्ड-फॉर)				 | 
			
			
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